मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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इन 6 तरह के कार्यों से होगा बुरा अंत, पछताएंगे

इन 6 तरह के कार्यों से होगा बुरा अंत, पछताएंगे - 6  irregular lifestyle
जीवन महत्वपूर्ण है लेकिन अधिकतर लोग अपने जीवन को लेकर सजग नहीं रहते हैं और वे ऐसा जीवन जीते रहते हैं जो कि संयमित, अनुशासित या प्राकृतिक न होकर समाज में प्रचलित फैशन के आधार पर होता है या वह बेतरतीब ढंग से जीवन जीते रहते हैं।
 
हालांकि यह भी उतना बुरा नहीं जितना बुरा की ऐसे 6 कार्य हैं जिन्हें करते रहने से एक दिन व्यक्ति का बुरा अंत हो जाता है, तब उसके पास पछताने का मौका भी नहीं रहता है। ऐसे में क्या आप नहीं जानना चाहेंगे कि आखिर वे 6 तरह के कौन से कार्य हैं जिन्हें करके हम अपने बुरे अंत को आमंत्रित कर रहे हैं? सबसे मजेदार बात यह कि यह कार्य एक दूसरे से जुड़े हुए हैं यदि एक भी खराब है तो बाकी सभी खराब ही होंगे। अगले पन्नों पर जानिए...
भोजन में मात्रा नहीं जानना : अनियमित जीवन शैली की तरह अनियमित भोजन शैली भी निर्मित हो चली है। अर्थात भोजन करने का कोई एक समय नियुक्त नहीं है। कभी भी कहीं भी भोजन कर लेना, बासी भोजन ही कर लेना, भोजन के बाद ढेर सारा पानी पी लेना आदि ऐसी अनेक बाते हैं, लेकिन उनमें सबसे महत्वपूर्ण है कि भोजन में मात्रा अर्थात कितना भोजन कर रहे हैं यह नहीं देखना या जानना।
 
कभी बहुत अधिक भोजन कर लेना और कभी बहुत कम। कभी दिन में तीन चार बार और रात में दो बार। या, दोनों समय खूब डटकर खाना खाने के अलावा दिनभर कुछ न कुछ खाते रहना। इसके बाद सबसे महत्वपूर्ण यह भी कि भोजन में यह नहीं देखना की क्या खाया जा रहा है और किस भोजन के साथ क्या खाया जा रहा है। जैसे बैंगन खाने के बाद दूध पी लेना या कटहल खाना लेना, नशे के साथ भोजना करना आदि। अर्थात भोजन के मेल या बेमेल को नहीं जानना भी घातक सिद्ध होता है।
 
निष्कर्ष : जो व्यक्ति भोजन में मात्रा और मेल नहीं देखता एक दिन वह गंभीर रोग की चपेट में कब आ जाता है उसे खुद को ही इसके पता बहुत देर से चलता है। बुद्ध कहते हैं ऐसे व्यक्ति को मार ऐसा ही गिरा देती है जैसे सूखे वृक्षों को आंधियां। हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि किसी‍ तिथि को कौन सा भोजन करना चाहिए और कौन सा नहीं। किस भोजन के साथ कौन सा भोजन नहीं करना चाहिए यह भी जानना जरूरी है। आयुर्वेद अनुसार भी भोजन में मात्रा देखना जरूरी है।
देर से सोना और देर से उठना : हिन्दू शास्त्रों के अनुसार आपको सूर्यास्त के 2 से ढाई घंटे बाद सोने की तैयारी कर लेना चाहिए। आप भोजन कितना ही उत्तम कर लीजिए लेकिन उस भोजन को उसके अनुसार उचित नींद नहीं मिलेगी तो वह गुणकारी नहीं होगा। इसके अलावा नींद हमारी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा है इसे प्राकृतिक ही बन रहने दें अन्यथा यह आपके लिए दुखदायी सिद्ध होगी। 
 
नींद का गणित समझे बगैर देर तक जागना आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। आप जितना जागते हैं उतना ही सोएं। आप कम सोते और ज्यादा जागते हैं तो संतुलन बिगड़ता है और आप ज्यादा सोते एवं कम जागते हैं तो भी संतुलन बिगड़ता है। प्रकृ‍ति खुद आपको बताती है कि कब सोना चाहिए। आपको नींद आती है तो सो जाएं और सुबह प्रकृति खुद-ब-खुद आपको उठा देती है। यदि आप लगातार देर से सोने और देर से उठने की आदत बना चुके हैं तो निश्चित ही आपको इसका परिणाम भी एक दिन भुगतना होगा। नींद के मनोविज्ञान और दुष्परिणामों के बारे में आपको पढ़ लेना चाहिए।
सहवास या काम : जिस तरह भोजन और नींद के नियम को हम जानते हैं उसी तरह में सहवास के नियम को भी जानना जरूरी है। हिन्दू शास्त्रों अनुसार अति संभोग करना, द‌िन के समय ही समागम करना या मंगलवार को सामगम करने से व्यक्ति की उम्र तो घटती ही है साथ ही उसे गंभीर रोग भी उत्पन्न हो सकेत हैं। कहते हैं अत्यंत भोगी, विलासी और कामवासना में ही लिप्त रहने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे मौत के मुंह में स्वत: ही चला जाता है।  
 
