गुरुवार, 28 मार्च 2024
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ये लोग न तो मनुष्य हैं और न ही पशु, जानिए कौन हैं...

ये लोग न तो मनुष्य है और न पशु, जानिए कौन...| bizarre man
प्राचीनकाल में सुर, असुर, देव, दानव, दैत्य, रक्ष, यक्ष, किन्नर, निषाद, वानर, गंधर्व, नाग, किरात, विद्याधर और मानव आदि जातियां होती थीं। प्राचीन भारत में कुछ इस तरह के मानव और जीव हुए हैं जिनके बारे में आज भी शोध जारी है। ये ऐसे लोग थे जिन्हें मानव कहना थोड़ा कठिन है।
अंधकारकाल और आदिकाल में जहां विशायकाय मानवों के होने का उल्लेख हर धर्म की पुस्तकों में मिलता है वहीं ऐसे मानवों का उल्लेख भी मिलता है जो कि अर्ध मानव थे अर्थात आधे मानव और आधे पशु या पक्षी थे। हालांकि उनमें कुछ ऐसे थे जोकि काल और परिस्थितवश ऐसे बन गए थे।
अश्विनी कुमार : मानव सभ्यता के विकास में कई जानवरों का योगदान है। इनमें कुत्ते, गाय, बकरी, भैंस जैसे दुधारू जानवर और घोड़े शामिल हैं। शायद यही वजह रही होगी कि उक्त सभी जानवरों की मानव रूप में भी कल्पना की गई हो या कि सच में ही ऐसे मानव होते हों। लोककथाओं और जनश्रुतियों में अश्व मानवों के कई किस्से-कहानियां पढ़ने को मिलते हैं। नरतुरंग या अश्‍व मानव नाम से एक तारामंडल का नाम भी है।
 
पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि कश्यप की पत्नी सुरभि से भैंस, गाय, अश्व तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन के दौरान उच्चैःश्रवा घोड़े की भी उत्पत्ति हुई थी। घोड़े तो कई हुए लेकिन श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा माना जाता था।
 
माना जाता है कि आयुर्वेद के जन्मदाता अश्वि‍नी कुमार की आकृति घोड़े के समान कर लेते थे। यह धारणा संभवत: इसलिए जन्मी हो क्योंकि वे अश्व विज्ञान में पारंगत थे। अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के दो पुत्र थे। सूर्य घोड़ा बनकर प्रभा के पास गए थे। इन्हें सूर्य का औरस पुत्र भी कहा जाता है। ये मूल रूप से चिकित्सक थे। ये कुल दो हैं। एक का नाम 'नासत्य' और दूसरे का नाम 'द्स्त्र' है।
 
यह भी कहा जाता है कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिए इन्होंने अपना सिर काटकर अलग रख दिया था और उनके धड़पर घोड़े का सिर रख दिया था; और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। उल्लेखनीय है कि कुंती ने माद्री को जो गुप्त मंत्र दिया था उससे माद्री ने इन दो अश्‍विनी कुमारों का ही आह्वान किया था। 5 पांडवों में नकुल और सहदेव इन दोनों के पुत्र हैं। 
बकरा मानव : भगवान शंकर ने अपने श्‍वसुर प्रजापति राजा दक्ष का जब सिर काट दिया था जो उनके सिर पर बकरे का सिर लगा कर जीवित कर दिया था। दरअसल, राजा दक्ष ने सती और शंकर को अपने वाजपेयी यज्ञ में नहीं बुलाया था, लेकिन सती माता फिर भी उनके यज्ञ में चली गई था और उन्हें वहां अपमान का सामना करना पड़ा इसी से क्षुब्ध होकर उन्होंने उसी यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया था।
 
इस आत्मदाह के बाद भगवान शंकर ने अपने गण वीरभद्र को भेज। वीरभद्र ने वहां पहुंचकर न केवल यज्ञ मंडप को तहस नहस कर दिया बल्कि उन्हों प्राजापति दक्ष का सिर काटकर भगवान शंकर के चरणों में रख दिया था। लेकिन ब्रह्मा के विनय के बाद भगवान शंकर ने दक्ष पर बकरे का सिर लगा कर उन्हें फिर से जीवित कर दिया था। प्राजापति दक्ष ब्रह्मा के पुत्र थे।
हथी मानव : भगवान गणेश की कथा सभी को मालूम है। भगवान गणेश की उत्पत्ति माता पार्वती ने की थी। उन्होंने उन्हें वहां का द्वारपाल नियुक्ति क्या था जहां वे स्नान करने जाती थी। द्वारपाल नियुक्त करने के बाद कहा था कि आप किसी को भी अंदर न आने देना।
 
