गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

तिथियों का चमत्कार, निरोगी काया और जेब में माया

तिथियों का चमत्कार, निरोगी काया और जेब में माया - tithi hindu tithi calendar
शुरुआत में यह बात लिख देना जरूरी है कि प्रत्येक तिथि और वार का हमारे मन और मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है। इस असर को जानकर ही कोई कार्य किया जाए तो चमत्कारिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तिथि और वार का निर्धारण सैंकड़ों वर्षों की खोज और अनुभव के आधार पर किया गया है। इस तिथि के प्रभाव को जानकर ही व्रत और त्योहारों को बनाया गया। जन्मदिन का सही समय या तारीख तिथि ही है।
जब से हिन्दूजन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अपने व्रत, त्योहर और जन्मदिन  देखने लगा है तब से वह बड़ा भ्रमित रहता है। उसे लगता है कि दो होली और दो दीपावली, लेकिन ऐसा होता नहीं है।
 
हिन्दू पंचांग को विस्तार से जानने के लिए पढ़ें.... हिन्दू कैलेंडर और पंचांग के विज्ञान को जानिए... 
 
अंग्रेजी कैलेंडर सूर्य पर आधारित है तो इस्लामिक कैलेंडर चंद्र पर। लेकिन हिन्दू कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र तीनों पर आधारित है। समय की संपूर्ण धारण को समझकर ही ऐसा किया गया है। सूर्य मास का दिन बड़ा होता है तो चंद्रमास का छोटा। सभी का समय निर्धारण करने में योगदान रहता है। 
 
हिन्दू पंचांग के महीने नियमित होते हैं और चंद्रमा की गति के अनुसार 29.5 दिन का एक चंद्रमास होता है। हिन्दू सौर-चंद्र-नक्षत्र पंचांग के अनुसार माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। पंचांग के अनुसार पूर्णिमा माह की 15वीं और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चन्द्रमा आकाश में पूर्ण रूप से दिखाई देता है। पंचांग के अनुसार अमावस्या माह की 30वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चन्द्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है।
 
30 तिथियों के नाम निम्न हैं:- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)। पूर्णिमा से अमावस्या तक 15 और फिर अमावस्या से पूर्णिमा तक 30 तिथि होती है। तिथियों के नाम 16 ही होते हैं। इससे पहले कि हम आपको ‍तिथियों के रहस्य और चमत्कार को उजागर करें आप पहले जाने ये कि कैसे और कब बदलती है तिथियां...
 
अगले पन्ने पर कैसे और कब बदलती है तिथि जानिए...

तिथि क्या है जानिए: आमतौर पर अंग्रेजी तरीखें 24 घंटे में बदलती है जबकि हिन्दू पंचाग अनुसार एक तिथि उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। इसका मतलब यह कि कोई तिथि 19 घंटे की होगी तो कोई तिथि 24 घंटे की भी हो सकती है। अब यदि कोई तिथि 19 घंटे की होगी तो इसका मतलब है कि मध्यांतर में ही या मध्य रात्रि में ही तिथि बदल जाएगी। आपने देखा होगा चांद को दिन में भी। 
भारतीय पंचांग के अनुसार सूर्योदय से दिन बदलते हैं। जिन्हें सावन दिन कहते हैं, मतलब सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक। जहां तक तिथि का प्रश्न है तो वह सूर्य और चंद्रमा के अंतर से तय की जाती है लेकिन उसकी गणना भी सूर्योदय से ही की जाती है। उसी तिथि को मुख्य माना जाता है जो उदय काल में हो। प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष में 15 तिथियां होती है, लेकिन क्योंकि सौर दिन से चंद्र दिन छोटा होता है इसलिए कई बार एक दिन में दो या तीन तिथियां भी पड़ सकती हैं। इसमें तिथियों की तीन स्थितियां बनती हैं। जिस तिथि में केवल एक बार सूर्योदय होता है उसे सुधि तिथि कहते हैं, जिसमें सूर्योदय होता ही नहीं यानी वह सूर्योदय के बाद शुरू होकर अगले सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है उसे छह तिथि कहते हैं, इसमें एक दिन में तीन तिथियां हो जाती है और तीसरी स्थिति वो जिसमें दो सूर्योदय हो जाए उसे तिथि वृद्धि कहते हैं। नहीं समझ में आया? कोई बात नहीं किसी ज्योतिष से अच्छे से समझ लेना। अब जानिए प्रत्येक तिथि का आपके जीवन पर प्रभाव...
 
अगले पन्ने पर जानिए कौन-सी तिथि को रहे सावधान..
 

पूर्णिमा : पूर्णिमा के दिन व्यक्ति को सावधान रहना चाहिए। इस दिन आपकी मानसिक हलचल बढ़ जाती है। इसी दिन घटना, दुर्घटनाएं ज्यादा होती है और इसी दिन व्यक्ति के विचार प्रबल होते हैं। यदि आप नकारात्मक विचारों के हैं तो इस दिन वे चरम पर होंगे। इस दिन चंद्रमा अपना प्रभाव ज्यादा छोड़ता है। यही वजह रही है कि हमारे ऋषि मुनियों ने इस दिन को व्रत का दिन बनाया है और इस दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है।
 
कुछ मुख्य पूर्णिमा:- कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा आदि।
 
अमावस्या : अमावस्या की तिथि को नकारात्मक शक्तियों से जोड़ा गया है। इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता और सभी ओर मरघट सा सन्नाटा रहता है।
 
कुछ मुख्‍य अमावस्या:- भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सोमवती अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या आदि।
 
अगले पन्ने पर जानिए एकादशी का चमत्कारिक लाभ...
 