बहुत से लोग संभोग करने के अलावा इसी तरह की बातें करते, फिल्म देखते या कल्पनाएं करते रहते हैं। यह उनके उम्र और सेहत के लिए तो खतरनाक होता ही है साथ ही इस तरह की सोच की आदत बना लेने से वे कभी ‍भी किसी भी प्रकार की मुसिबत में फंस सकते हैं। ऐसी गंदी सोच के दुष्परिणाम ही झेलने होते हैं।

शौचादि : मूत्र, शौच, छींक, पाद और बगासी को रोकना घातक है। इसके अलावा जोर लगाकर शौच करना या मूत्र त्याग करना भी घातक है। जब आप ऐसा लगातार करते हैं तो गंभीर रोगा का शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा आप पानी पीने के नियम को भी समझे। देर रात को पानी पीक सोना भी ठीक नहीं। पानी साफ होना भी जरूरी है।
 
इसके अलावा खुले में या खड़े होकर पेशाब करते हैं तो यह तरीका आपकी उम्र कम करने के लिए भी जिम्मेदार है। यदि आप घास के ढेर पर या फिर कंकाल पर बैठते हैं, तो आपकी मृत्यु नजदीक मानी जाती है।
 
शौच का स्थान और शौच करने की दिशा भी नियुक्त है उसी का पालन करें। इसके अलावा जो व्यक्ति नाखून चबाता है या फिर स्वयं को दूषित रखता है, स्वयं की सफाई का ध्यान नहीं रखता, ऐसे व्यक्ति की उम्र कम होती चली जाती है।
 
हालांकि उपरोक्त से भी खराब बात यह है कि यदि आप नदी के किनारे, पूल के उपर, खेत की मेड़ पर, किसी सिद्ध स्थान या पाल्या महाराज के पास मूत्रादि का त्याग करते हैं तो आप भारी मुसिबत में पड़ सकते हैं।
क्रोध या गुस्सा : क्रोध से भोजन, नींद और सहवास पर गंभीर असर पड़ता है। इसकी भी आदत हो जाती है। क्रोध जहां आपके घर-परिवार को नष्ट कर देता है, वहीं यह आपको वक्त के पहले ही मार देता है। गीता में कहा गया है कि क्रोध के कारण विवेक पर पर्दा पड़ जाने से मनुष्य का नाश हो जाता है।
 
क्रोध से मनुष्य का तेजी से शारीरिक क्षरण होने लगता है। वह समय पूर्व ही बुढ़ापे का शिकार हो जाता है। इससे पछतावा, अवसाद और रोगों की उत्पत्ति होती है। अंत में व्यक्ति खुद का ही नहीं दूसरों के नाश का कारण भी बन जाता है। क्रोध सिर्फ वही व्यक्ति करता है जिसमें सोचने-समझने की क्षमता कम होती है या नहीं ही होती है। 
 
क्रोधी आदमी किसी बात का ठीक अर्थ नहीं समझता। वह अंधकार में रहता है। वह अपना होश खो बैठता है। वह मुंह से कुछ भी बक देता है।  उसे किसी बात की शर्म नहीं रहती। वह किसी की भी हत्या कर बैठता है, फिर वह साधारण आदमी हो या साधु हो, माता-पिता हों या और कोई। वह आत्महत्या तक कर बैठता है। क्रोध से मनुष्य का सर्वनाश होता है। जो लोग क्रोध का त्याग कर देते हैं वे सुखी, समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन यापन करते हैं। 
लोभ और ईर्ष्या : इसके अलावा व्यक्ति में लोभ और ईर्ष्या भी नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे भी शारीरिक रोगों की उत्पत्ति होती है। लोभ और ईर्ष्या व्यक्ति के भीतर संताप उत्पन्न करते हैं। इस संताप से ही शरीर को दुख पहुंचता है। मानसिक शांति भंग होने से ही संपूर्ण शरीर भी रोगग्रस्त होने लगता है।
 
लोभ और ईर्ष्या के कई रूप होते हैं। इससे आपके संबंधों पर भी फर्क पड़ता है। लोभी और ईर्ष्यालु मनुष्य का कोई भी संबंधी नहीं होता और ना ही वह किसी से प्रेम करता है। उसका प्रेम बस एक दिखावा होता है। दरअसल वह भी नहीं जानता है कि उसका प्रेम महज एक दिखावा है।
 
शास्त्रों लोभ और ईर्ष्या के कई दुष्परिणाम बताए गए हैं। व्यक्ति के भीतर लोभ की भावना तब तक रहती है जब तक की वह संतोष के महत्व को नहीं समझता और ईर्ष्या की भावना तब तक रहती है जब तक की वह दूसरों की संवेदना को नहीं समझता है। लोभ और ईर्ष्या से अंतत: दुख ही उत्पन्न होता है।
 
भगवान महावीर स्वामी कहते हैं कि क्रोध से मनुष्य नीचे गिरता है। अभिमान से अधम गति को पाता है। माया से सत्‌गति का नाश होता है तथा लोभ से इस लोक में भी और परलोक में भी भय रहता है। क्रोध को शांति से, मान को नम्रता से, माया को सरलता से तथा लोभ को संतोष से जीता जा सकता है।