भगवान गणेश ने माता की आज्ञा से ही भगवान शंकर का मार्ग रोक दिया था। भगवान शंकर ने क्रोध लीला दिखाते हुए उनका सिर काट दिया था। बाद में माता पार्वती के विलाप करने के बाद उन्होंने उनके धड़ पर हाथी के बच्चे का सिर लगाकर उन्हें पुन: जीवित कर दिया था।
रीछ मानव : क्या इंसानों के समान कोई पशु हो सकता है? जैसे रीछ प्रजाति। रामायण में जामवंत को एक रीछ मानव की तरह दर्शाया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह अर्सिडी कुल का मांसाहारी, स्तनी, झबरे बालों वाला बड़ा जानवर है। यह लगभग पूरी दुनिया में कई प्रजातियों में पाया जाता है। मुख्‍यतया इसकी 5 प्रजातियां हैं- काला, श्वेत, ध्रुवीय, भूरा और स्लोथ भालू। 
 
अमेरिका और रशिया में आज भी भालू मानव के किस्से प्रचलित हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि कभी इस तरह की प्रजाति जरूर अस्तित्व में रही होगी। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि भूरे रंग का एक विशेष प्रकार का भालू है जिसे नेपाल में 'येति' कहते हैं। एक ब्रिटिश वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि हिमालय के मिथकीय हिममानव 'येति' भूरे भालुओं की ही एक उपप्रजाति हो सकती है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रायन स्काइज द्वारा किए गए बालों के डीएनए परीक्षणों से पता चला है कि ये ध्रुवीय भालुओं से काफी कुछ मिलते-जुलते हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भूरे भालुओं की उप-प्रजातियां हो सकती हैं।
 
संस्कृत में भालू को 'ऋक्ष' कहते हैं। अग्नि पुत्र जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा। लेकिन क्या वे सचमुच भालू मानव थे? रामायण आदि ग्रंथों में तो उनका चित्रण ऐसा ही किया गया है। ऋक्ष शब्द संस्कृत के अंतरिक्ष शब्द से निकला है। जामवंतजी को अजर अमर होने का वरदान प्राप्त है। 
 
प्राचीनकाल में इंद्र पुत्र, सूर्य पुत्र, चंद्र पुत्र, पवन पुत्र, वरुण पुत्र, ‍अग्नि पुत्र आदि देवताओं के पुत्रों का अधिक वर्णन मिलता है। उक्त देवताओं को स्वर्ग का निवासी कहा गया है। एक ओर जहां हनुमानजी और भीम को पवनपुत्र माना गया है, वहीं जामवन्तजी को अग्नि पुत्र कहा गया है। जामवन्त की माता एक गंधर्व कन्या थी। जब पिता देव और माता गंधर्व थीं तो वे कैसे रीछ मानव हो सकते हैं? 
 
एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने एक ऐसा रीछ मानव बनाया था, जो दो पैरों से चल सकता था और जो मानवों से संवाद कर सकता था। पुराणों के अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है। वानर और किंपुरुष के बीच की यह जनजाति अधिक विकसित थी। हालांकि इस संबंध में अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है।
वानर मानव : क्या हनुमानजी बंदर प्रजाति के थे? हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था।
 
हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि 'क्या हनुमानजी बंदर थे?' इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह ‍भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमेश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।
 
दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूंछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।

विचित्र किस्म के मानव पक्षी : माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं। भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़। 
प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के 2 पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे।
 
राम के काल में सम्पाती और जटायु की बहुत ही चर्चा होती है। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे, खासकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में इनकी जाति के पक्षियों की संख्या अधिक थी। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है।
 
दूसरी ओर मध्यप्रदेश के देवास जिले की तहसील बागली में ‘जटाशंकर’ नाम का एक स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि गिद्धराज जटायु वहां तपस्या करते थे। जटायु पहला ऐसा पक्षी था, जो राम के लिए शहीद हो गया था। जटायु का जन्म कहां हुआ, यह पता नहीं, लेकिन उनकी मृत्यु दंडकारण्य में हुई।

मत्स्य कन्या (Mermaid) : दुनिया की हर संस्कृति और धर्म में मत्स्य कन्याओं के होने के किस्से और कहानियां मिलते हैं। कई लोग ऐसा दावा करते हैं कि उन्होंने मत्स्य कन्याओं को देखा है। आपको यू ट्यूब पर इस तरह के दावे के कई वीडियो भी मिल जाएंगे। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता।
भारतीय रामायण के थाई व कम्बोडियाई संस्करणों में रावण की बेटी सुवर्णमछा (सोने की जलपरी) का उल्लेख किया गया है। वह हनुमान का लंका तक सेतु बनाने का प्रयास विफल करने की कोशिश करती है, पर अंततः उनसे प्यार करने लगती है। भारतीय दंतकथाओं में भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का उल्लेख है जिसके शरीर का ऊपरी भाग मानव का व निचला भाग मछली का है। इसी तरह चीन, अरब और ग्रीक की लोककथाओं में भी जलपरियों के सैकड़ों किस्से पढ़ने को मिलते हैं।
 
