गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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महाभारत की ये 10 घटनाएं कहां घटी थी, जानिए..

महाभारत की ये 10 घटनाएं कहां घटी थी, जानिए.. | mahabharata historical places
महाभारत में कई घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या धृष्टद्युम्न, शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं।
दरअसल, महाभारत की कहानी युद्ध के बाद समाप्त नहीं होती है। असल में महाभारत की कहानी तो युद्ध के बाद शुरू होती है, जो आज भी जारी है। जानकार जानते हैं कि वर्तमान युग महाभारत की ही देन है। खैर, हम आपको बताएंगे महाभारत से जुड़ी घटनाओं से जुड़े कुछ ऐतिहासिक स्थलों के बारे में जहां आप कभी गए हों या नहीं भी गए हों।
 
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महाभारत का युद्ध : यह तो सभी जानते हैं कि महाभारत का युद्ध कुरुक्षे‍त्र में हुआ था। यह भी सभी जानते हैं कि भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है कुरुक्षेत्र। कुरुक्षेत्र में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महाभारत काल के कई अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनमें बाण और भाले प्रमुख हैं।
 
कुरुक्षेत्र की भूमि पर कई महान योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए थे। कुरूक्षेत्र ही वह स्थान है जहां पर भगवान श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन का मोहभंग करने के लिए उसे 'गीता' का ज्ञान दिया था। 
 
कुरुक्षेत्र में प्राचीन कुआं आज भी देखा जा सकता है। माना जाता है क‌ि इसी जगह पर महाभारत युद्ध में कर्ण ने चक्रव्यूह की रचना करके अभ‌िमन्यु को धोखे से मारा था। जिससे वह वीरगति को प्राप्त हुआ था।
 
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लाक्षागृह कांड : शकुनी की नीति के तहत दुर्योधन ने पांडवों के रुकने के लिए एक ऐसा महल बनवाया था, जो लाख से बना थे जिसे बाद में लाक्षागृह कहा गया। लाख से बनी चुड़ियां तो आपने देखी ही होगी। यह लाख तेती से पिघलता है। दुर्योधन की योजना के अनुसार इस महल में रात में चुपचाप से आग लगा दी गई थी ताकि सोते हुए पांडवों की इस महल में ही जलकर मृत्यु हो जाए। किन्तु पांडवों के जासूसों ने उन्हें इस योजना की सूचना देदी और वे रात को ही एक गुप्त सुरंग से निकल भागे। ये सुरंग आज भी है, जो हिंडन नदी के किनारे पर खुलती है।
 
लाख से बनें महल के अवशेष आज भी बरनावा में पाए जाते हैं। यह बरनावा या वारणावत नामक स्थान मेरठ जिले में स्थित है। मेरठ से 35 और सरधना से 17  किलोमीटर दूर बागपत जिले में स्थित एक तहसील का नाम वारणावत है। यहां महाभारत कालीन लाक्षाग्रह चिन्हित है। लाक्षाग्रह नामक इमारत के अवशेष यहां आज एक टीले के रूप में दिखाई देते हैं।
 
लाक्षागृह से निकलने पर भटकते हुए पांडव वर्तमान नगालैंड में पहुंच गए थे। वहां पर राक्षसी ह‌िड‌िंबा संग भीम का विवाह हुआ था तत्पश्चात उनका घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। जोकि भीम के समान ही बलशाली था। भीम अपने पुत्र के साथ जिन गो‌‌ट‌ियों से शतरंज खेला करते थे। वह आज भी नागालैंड के द‌िमापुर में देखी जा सकती हैं।
 
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भीम नहीं उठा पाएं थे हनुमानजी की पूंछ : सभी को यह घटन तो मालूम ही होगी की बलशाली भीम हनुमानजी की पूंछ नहीं उठा पाए थे। कुछ विद्वान मानते हैं कि यह घटना गंधमादन पर्वत पर घटी थी। हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था।

आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। इस क्षेत्र में दो रास्तों से जाया जा सकता है। पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे और दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे और तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए। संभवत महाभारत काल में अर्जुन ने असम के एक तीर्थ में जब हनुमानजी से भेंट की थी, तो हनुमानजी भूटान या अरुणाचल के रास्ते ही असम तीर्थ में आए होंगे।
 
