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Written By WD

सिंहस्थ और दान : अन्न दान का महत्व

सिंहस्थ और दान : अन्न दान का महत्व - Simhastha And Anna Dan/ Anna Daan
सिंहस्थ में अन्नदान का बहुत महत्व है। इस अवसर पर थोड़ा दान करने से भी ज्यादा फल मिलता है। उज्जैन और सिंहस्थ में अन्नदान की विशेष महिमा है। अन्न से ही शरीर चलता है। अन्न ही जीवन का आधार है। अन्न प्राण है, इसलिए इसका दान प्राणदान के समान है। यह सभी दानों में श्रेष्ठ और ज्यादा फल देने वाला माना गया है। यह धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। 
 
पुण्य मास में शुक्ल पक्ष में सूर्योदय के समय उत्तम तिथि, शुभवार, उत्तम नक्षत्र और योग में पत्नी के साथ पवित्र होकर ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाना चाहिए। भोजन में सिर्फ वेदों को जानने वाले कर्मकाण्ड के ज्ञाता ब्राह्मणों को निमंत्रित करना चाहिए। ब्राह्मणों की संख्या कितनी हो, यह श्रद्धालु की सामर्थ्य पर निर्भर करता है। वैसे में एक हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान बताया गया है। भोजन से पहले ब्राह्मणों को स्वस्तिवाचन करना चाहिए। इन ब्राह्मणों में एक आचार्य का वरण करना चाहिए। दस या आठ ब्राह्मणों को ऋत्विज बनाना चाहिए। सोने का कलसा रख कर उस पर विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। उस प्रतिमा का सोलह उपचारों से पूजन करना चाहिए।

पूजन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। श्रद्धालु चाहे तो सौ ब्राह्मणों को हर रोज भोजन करा सकता है। इससे कम या ज्यादा संख्या में भी भोजन करने का विधान है। ब्राह्मणों को भोजन कराने से पहले उनके चरण धोना चाहिए।


गंध, अक्षत, फूल, दीप, घी वगैरह उन्हें समर्पित करना चाहिए। जिस दिन एक हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प पूरा हो जाए, उस दिन हवन करना चाहिए। विष्णु मंत्र से एक हजार आहुति देनी चाहिए, बाद में 'केशवाय नमः' आदि 'मंत्रों' से बारह आहुतिय देनी चाहिए।
 
इस तरह अन्नदान पूरा होने पर आचार्य को बछड़े के साथ काली गाय दान देनी चाहिए। अन्य ब्राह्मणों को भी बैल और घोड़ा देने का विधान है। भोजन के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए।
 
इस दान के सम्पन्न होने पर भगवान वेणीमाधव से यह प्रार्थना करनी चाहिए- माधव, आप इसके रूप हैं, आप हमारे अन्नदान से प्रसन्न हों। भात या उसका एक चावल भी अति पवित्र कहा जाता है। पका हुआ भोजन इन्द्र के राज्य जैसा है। इसमें मिर्च, इलायची, गुड़ डालकर इसे स्वादिष्ट बनाया गया। इसके साथ ताम्बूल और श्रद्धा सहित मैं आपको, दक्षिणा समर्पित करता हूं। आप इसे स्वीकार करें और इसका पुण्य फल दें।
 
शारणागत वत्सल आपकी प्रसन्नता से मेरा यह पुण्य कार्य सम्पन्न हो। इस भोजन के बाद बची हुई खाद्य सामग्री दीन, नेत्रहीन और जरूरतमंदों में बांट देनी चाहिए।

जिस समय ब्राह्मण भोजन कर रहे हों, उस समय यजमान को हवन करना चाहिए। सभी शास्त्रों में जितने दान और व्रत कहे गए हैं, उनकी तुलना में यह अन्नदान सबसे श्रेष्ठ है। इस संसार का मूल अन्न है, प्राण का मूल अन्न है। यह अन्न अमृत बनकर मुक्ति देता है। सात धातुएं अन्न से ही पैदा होती हैं। यह अन्न जगत का उपकार करता है। इसलिए अन्न का दान करना चाहिए।

इंद्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं। वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है। सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था। इस दान से उन्हें पारलौकिक सुख मिला। उन्होंने विष्णुपद पाया।
 
जो श्रद्धालु विधि विधान से अन्नदान करता है, उसे पुण्य मिलता है। तीर्थ नगरी अवंतिका में अन्नदान करने से अनन्त गुना फल मिलता है। इन दिनों अन्नदान में उज्जैन आने वाले श्रद्धालु ब्राह्मण भोजन के बजाय पुरोहितों की खिचड़ी (मिश्रित कच्चा दाल, चावल) का दान करते हैं। अन्नदान में तिलदान का बहुत महत्व है। मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और तिल षष्ठी, एकादशी के दिन उज्जैन में तिल और तिल के लड्डू दान करने से बहुत पुण्य मिलता है। इन तिथियों पर तीर्थ पुरोहितों को कई बोरे खिचड़ी और काफी मात्रा में तिल के लड्डू दान में मिलते हैं।