बहुत से लोग मत्स्य कन्या को जलपरी कहते हैं। बहुत से लोग दावा करते हैं कि गुजरात के पोरबंदर के पास मधुपुरा गांव के पास स्थित समुद्री तट पर जलपरी पाई गई। सोशल मीडिया में इसकी तस्वीरें खूब वायरल हुई थीं। इन तस्वीरों में दिखाया गया है‌ कि स्किन कलर की एक पारदर्शी शरीर में जलपरी मरी हुई है। वायरल हुई इन तस्वीरों की पुष्टि किसी ने नहीं की है। कहा जा रहा है कि ऐसी ही जलपरियों की तस्वीर हाल ही में पाकिस्तान में भी देखी गई, हालांकि यह खबर झूठ साबित हुई।
 
हालांकि दुनियाभर के समुद्री यात्रियों और नाविकों ने जलपरियों के देखे जाने के कई दावे किए हैं। अपनी कैरेबियंस की यात्रा के दौरान क्रिस्टोफर कोलंबस ने भी ऐसा ही कुछ देखने का जिक्र किया था। ऐसे ही दो दृश्य वैंकुवर और विक्टोरिया के तटों पर देखे गए। सन् 2009 में दर्जनों लोगों ने इसराइल के एक तट पर जलपरी की तरह ही दिखती एक आकृति को समुद्र में उछलते और कलाबाजियां करते देखा था। सुनामी आने के बाद भी एक तट पर ऐसी ही मृत जलपरी देखे जाने की खूब चर्चा हुई थी।
 
हाल ही में ग्रीनलैंड के समुद्र में एक पनडुब्बी में सवार कर्मचारियों ने एक ऐसा वीडियो जारी किया है जिसे जलपरियों के होने का निशान माना जा रहा है। इसी दौरान अचानक एक विचित्र प्राणी ने उनकी पनडुब्बी के शीशे पर हाथ लगाया जिसकी 4 अंगुलियां व 1 अंगूठा था और फिर वो तेजी से दूसरी ओर तैरता हुआ चला गया। 2 मिनट व 17 सेकंड के इस वीडियो के सच या झूठ होने पर अभी तक विशेषज्ञों के बीच बहस चल रही है।

सर्प मानव : सभी जीव-जंतुओं में गाय के बाद सांप ही एक ऐसा जीव है जिसका हिन्दू धर्म में ऊंचा स्थान है। सांप एक रहस्यमय प्राणी है। देशभर के गांवों में आज भी लोगों के शरीर में नाग देवता की सवारी आती है। क्या आदिकाल में आधे नाग और आधे मानव जैसे सर्प मानव होते थे? भारत के प्राचीन मंदिरों पर नागों की इसी तरह की मूर्ति देखने को मिलती है।

पौराणिक मान्यता : शेषनाग के बारे में सभी जानते हैं जिसके ऊपर भगवान विष्णु को लेटे हुए बताया जाता है। कश्यप-कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग था। उसके भाई का नाम वासुकि और कर्कोटक था। शेषनाग को ही अनंत कहते थे। भारत में नागों की पूजा के प्रचलन के पीछे कई रहस्य छिपे हुए हैं। माना जाता है कि नागों की एक सिद्ध और चमत्कारिक प्रजाति हुआ करती थी जो मानवों की सभी मनोकामना पूर्ण कर देते थे। उल्लेखनीय है कि नाग और सर्प में फर्क है। सभी नाग कद्रू के पुत्र थे जबकि सर्प क्रोधवशा के।
 
पौराणिक कथाओं अनुसार पाताललोक में कहीं एक जगह नागलोक था जहां मानव आकृति में नाग रहते थे। कहते हैं कि सात तरह के पाताल में से एक महातल में ही नागलोक बसा था जहां कश्यप की पत्नी कद्रू और क्रोधवशा से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले नाग और सर्पों का एक समुदाय रहता था। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग थे। 
 
कुंति पुत्र अर्जुन ने पाताललोक की एक नाग कन्या से विवाह किया था जिसका नाम उलूपी था। यह विधवा थी। अर्जुन से विवाह करने के पहले उलूपी का विवाह एक बाग से हुआ था जिसको गरूढ़ ने खा लिया था। अर्जुन और नाग कन्या उलूपी के पुत्र थे अरावन जिनका दक्षिण भारत में मंदिर है और हिजड़े लोग उनको अपना पति मानते हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच विवाह भी एक नाग कन्या से ही हुआ था जिसका नाम अहिलवती था ‍और जिसका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था। भगवान कृष्ण ने कालिया नाग के अलावा अगासुर नामक विशालकाय नाग को भी मारा था।
 