हालांकि कुछ विद्वानों अनुसार उत्तराखंड में जोशीमठ से लगभग 25 क‌िलोम‌‌ीटर दूर हनुमान चट्टी है। यहां भीम और हनुमानजी की भेंट हुई थी और हनुमानजी ने भीम को महाभारत युद्ध में व‌िजयी होने का आशीष द‌िया था।
 
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बर्बरीक का सिर काटकर यहां रखा था : भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के बारे में सभी जानते हैं कि वह मात्र तीन बाण ही लेकर युद्ध क्षे‍त्र में लड़ने जा रहे थे।

इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के भेष में उनसे दान में उनका शीश मांग लिया था। दान के पश्चात्‌ श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया। बर्बरीक ने श्रीकृष्‍ण के समक्ष एक यह इच्छा भी व्यक्त की कि मैं यह युद्ध देखना चाहता हूं तब श्रीकृष्ण ने उसकी इच्छा से उस शीश को श्रीकृष्ण ने एक स्थान पर रखवा दिया लेकिन वह जिधर भी देखता उधर की सेना का सफाया हो जाता ऐसे में श्रीकृष्‍ण ने उसके शीश को दूर एक स्थान पर रखवा दिया।
 
आज उस स्थान को खाटू श्याम का स्थान कहा जाता है। श्रीकृष्ण के वरदान स्वरूप ही उनकी पूजा श्याम रूप में की जाती है। राजस्थान के शेखावाटी के सीकर जिले में स्थित है परमधाम खाटू। खाटू का श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है, लेकिन वर्तमान मं‍दिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के मुताबिक सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।
 
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सिंधु घाटी के नगर क्यों हो गए नष्ट? 
महाभारत का युद्ध आज से लगभग 5,300 वर्ष पूर्व हुआ था। उस दौरान गुरु द्रोण के पुत्र अश्‍वत्थामा ने भगवान कृष्ण के मना करने के बावजूद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलाना तो जानता था, पर उसे लौटाना नहीं जानता था।
उस अतिप्रचंड तेजोमय अग्नि को अपनी ओर आता देख अर्जुन भयभीत हो गया और उसने श्रीकृष्ण से विनती की। श्रीकृष्ण बोले, 'है अर्जुन! तुम्हारे भय से व्याकुल होकर अश्वत्थामा ने यह ब्रह्मास्त्र तुम पर छोड़ा है। इस ब्रह्मास्त्र से तुम्हारे प्राण घोर संकट में हैं। इससे बचने के लिए तुम्हें भी अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा, क्योंकि अन्य किसी अस्त्र से इसका निवारण नहीं हो सकता।'
 
कहते हैं कि अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी छोड़ा। अश्वत्थामा ने पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था और अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए। दोनों द्वारा छोड़े गए इस ब्रह्मास्त्र के कारण लाखों लोगों की जान चली गई थी।
 
आज जिस हिस्से को पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है, महाभारतकाल में उसके उत्तरी हिस्से को गांधार, मद्र,  कैकय और कंबोज की स्थली कहा जाता था। अयोध्या और मथुरा से लेकर कंबोज (अफगानिस्तान का उत्तर इलाका) तक आर्यावर्त के बीच वाले खंड में कुरुक्षेत्र होता था, जहां यह युद्ध हुआ। उस काल में कुरुक्षेत्र बहुत बड़ा क्षेत्र होता था। आजकल यह हरियाणा का एक छोटा-सा क्षेत्र है।
 
उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। सिन्धु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कुरु रहते थे। यहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर बसे थे, जो मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी तक फैले थे।
 
सिन्धु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की प्राचीनता और उनके रहस्यों को आज भी सुलझाया नहीं जा सका है। मोहन जोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।
 
जब पुरातत्वशास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहन जोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्होंने देखा कि वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे, मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था।
 
उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहन जोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।
 
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भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्म स्थल : उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा नगरी भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली होने के कारण यह महाभारत की घटनाओं का प्रमुख केंद्र रहा है। महाभारत काल में इस नगरी पर जरासंध ने कई आक्रमण किए थे।
जिस स्थान पर कंस रहता था उस स्थान को कंस के क‌िले के नाम से जाना जाता है। कंस के आतंक को रोकने के लिए विष्णु भगवान ने श्रीकृष्‍ण अवतार लेना था। कंस उनके इस अवतार को रोकने और अवतार उपरांत उन्हें मारने का षड‍्यंत्र इसी कीले में रचता था। यह किला भी मुथरा में आज भी है।
 
अगले पन्ने पर सातवां ऐतिहासक घटना स्थल...
 
