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द्रौपदी का पांच पतियों से कैसा था संबंध?

Draupadi | द्रौपदी का पांच पतियों से कैसा था संबंध?
संभवत: द्रौपदी भारत की वह प्रथम महिला है जिसके पांच पति थे? या वह पांच पुरुषों के साथ रमण करती थी? द्रौपदी की कथा-व्यथा से बहुत कम लोग ही परिचित होंगे। क्या उस काल का समाज बहुपतित्व वाली स्त्री को एक्सेप्ट कर सकता था? क्या कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ? या कि समाज में बहुपतित्व और बहुपत्नी वाली व्यवस्था थी?

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या आज के लोग यह समझते हैं कि द्रौपदी ने विवाह तो सिर्फ अर्जुन से ही किया था, तो क्या उसका रिश्ता सभी के साथ नहीं था? क्या द्रौपदी सिर्फ अर्जुन को ही प्यार करती थी? क्या सचमुच में द्रौपदी के पांच पति थे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके उत्तर महाभारत में ही मिलेंगे। यहां प्रस्तुत है जनमानस में प्रचारित कथा...

 

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द्रौपदी के पांच नाम : द्रौपदी को 'द्रौपदी' इसलिए कहा जाता था कि वे राजा द्रुपद की पुत्री थीं। उन्हें 'पांचाली' इसलिए कहा जाता था कि राजा द्रुपद पांचाल देश के राजा थे। उनका एक नाम 'कृष्णा' भी था, क्योंकि वे भगवान कृष्ण की सखी थीं। उनका एक नाम 'याज्ञनी' भी था, क्योंकि वे यज्ञ करने के बाद पैदा हुई थीं। और अंत में उनका एक नाम 'सेरंध्री' भी था। 'सेरंध्री' का अर्थ होता है पति के अलावा अन्य पुरुषों के साथ रमण करने वाली।
 
लेकिन यह सच नहीं है..अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी ने राजा विराट के यहां उनकी पत्नी सुदेष्णा के सौंदर्य की देखरेख करने वाली के रूप में काम किया इसलिए उनका नाम सेरंध्री था।
 
सेरंध्री के रूप, गुण तथा सौन्दर्य से प्रभावित होकर महारानी सुदेष्णा ने उसे अपनी मुख्य दासी के रूप में नियुक्‍त कर लिया था। कुछ लोग कहते हैं कि वे राजा विराय के राज्य में सुगंध और इत्र बेचती थी इसलिए उसे सेरंध्री कहा जाता था।
 
उल्लेखनीय है कि 12 वर्ष के वनवास के बाद पांडवों ने अज्ञातवास में मत्स्य देश के राजा विराट के राज्य में समय व्यतीत किया था। पांचों ने अपनी योग्यता अनुसार राजा के यहां भिन्न भिन्न कार्य को संभाला था।

 

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पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला था। इस दौरान पांचों पांडव एक कुम्हार के घर में रहा करते थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन-यापन करते थे। ऐसे में भिक्षाटन के दौरान उन्हें द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना मिली।

एक यंत्र में बड़ी-सी मछली घूम रही थी। उसकी आंख में तीर मारना था और वह भी तैलपात्र में उसकी परछाई देखकर। यह भी कि एक नहीं, पूरे पांच तीर मारना थे।

एक के बाद एक सभी राजा-महाराजा एवं राजकुमारों ने ऊपर घूमती हुई मछली की आंख पर उसके प्रतिबिम्ब को नीचे जल में देखकर निशाना साधने का प्रयास किया किंतु सफलता हाथ न लगी और वे कान्तिहीन होकर अपने स्थान पर लौट आए। इन असफल लोगों में जरासंध, शल्य, शिशुपाल तथा दुर्योधन, दुःशासन आदि कौरव भी सम्मिलित थे।

कौरवों के असफल होने पर एक ब्राह्मण ने राजकुमारी को प्राप्त करना चाहा। ब्राह्मण के भेष में अर्जुन ने तैलपात्र में प्रतिबिम्ब को देखते हुए एक ही बाण से निशाना लगा डाला। द्रौपदी ने तुरंत आगे बढ़कर अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी। यह सब देखकर ‍क्षत्रियों ने आपत्ति दर्ज कराई क‍ि यह प्रतियोगिता सिर्फ क्षत्रियों के लिए आयोजित थी फिर एक ब्राह्मण को जीत देना उचित नहीं। वहां युद्ध की स्थिति बन गई।

राजा द्रुपद पंडितों के भेष में छुपे हुए पांडवों को पहचान नहीं पाए, इसलिए उन्हें यह चिंता सता रही थी कि आज बेटी का स्वयंवर उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं हो पाया। राजा द्रुपद की इच्छा थी कि उनकी पुत्री का विवाह किसी पांडु पुत्र के साथ हो, क्योंकि उनकी राजा पांडु से गहरी मित्रता रही थी, लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि यही पांडु पुत्र हैं। तब युधिष्ठिर ने एक तरफ ले जाकर राजा द्रुपद को अपनी सच्चाई बताई। राजा द्रुपद की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

स्वयंवर की इस शर्त को अर्जुन ने पूर्ण किया था तब कायदे से द्रौपदी का विवाह अर्जुन के साथ हो जाना चाहिए थे, लेकिन...

