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Last Updated : शुक्रवार, 29 मई 2020 (12:45 IST)

Shri Krishna 28 May Episode 26 : श्रीकृष्ण ने जब अपनी अंगुलियों पर उठा लिया गोवर्धन पर्वत

Shri Krishna 28 May Episode 26 : श्रीकृष्ण ने जब अपनी अंगुलियों पर उठा लिया गोवर्धन पर्वत - Shri Krishna on DD National Episode 26
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 28 मई के 26वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 26 ) में जब भगवान श्रीकृष्ण इंद्रदेव की पूजा के स्थान पर गिरिराज गोवर्धन और गाय माता की पूजा प्रारंभ करवाते हैं तो स्वर्ग का राजा इंद्र इससे क्रोधित हो जाता है और वह सावर्तक से कहकर गोकुल में भयंकर वर्षा करवाने लगता है।

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ब्रज पर भयानक काले बादल छा जाते हैं और तूफान प्रारंभ हो जाता है। सारे नगर में वर्षा और आंधी का तांडव शुरु हो जाता है। कच्चे मकान और गोशलाएं टूट जाती हैं। ऐरावत पर बैठा इंद्र यह देखकर प्रसन्न हो जाता है। कुछ ही समय में बाढ़ जैसे हालात हो जाते हैं। सभी ग्रमावासी नंदबाबा के घर के आसपास एकत्रित हो जाते हैं और घर की दूसरी माला की गैलरी में खड़े नंदबाबा से बचाने की गुहार लगाते हैं।
 
नंद का सेवक कहता है कि नंदबाबा लगता है कि धरती पर प्रलय आ गया है। गैलरी में खड़े श्रीकृष्ण आसमान में देखते हैं तो उन्हें इंद्र नजर आ जाता है। वे दाऊ से कहते हैं कि अच्‍छा तो इंद्र स्वयं वज्र लेकर आ गया है अब तो गोकुल वासियों की रक्षा करनी पड़ेगी। तब दाऊ कहते हैं कि तुम ये सब रहने दो कन्हैया मैं अभी जाकर इंद्र का ही नाश कर देता हूं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं नहीं दाऊ भैया उसका नाश नहीं करना है उसके अहंकार का नाश करना है आओ मेरे साथ।
 
फिर श्रीकृष्ण बाबा से कहते हैं कि आप सभी मेरे साथ चलिए। जल्दी आइये। फिर श्रीकृष्ण और दाऊ भैया सभी ग्रामवासियों को गोवर्धन पर्वत के पास ले जाते हैं। वहां पहुंचकर श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत को नमस्कार करके कहते हैं हे गोवर्धन देवता हमने आपकी पूजा की थी इसलिए वो अभिमानी इंद्र हम पर कुपित हो गया है। अब इस समय हम आपको छत्र बनाकर सारे गोकुलवासियों को सुरक्षित करना चाहते हैं। आप हमें अपना सहयोग दें। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण उन्हें पुन: नमस्कार करते हैं और फिर अकेले ही गोवर्धन पर्वत की ओर बढ़ते हैं और फिर एक स्थान पर रुककर वे पुन: नमस्कार करके गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लेते हैं।
 
भारी वर्षा में यह दृष्य देखकर सभी ग्रामवासी दंग रह जाते हैं। इंद्र भी यह देखकर हैरान रह जाता है। आसमान में ब्रह्मा और शंकर सभी देवता उन्हें नमस्कार करते हैं। फिर नंदबाबा सभी से कहते हैं चलो इस पर्वत के नीचे चलो। श्रीकृष्ण कहते हैं आओ बाबा अपनी बैलगाड़ी भी अंदर ले आओ। सभी ग्रामवासी हाथ जोड़े अंदर समा जाते हैं। सभी श्रीकृष्ण के आसपास एकत्रित होकर श्रीकृष्ण की लीला देखकर सभी उनकी जय-जयकार करने लगते हैं। पर्वत के आसपास वर्षा का तांडव जारी रहता है और इंद्र भी हैरान परेशान हो जाता है लेकिन पर्वत के भीतर सभी सुरक्षित रहते हैं।
 
तब श्रीकृष्ण एक हाथ की अंगुली से पर्वत उठाए रहते हैं और दूसरे हाथ से वे मुरली बजाने लग जाते हैं। सभी उनकी मुरली की धुन सुनकर नाचने-झुमने लगते हैं। सभी की चिंता दूर हो जाती है। इंद्र यह देखकर और भी क्रोधित होकर वर्षा करता है लेकिन सभी ब्रजवासी उस पर्वत के नीचे सुरक्षित रहते हैं। यह तांडव सात दिन तक चलता है आखिरकार मेघ बरस-बरस का सूख जाते हैं। तब सावर्तक आकर कहता है कि स्वामी अब मेरे मेघों में जल की एक बूंद भी नहीं रही। हमने खूब भयंकर वर्षा की लेकिन हम इस छोटे से पर्वत का एक पत्‍थर भी नहीं हिला सके। तब इंद्र कहते हैं कि तुम जैसे वीरों के कारण हमें आज पराजय का मुंह देखना पड़ रहा है परंतु अब में अपने अमोघ वज्र से ऐसा प्रहार करूंगा कि एक ही क्षण में सारे गोकुलवासी इस पर्वत सहित भस्म हो जाएंगे। श्रीकृष्ण ये सुनकर मुस्कुरा देते हैं।
 
