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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

हिन्दू धर्म : जम्बू द्वीप में कहां था सुमेरू पर्वत?

Sumeru Parvat | हिन्दू धर्म : जम्बू द्वीप में कहां था सुमेरू पर्वत?
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जम्बू द्वीप के आसपास 6 द्वीप थे- प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। जम्बू द्वीप धरती के मध्य में स्थित है और इसके मध्य में इलावृत नामक देश है। आज के कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया और चीन के मध्य के स्थान को इलावृत कहते हैं। इस इलावृत के मध्य में स्थित है सुमेरू पर्वत।

इलावृत के दक्षिण में कैलाश पर्वत के पास भारतवर्ष, पश्चिम में केतुमाल (ईरान के तेहरान से रूस के मॉस्को तक), पूर्व में हरिवर्ष (जावा से चीन तक का क्षेत्र) और भद्राश्चवर्ष (रूस), उत्तर में रम्यकवर्ष (रूस), हिरण्यमयवर्ष (रूस) और उत्तकुरुवर्ष (रूस) नामक देश हैं।

मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, इराक, इसराइल, कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, चीन, बर्मा, इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, हिन्दुस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का संपूर्ण क्षेत्र जम्बू द्वीप था।

अगले पन्ने पर सुमेरू पर्वत का रोचक वर्णन...



इलावृत देश के मध्य में स्थित सुमेरू पर्वत के पूर्व में भद्राश्ववर्ष है और पश्चिम में केतुमालवर्ष है। इन दोनों के बीच में इलावृतवर्ष है। इस प्रकार उसके पूर्व की ओर चैत्ररथ, दक्षिण की ओर गंधमादन, पश्चिम की ओर वैभ्राज और उत्तर की ओर नंदन कानन नामक वन हैं, जहां अरुणोद, महाभद्र, असितोद और मानस (मानसरोवर)- ये चार सरोवर हैं। माना जाता है कि नंदन कानन का क्षेत्र ही इंद्र का लोक था जिसे देवलोक भी कहा जाता है। महाभारत में इंद्र के नंदन कानन में रहने का उल्लेख मिलता है।

सुमेरू के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक पर्वत हैं, जो अलग-अलग देश की भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुमेरू के उत्तर में नील, श्वेत और श्रृंगी पर्वत हैं, वे भी भिन्न-भिन्न देश में स्थित हैं।

इस सुमेरू पर्वत को प्रमुख रूप से बहुत दूर तक फैले 4 पर्वतों ने घेर रखा है। 1. पूर्व में मंदराचल, 2. दक्षिण में गंधमादन, 3. पश्चिम में विपुल और 4. उत्तर में सुपार्श्व। इन पर्वतों की सीमा इलावृत के बाहर तक है।

सुमेरू के पूर्व में शीताम्भ, कुमुद, कुररी, माल्यवान, वैवंक नाम से आदि पर्वत हैं। सुमेरू के दक्षिण में त्रिकूट, शिशिर, पतंग, रुचक और निषाद आदि पर्वत हैं। सुमेरू के उत्तर में शंखकूट, ऋषभ, हंस, नाग और कालंज आदि पर्वत हैं।

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अन्य पर्वत : माल्यवान तथा गंधमादन पर्वत उत्तर तथा दक्षिण की ओर नीलांचल तथा निषध पर्वत तक फैले हुए हैं। उन दोनों के बीच कर्णिकाकार मेरू पर्वत स्थित है। मर्यादा पर्वतों के बाहरी भाग में भारत, केतुमाल, भद्राश्व और कुरुवर्ष नामक देश सुमेरू के पत्तों के समान हैं। जठर और देवकूट दोनों मर्यादा पर्वत हैं, जो उत्तर और दक्षिण की ओर नील तथा निषध पर्वत तक फैले हुए हैं। पूर्व तथा पश्चिम की ओर गंधमादन तथा कैलाश पर्वत फैला है। इसी समान सुमेरू के पश्चिम में भी निषध और पारियात्र- दो मर्यादा पर्वत स्थित हैं। उत्तर की ओर निश्रृंग और जारुधि नामक वर्ष पर्वत हैं। ये दोनों पश्चिम तथा पूर्व की ओर समुद्र के गर्भ में स्थित हैं।

गंगा की नदियां : माना जाता है कि सुमेरू के ऊपर अंतरिक्ष में ब्रह्माजी का लोक है जिसके आस-पास इंद्रादि लोकपालों की 8 नगरियां बसी हैं। गंगा नदी चंद्रमंडल को चारों ओर से आप्लावित करती हुई ब्रह्मलोक (शायद हिमवान पर्वत) में गिरती है और सीता, अलकनंदा, चक्षु और भद्रा नाम से 4 भागों में विभाजित हो जाती है।