 

अगले पन्ने पर तब किसके साथ हुआ द्रौपदी का विवाह...

 


धर्मराज युधिष्ठिर की बात सुनकर द्रुपद प्रसन्न हो गए। उसके बाद द्रुपद ने युधिष्ठिर से कहा कि अब आप अर्जुन को पाणिग्रहण की आज्ञा दें। तब युधिष्ठिर ने कहा कि राजन विवाह तो मुझे भी करना ही है। द्रुपद बोले यह तो अच्छी बात है, मैं भी चाहता हूं कि आप द्रौपदी से विवाह कर लें। युधिष्ठिर ने कहा- राजन राजकुमारी द्रौपदी हम सभी की पटरानी होगी।

युधिष्ठिर की ऐसी बातें सुनकर राजा द्रुपद बोले कि एक राजा की बहुत-सी रानियां तो हो सकती हैं, परंतु एक स्त्री के बहुत से पति हो, ऐसा सुनने में नहीं आया है। युधिष्ठिर आप तो धर्म के जानकार धर्मराज हैं, आपको ऐसी बातें नहीं करना चाहिए। आपको तो यह सोचना भी नहीं चाहिए। युधिष्ठिर के साथ द्रुपद इस बात पर विचार कर ही रहे थे तभी वहां वेद व्यासजी आए और उन्होंने राजा द्रुपद को एकांत में ले जाकर समझाया।

व्यास ने कहा कि द्रौपदी अपने पिछले जन्म में बहुत सुन्दर युवती थी। सर्वगुण संपन्न होने के कारण उसे योग्य वर नहीं मिल रहा था इसलिए उसने भगवान शंकर की तपस्या की और तब शंकरजी प्रकट हुए। उस समय द्रौपदी ने हड़बड़ाहट में पांच बार वर मांगे इसलिए उसे शिवजी के वरदान के कारण इस जन्म में पांच पति प्राप्त होंगे। आप इसे पांडवों की पटरानी बनने से रोक नहीं सकते। यह सुनकर द्रुपद ने कहा कि भगवान शंकर ने जैसा वर दिया था, वैसा ही होना चाहिए फिर चाहे यह धर्मसम्मत हो या अधर्म हो।

 

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तब द्रुपद ने व्यासजी के साथ युधिष्ठिर के पास जाकर कहा कि आज ही विवाह के लिए शुभ दिन व शुभ मुहूर्त है। आज चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र पर है इसलिए आज तुम द्रौपदी के साथ पाणिग्रहण करो। यह निर्णय होते ही द्रौपदी को श्रृंगारित कर मंडप में लाया गया। पांचों पांडव भी सज-धजकर मंडप में पहुंचे। पांचों ने एक-एक दिन द्रौपदी से पाणिग्रहण किया।

विवाह में राजा द्रुपद ने दहेज में बहुत से रत्न, धन और गहनों के साथ ही हाथी-घोड़े भी दिए। तब द्रुपद की रानियों ने कुंती के पास आकर उनके पैरों पर सिर रखकर प्रणाम किया। कुंती ने द्रौपदी को आशीर्वाद दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने भी पांडवों का विवाह हो जाने पर भेंट के रूप में अनेक उपहार दिए।

पांडु पुत्र भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने प्रतिदिन की भांति अपनी भिक्षा को लाकर उस सायंकाल में भी अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर को निवेदन कर कहा कि भिक्षा का वितरण किया जाए।

उदार हृदया कुंती ने भीतर से ही द्रौपदी को देखकर कहा कि 'भद्रे! तुम भोजन का प्रथम भाग लेकर उससे बलिवैश्वदेवयज्ञ करो तथा इन ब्राह्मणों को भिक्षा दो। अपने आसपास जो दूसरे मनुष्य आश्रित भाव से रहते हैं, उन्हें भी अन्न परोसो। फिर जो शेष बचे, उसका आधा हिस्सा भीमसेन के लिए रखो। पुन: शेष के छह भाग करके चार भाइयों के लिए चार भाग पृथक-पृथक रख दो, तत्पश्चात मेरे और अपने लिए भी एक-एक भाग अलग-अलग परोस दो।'