वह जैसे ही अपना वज्र फेंकने का प्रयास करता है वैसे ही श्रीकृष्ण अपनी माया से उसका हाथ स्तंभित कर देते हैं। वह दूसरे हाथ से फेंकने का प्रयास करता है तो उसे भी स्तंभित कर देते हैं। फिर इंद्र बेहोश होकर गिर पड़ते हैं। उनके दोनों हाथ अकड़ जाते हैं। फिर वहां एक ऋषि प्रकट होकर उन्हें जगाते हैं और कहते हैं कि हे देवराज इंद्र आज तुम्हारा सामने उससे है जो परम शक्तिशाली है। उसके सामने तुम्हारा वज्र भी कुछ नहीं करेगा। तब इंद्र कहते हैं कि हे गुरुदेव ऐसी परिस्थिति में अब हमें क्या करना चाहिए? तब गुरुवर कहते हैं कि ऐसे समय शक्ति नहीं ‍भक्ति काम आती है। ऐसे समय तुम श्रीहरि की शरण में जाओ। वही तुम्हारी हार को जीत बना सकते हैं। इस पर इंद्र कहते हैं कि ऐसा घोर अपराध करने पर भी वे मुझे क्षमा कर देंगे। तब ऋषि उन्हें प्रभु को प्रसन्न करने के लिए एक स्त्रोत पाठ बताते हैं और कहते हैं तुम मेरे साथ उसका पाठ करो। फिर जैसे ही इंद्र उस स्त्रोत का पाठ करने लगते हैं उनके हाथ पुन: ठीक हो जाते हैं।
 
इधर नीचे, श्रीकृष्ण कहते हैं बाबा अब संकट टल गया है। आप सभी लोगों को इस गुफा से बाहर निकलकर ले जाइये। देखो सारे बादल छट गए हैं। कैसी सुंदर धूप निकल आई है। अब सब लोग निश्चिंत होकर अपने-अपने घर जा सकते हैं। चिंता की कोई बात नहीं। सभी किशन कन्हैया की जय, गोवरधन गिरिधारी की जय जयकार लगाते, नाचते गाते बाहर निकल जाते हैं। 
 
उधर, आसमान में इंद्र का पाठ चलता रहता है। पाठ के पूर्ण होते ही इंद्र को चारों ओर श्रीकृष्ण ही नजर आते हैं। वे त्राहिमाम-त्राहिमाम करते हुए नीचे आकर प्रभु समक्ष हाथ जोड़कर खड़े होकर कहते हैं रक्षा करो प्रभु रक्षा करो। मुझे क्षमा कीजिए प्रभु। प्रभु इंद्र को उपदेश देते हैं और फिर वहां गायों की जननी कामधेनु सुरभी माता प्रकट होकर कहती हैं कि हे दिनदयाल आप इन्हें क्षमा कर दीजिए।
 
प्रभु उन्हें क्षमा कर देते हैं तो इंद्र कहते हैं कि आपसे मेरा एक निवेदन है कि कुंती के गर्भ से उत्पन्न हुआ मेरे एक पुत्र है उसका नाम है अर्जुन। आप उसे अपनी सेवा में स्वीकार कीजिए प्रभु और उसकी रक्षा का उत्तरदायित्व आपही को सौंपता हूं। श्रीकृष्ण इस निवेदन को स्वीकार कर लेते हैं। फिर माता सुरभी के निवेदन पर श्रीकृष्ण का गायों के इंद्र के रूप में अभिषेक करते हैं स्वयं इंद्र। फिर इंद्र कहते हैं भगवन आज से आपका नया नाम गोविंद हुआ। फिर सभी देवी और देवता उनकी गोविंद और गोपाल के रूप में स्तुति करते हैं।

इसके बाद भगवान ब्रह्मा जब यह देखते हैं कि श्रीकृष्ण अपने ग्वालों का झूठा भोजन कर रहे हैं तो उन्हें उनके भगवान होने पर शक हो जाता है। तब वे अपनी लीला से पहले तो श्रीकृष्ण के ग्वालों के गाय बछड़े गायब कर देते हैं फिर वे श्रीकृष्ण के सभी ग्वाल बालाओं को भी गायब करके ब्रह्मलोक ले जाते हैं। श्रीकृष्ण यह सब जान लेते हैं तो वे अपनी माया से खुद ही ग्वाल बालें और गाय बछड़ें बन जाते हैं। जब भगवान ब्रह्मा सभी को ब्रह्मलोक छोड़कर वापस आकर देखते हैं तो हैरान रह जाते हैं कि ये क्या मैं जिन्हें छोड़कर आया था वो तो यहीं घुम रहे हैं। फिर वे ऊपर ब्रह्मलोक में देखते हैं तो वहां भी उन्हें ग्वाल बालें और गाय बछड़ें नजर आते हैं। वे भ्रमित होकर प्रभु का स्मरण करके कहते हैं कि हे प्रभु सच क्या है? जब उन्हें सचाई का पता चलता है तो वह त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़ते हैं। जय श्रीकृष्णा। जय श्रीकृष्णा।
 
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