सीता पूर्व की ओर आकाश मार्ग से एक पर्वत से दूसरे पर्वत होती हुई अंत में पूर्व स्थित भद्राश्ववर्ष (चीन की ओर) को पार करके समुद्र में मिल जाती है। अलकनंदा दक्षिण दिशा से भारतवर्ष में आती है और 7 भागों में विभक्त होकर समुद्र में मिल जाती है। चक्षु पश्चिम दिशा के समस्त पर्वतों को पार करती हुई केतुमाल नामक वर्ष में बहते हुए सागर में मिल जाती है। भद्रा उत्तर के पर्वतों को पार करते हुए उतरकुरुवर्ष (रूस) होते हुए उत्तरी सागर में जा मिलती है।
पृथ्वी के मध्य में जम्बू द्वीप है। इसका विस्तार एक लाख योजन का बतलाया गया है। जम्बू द्वीप की आकृति सूर्यमंडल के सामान है। वह उतने ही बड़े खारे पानी के समुद्र से घिरा है। जम्बू द्वीप और क्षार समुद्र के बाद शाक द्वीप है, जिसका विस्तार जम्बू द्वीप से दोगुना है। वह अपने ही बराबर प्रमाण वाले क्षीर समुद्र से, उसके बाद उससे दोगुना बड़ा पुष्कर द्वीप है, जो दैत्यों को मदोन्मत्त कर देने वाले उतने ही बड़े सुरा समान समुद्र से घिरा हुआ है। उससे परे कुश द्वीप की स्थिति मानी गई है, जो अपने से पहले द्वीप की अपेक्षा दोगुना विस्तार वाला है। कुश द्वीप को उतने ही बड़े विस्तार वाले दही समान के समुद्र ने घेर रखा है। उसके बाद क्रोंच नामक द्वीप है; जिसका विस्तार कुश द्वीप से दोगुना है, यह अपने ही सामान विस्तार वाले घी समान समुद्र से घिरा है। इसके बाद दोगुना विस्तार वाला शाल्मलि द्वीप है; जो इतने ही बड़े ईख रस समान समुद्र से घिरा हुआ है। उसके बाद उससे दोगुने विस्तार वाले गोमेद (प्लक्ष) नामक द्वीप है; जिसे उतने ही बड़े रमणीय स्वादिष्ट जल के समुद्र ने घेर रखा है।

जम्बू द्वीप के मध्यभाग में मेरु पर्वत है, यह ऊपर से नीचे तक एक लाख योजन ऊंचा है। सोलह हजार योजन तो यह पृथ्वी के नीचे तक गया हुआ है और चौरासी हजार योजन पृथ्वी से ऊपर उसकी ऊंचाई है। मेरु के शिखर का विस्तार बत्तीस हजार योजन है। उसकी आकृति प्याले के सामान है। वह पर्वत तीन शिखरों से युक्त है, उसके मध्य शिखर पर ब्रह्माजी का निवास है, ईशान कोण में जो शिखर है, उस पर शंकरजी का स्थान है तथा नैऋत्य कोण के शिखर पर भगवान विष्णु की स्तिथि है।

मेरु पर्वत के चारों ओर चार विष्कम्भ पर्वत माने गए हैं। पूर्व में मंदराचल, दक्षिण में गंधमादन, पश्चिम में सुपार्श्व तथा उत्तर में कुमुद नामक पर्वत है। इनके चार वन हैं जो पर्वतों के शिखर पर ही स्थित हैं। पूर्व में नंदन वन, दक्षिण में चैत्र रथ वन, पश्चिम में वैभ्राज वन और उत्तर में सर्वतोभद्र वन है। इन्हीं चरों में चार सरोवर भी हैं। पूर्व में अरुणोद सरोवर, दक्षिण में मान सरोवर, पश्चिम में शीतोद सरोवर तथा उत्तर में महाह्रद सरोवर है। ये विष्कम्भ पर्वत पच्चीस पच्चीस हजार योजन ऊचे हैं। इनकी चोड़ाई भी हजार हजार योजन मानी गई है। मेरुगिरी के दक्षिण में निषध, हेमकूट और हिमवान- ये तीन मर्यादा पर्वत हैं। इनकी लम्बाई एक लाख योजन और चौड़ाई दो हजार योजन मानी गई है। मेरु के उत्तर में भी तीन मर्यादा पर्वत हैं- नील, श्वेत और श्रंग्वान। मेरु से पूर्व माल्यवान पर्वत है और मेरु के पश्चिम में गंधमादन पर्वत है। ये सभी पर्वत जम्बू द्वीप पर चारों ओर फैले हुए हैं। गंधमादन पर्वत पर जो जम्बू का वृक्ष है, उसके फल बड़े बड़े हाथियों के समान होते हैं। उस जम्बू के ही नाम पर इस द्वीप को जम्बू द्वीप कहते हैं।

पूर्व काल में स्वायम्भुव नाम से प्रसिद्ध एक मनु हुए हैं; वे ही आदि मनु और प्रजापति कहे गए हैं। उनके दो पुत्र हुए, प्रियव्रत और उत्तानपाद। राजा उत्तानपाद के पुत्र परम धर्मात्मा ध्रुव हुए, जिन्होंने भक्ति भाव से भगवान् विष्णु की आराधना करके अविनाशी पद को प्राप्त किया। राजर्षि प्रियव्रत के दस पुत्र हुए, जिनमें से तीन तो संन्यास ग्रहण करके घर से निकल गए और परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त हो गए। शेष सात द्वीपों में उन्होंने अपने सात पुत्रों को प्रतिष्ठित किया। राजा प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र आग्नीघ्र जम्बू द्वीप के अधिपति हुए। उनके नौ पुत्र जम्बू द्वीप के नौ खण्डों के स्वामी माने गए हैं, जिनके नाम उन्हीं के नामों के अनुसार इलावृतवर्ष, भद्राश्ववर्ष, केतुमालवर्ष, कुरुवर्ष, हिरण्यमयवर्ष, रम्यकवर्ष, हरीवर्ष, किंपुरुष वर्ष और हिमालय से लेकर समुद्र के भू-भाग को नाभि खंड (भारतवर्ष) कहते हैं।

नाभि और कुरु ये दोनों वर्ष धनुष की आकृति वाले बताए गए हैं। नाभि के पुत्र ऋषभ हुए और ऋषभ से ‘भरत’ का जन्म हुआ; जिनके आधार पर इस देश को भारतवर्ष भी कहते हैं।

संदर्भ : हिन्दू ग्रंथ विष्णु पुराण, जैन ग्रंथ 'जंबूद्वीप्प्रज्ञप्ति'