व्यास पोथी : व्यास पोथी नामक स्थान बद्रीनाथ से 3 क‌िलोमीटर की दूरी पर उत्तराखंड के माणा गांव में स्थित है। यहां महाभारत के रचनाकार महर्षि वेद व्यासजी की गुफा है। इसके समीप ही गणेश गुफा है, मान्यता है की इसी गुफा में व्यासजी ने महाभारत को मौखिक रूप दिया था और गणेशजी ने उसे लिखा था।
 
माना जाता है की उत्तराखंड में अवस्थित पांडुकेश्वर तीर्थ में अपनी इच्छा से राज्य त्याग करने के बाद महाराज पांडु अपनी रानियों कुंती और मादरी संग निवास करते थे। इसी स्थान पर पांचों पांडवों का जन्म हुआ था।
 
अगले पन्ने पर आठवां ऐतिहासिक घटना स्थल...
 

जरासंध का अखाड़ा : ब‌िहार के राजगृह में अवस्‍थ‌ित है कंस के ससुर जरासंध का अखाड़ा। जरासंध बहुत बलवान था। मान्यता है की इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्‍ण के इशारे पर भीम ने उसका वध क‌िया था।
राजगृह को राजगीर कहा जाता है। रामायण के अनुसार ब्रह्मा के चौथे पुत्र वसु ने 'गिरिव्रज' नाम से इस नगर की स्थापना की। बाद में कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले वृहद्रथ ने इस पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया। वृहद्रथ अपनी शूरता के लिए मशहूर था।
 
अगले पन्ने पर नौवां ऐतिहासिक घटना स्थल...
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अर्जुन गुफा : कहते हैं कौरवों से अपना राज्य हारने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण के कहने पर अर्जुन मनाली के प‌िरनी में तप करने चले गए थे। उस स्थान को अर्जुन गुफा के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर भगवान शिव ने अर्जुन को पशुपताशस्‍त्र द‌िया था।
मनाली भारत के हिमाचल प्रदेश का एक शहर है। मनाली कुल्लु घाटी के उत्तर में स्थित लोकप्रिय हिल स्टेशन और पर्यटन स्‍थल है। पौराणिक ग्रंथों में मनाली को मनु का घर कहा गया है। कहा जाता है कि जब सारा संसार प्रलय में डूब गया था तो एकमात्र मनु की जीवित बचे थे। मनाली में आकर ही उन्होनें मनुष्य की पुर्नरचना की। इसलिए मनाली को हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल भी माना जाता है। इसके अलावा मनाली में हिन्दू गाथाओं से जुड़े और भी कई प्राचीन स्थल है।
 
अगले पन्ने पर दसवां ऐतिहासिक घटना स्थल...
 

हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ : दिल्ली को उस काल में इंद्रप्रस्थ कहा जाता था और मेरठ को हस्तीनापुर। दिल्ली में पुराना किला इस बात का सबूत है। खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर पुरातत्वविदों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि पांडवों की राजधानी इसी स्थल पर रही होगी। दिल्ली कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है।
पुराना किला दिल्ली में यमुना नदी के पास स्थित है, जिसे पांडवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुनरोद्धार होता रहा। महाभारत के अनुसार यह पांडवों की राजधानी थी। दूसरी ओर कुरु देश की राजधानी गंगा के किनारे हस्तिनापुर में स्थित थी।
 
अगले पन्ने पर ग्यारहवां ऐतिहासिक घटना स्थल...
 

द्वारिका : कहते हैं कि महाभारत युद्ध के पश्चात द्वारिका पर अंजान शक्तियों ने हमला किया था जिसके चलते वह नष्ट हो गई थी और कालांतर में यह समुद्र में डूब गई थी। द्वारिका उस काल में महाभारत काल का प्रमुख केंद्र हुआ करता था जो कई प्राचीन और ऐतिहासिक घटनाओं का केंद्र था।
गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे 7000-3500 वर्ष पुराने शहर खोजे गए हैं, जिनको महाभारत में वर्णित द्वारका के सन्दर्भों से जोड़ा गया है। हालांकि द्वारिका पर पहले प्राचीन शहर कुशस्थली था। ययाति ने यह संपूर्ण क्षेत्र अपने पुत्र यदु को सौंपा था। इसीलिए श्रीकृष्ण अपने अट्ठारह कुल के बंधु बांधवों के लेकर द्वारिका में बस गए थे।