उनकी माता कहती हैं कि 'कल्याणि! ये जो गजराज के समान शरीर वाले हष्ट-पुष्ट गोरे युवक बैठे हैं इनका नाम भीम है, इन्हें अन्न का आधा भाग दे दो, क्योंकि यह वीर सदा से ही बहुत खाने वाले हैं।'

राजा द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न पांडवों के पीछे-पीछे उनका सही ठिकाना जानने और उन्हें सही प्रकार से समझने के लिए भेष बदलकर आ रहे थे। उन्होंने पांडवों की चर्चा सुनी उनका शिष्टाचार देखा और वे प्रसन्न हुए इस बात के लिए कि मेरी पुत्री सुखपूर्वक रह रही है।

अगले पन्ने पर द्रौपदी कैसे खुश करती थी पांचों पांडवों को...


एक दिन की बात है, पांडव और ब्राह्मण लोग आश्रम में बैठे थे। उसी समय द्रौपदी और सत्यभामा भी आपस में मिलकर एक जगह बैठी थीं। दोनों ही आपस में बातें करने लगीं। सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा- बहिन, तुम्हारे पति पांडवजन तुमसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। मैं देखती हूं कि वे लोग सदा तुम्हारे वश में रहते हैं। तुम मुझे भी ऐसा कुछ बताओ कि मेरे श्यामसुंदर भी मेरे वश में रहें।

तब द्रौपदी बोली- सत्यभामा, ये तुम मुझसे कैसी दुराचारिणी स्त्रियों के बारे में पूछ रही हो। जब पति को यह मालूम हो तो वह अपनी पत्नी के वश में नहीं हो सकता। तब सत्यभामा ने कहा- तो आप बताएं कि आप पांडवों के साथ कैसा आचरण करती हैं?

उचित प्रश्न जानकर तब द्रौपदी बोली- सुनो मैं अहंकार और काम, क्रोध को छोड़कर बड़ी ही सावधानी से सब पांडवों की स्त्रियों सहित सेवा करती हूं।

मैं ईर्ष्या से दूर रहती हूं। मन को काबू में रखकर कटु भाषण से दूर रहती हूं। किसी के भी समक्ष असभ्यता से खड़ी नहीं होती हूं। बुरी बातें नहीं करती हूं और बुरी जगह पर नहीं बैठती।

पति के अभिप्राय को पूर्ण संकेत समझकर अनुसरण करती हूं। देवता, मनुष्य, सजा-धजा या रूपवान कैसा ही पुरुष हो, मेरा मन पांडवों के सिवाय कहीं नहीं जाता। उनके स्नान किए बिना मैं स्नान नहीं करती। उनके बैठे बिना स्वयं नहीं बैठती। जब-जब मेरे पति घर में आते हैं, मैं घर साफ रखती हूं। समय पर भोजन कराती हूं। सदा सावधान रहती हूं। घर में गुप्त रूप से अनाज हमेशा रखती हूं। मैं दरवाजे के बाहर जाकर खड़ी नहीं होती हूं। पतिदेव के बिना अकेले रहना मुझे पसंद नहीं। साथ ही सास ने मुझे जो धर्म बताए हैं, मैं सभी का पालन करती हूं। सदा धर्म की शरण में रहती हूं।

 

अगले पन्ने पर द्रौपदी के किस पांडव से कौन-सा पुत्र जन्मा...

 


द्रौपदी के पांच पुत्र थे : द्रौपदी ने भी एक-एक वर्ष के अंतराल से पांचों पांडव के एक-एक पुत्र को जन्म दिया।

* युधिष्ठिर के पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य।
* भीमसेन से उत्पन्न पुत्र का नाम सुतसोम।
* अर्जुन के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा।
* नकुल के पुत्र का नाम शतानीक।
* सहदेव के पुत्र का नाम श्रुतसेन रखा गया।

पांडवों की अन्य पत्नियों के नाम और उनसे जन्मे पुत्रों के नाम... अगले पन्ने पर...


1. युधिष्ठिर : युधिष्ठिर की दूसरी पत्नी देविका थी। देविका से धौधेय नाम का पुत्र जन्मा।
2. अर्जुन : अर्जुन की द्रौपदी के अलावा सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक तीन और पत्नियां थीं। सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म हुआ।
3. भीम : द्रौपदी के अलावा भीम की हिडिम्‍बा और बलंधरा नामक दो और पत्नियां थीं। हिडिम्‍बा से घटोत्कच और बलन्धरा से....।
4. नकुल : द्रौपदी के अलावा नकुल की एक और पत्नी थी जिसका नाम करेणुमती था। करेणुमती से निरमित्र नामक पुत्र का जन्म हुआ।
5. सहदेव : सहदेव की दूसरी पत्नी का नाम विजया था जिससे इनका सुहोत्र नामक पुत्र जन्मा