ऐतिहासिक तथ्‍य : प्राचीनकाल में नागों पर आधारित नाग प्रजाति के मानव कश्मीर में निवास करते थे। आज भी कश्मीर के बहुत से स्थानों के नाम नागकुल के नामों पर ही आधारित हैं, जैसे अनंतनाग शहर, शेषनाग झील। बाद में ये सभी नागकुल के लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ में आकर बस गए थे, जो उस काल में दंडकारण्य कहलाता था। भारत में प्रमुख रूप से 8 नागकुल थे। अनंत (शेषनाग), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक।
 
10 फन वाले नाग : वर्तमान में 2 और 5 फन वाले नाग पाए जाते हैं, लेकिन 10 फनों के नागों की प्रजाति अब लुप्त हो गई है। कुछ वर्षों पूर्व झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के चांडिल प्रखंड में 10 फन वाले शेषनाग देखे जाने की चर्चा जोरों पर थी। बताया जा रहा है कि इस शेषनाग को बीते कुछ दिनों में कई ग्रामीणों ने देखा था। इस तरह हैदराबाद में एक 5 फन वाला नाग देखा गया जिसका लोगों ने चित्र खींच लिया था।
 
उड़ने वाला और इच्छाधारी नाग : माना जाता है कि 100 वर्ष से ज्यादा उम्र होने के बाद सर्प में उड़ने की शक्ति आ जाती है। सर्प कई प्रकार के होते हैं- मणिधारी, इच्‍छाधारी, उड़ने वाले, एकफनी से लेकर दसफनी तक के सांप, जिसे शेषनाग कहते हैं। नीलमणिधारी सांप को सबसे उत्तम माना जाता है। इच्छाधारी नाग के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी इच्छा से मानव, पशु या अन्य किसी भी जीव के समान रूप धारण कर सकता है। वर्तमान में इच्छाधारी नाग और नागिन की कहानियां प्रचलन में है। 
 
हालांकि वैज्ञानिक अब अपने शोध के आधार पर कहने लगे हैं कि सांप विश्व का सबसे रहस्यमय प्राणी है और दक्षिण एशिया के वर्षा वनों में उड़ने वाले सांप पाए जाते हैं। उड़ने में सक्षम इन सांपों को क्रोसोपेलिया जाति से संबंधित माना जाता है। वैज्ञानिकों ने 2 और 5 फन वाले सांपों के होने की पुष्‍टि की है लेकिन 10 फन वाले सांप अभी तक नहीं देखे गए हैं।

कबंध : सीता की खोज में लगे राम-लक्ष्मण को दंडक वन में अचानक एक विचित्र दानव दिखा जिसका मस्तक और गला नहीं थे। उसके मस्तक पर केवल एक आंख ही नजर आ रही थी। वह विशालकाय और भयानक था। उस विचित्र दैत्य का नाम कबंध था।
रामायणकाल में संपूर्ण दक्षिण भारत और दंडकारण्य क्षेत्र (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़) पर राक्षसों का आतंक था। दंड नामक राक्षस के कारण ही इस क्षेत्र का नाम दंडकारण्य पड़ा था।
 
कबंध ने राम-लक्ष्मण को एकसाथ पकड़ लिया। राम और लक्ष्मण ने कबंध की दोनों भुजाएं काट डालीं। कबंध ने भूमि पर गिरकर पूछा- आप कौन वीर हैं? परिचय जानकर कबंध बोला- यह मेरा भाग्य है कि आपने मुझे बंधन मुक्त कर दिया। कबंध ने कहा- मैं दनु का पुत्र कबंध बहुत पराक्रमी तथा सुंदर था। राक्षसों जैसी भीषण आकृति बनाकर मैं ऋषियों को डराया करता था इसीलिए मेरा यह हाल हो गया था।
 
वैज्ञानिक सत्यता : कुछ समय पूर्व छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के एक सरकारी अस्पताल में एक विचित्र मानव का जन्म हुआ जिसकी दो नहीं एक आंख थी और वह भी मस्तक पर। अथक प्रयासों के बाद भी डॉक्टर उसकी जान नहीं बचा पाए। जिले के सिहावा निवासी रितु पटेल पति उमेश को नगर के शासकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। कुछ ही देर में रितु ने एक बच्चे को जन्म दिया जिसे देखकर डॉक्टर भी दंग रह गए। बच्चे के चेहरे पर एक ही आंख थी। उसकी आंख माथे पर सामान्य से बड़ी थी। उसके सिर का आकार काफी छोटा था। जन्म से महज डेढ़ घंटे बाद ही उसकी मौत हो गई।