एकादशी : व्रतों में प्रमुख व्रत होते हैं नवरात्रि के, पूर्णिमा के, अमावस्या के, प्रदोष के और एकादशी के। इसमें भी सबसे बड़ा जो व्रत है वह एकादशी का है। माह में दो एकादशी होती है। अर्थात आपको माह में बस दो बार और वर्ष के 365 दिन में मात्र 24 बार ही नियम पूर्वक व्रत रखना है।
चंद्रमा की स्थिति के कारण व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति खराब या अच्छी होती है। चंद्रमा की स्थिति का प्रत्येक व्यक्ति पर असर पड़ता ही पड़ता है। ऐसी दशा में एकादशी का ठीक से व्रत रखने पर, सही तरीके से व्रत रखने पर आप चंद्रमा के खराब प्रभाव को, नकारात्मक प्रभाव को रोक सकते हैं। चंद्रमा ही नहीं यहां तक की बाकी ग्रहों के असर को भी आप बहुत हद तक कम कर सकते हैं। एकादशी के व्रत का प्रभाव आपके मन और शरीर दोनों पर पड़ता है।
 
एकादशी के व्रत से आप अशुभ संस्कारों को भी नष्ट कर सकते हैं। पुराणों अनुसार जो व्यक्ति एकादशी करता रहता है वह जीवन में कभी भी संकटों से नहीं घिरता और उनके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।
 
26 एकादशियां : चैत्र माह में कामदा और वरूथिनी एकादशी, वैशाख माह में मोहिनी और अपरा, ज्येष्ठ माह में निर्जला और योगिनी, आषाढ़ माह में देवशयनी एवं कामिका, श्रावण माह में पुत्रदा एवं अजा, भाद्रपद में परिवर्तिनी एवं इंदिरा, आश्‍विन माह में पापांकुशा एवं रमा, कार्तिक माह में प्रबोधिनी एवं उत्पन्ना, मार्गशीर्ष में मोक्षदा एवं सफला, पौष में पुत्रदा एवं षटतिला, माघ में जया एवं विजया, फाल्गुन में आमलकी एवं पापमोचिनी, अधिकमास (तीन वर्ष में एक बार) में पद्मिनी एवं परमा एकादशी। वर्ष में 24 एकादशी जबकि प्रत्येक तीसरे वर्ष 26 एकादशी होती है। विजया एकादशी से भयंकर से भयंकर परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं। इससे आप अपने श‍त्रुओं को भी परास्त कर सकते हैं। सभी का महत्व उनके नाम से ही प्रकट होता है।
 
अगले पन्ने पर जानिए प्रदोष का रहस्य....
 

प्रदोष व्रत फल : हिन्दू धर्म में एकादशी को विष्णु से तो प्रदोष को शिव से जोड़ा गया है। हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है। आपका ईष्‍ट कोई भी आप यह दोनों ही व्रत रख सकते हैं। जरूरी नहीं है कि प्रदोष रखते वक्त शिव की ही उपासना करें। दोनों ही व्रतों का संबंध चंद्र के सुधारने और भाग्य को जाग्रत करने से है अत: किसी भी देव का पूजन करें।
हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। सोमवार का प्रदोष, मंगलवार को आने वाला प्रदोष और अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का महत्व और लाभ अलग अलग है।
 
रविवार : जो प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है उसे भानुप्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं। इस दिन नियम पूर्वक व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति और लंबी आयु प्राप्त होती है। रवि प्रदोष का संबंध सीधा सूर्य से होता है। अत: चंद्रमा के साथ सूर्य भी आपके जीवन में सक्रिय रहता है। यह सूर्य से संबंधित होने के कारण नाम, यश और सम्मान भी दिलाता है। अगर आपकी कुंडली में अपयश के योग हो तो यह प्रदोष करें। रवि प्रदोष रखने से सूर्य संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती है।
 
सोमवार : सोमवार को त्रयोदशी तिथि आने पर इसे सोम प्रदोष कहते हैं। यह व्रत रखने से इच्छा अनुसार फल प्राप्ति होती है। जिसका चंद्र खराब असर दे रहा है उनको तो यह प्रदोष जरूर नियम ‍पूर्वक रखना चाहिए जिससे जीवन में शांति बनी रहेगी। अक्सर लोग संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रखते हैं।
 
मंगलवार : मंगलवार को आने वाले इस प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। इस दिन स्वास्थ्य सबंधी तरह की समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दिन प्रदोष व्रत विधिपूर्वक रखने से कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।
 
बुधवार : इस दिन को आने वाले प्रदोष को सौम्यवारा प्रदोष भी कहा जाता है यह शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाता है। साथ ही यह जिस भी तरह की मनोकामना लेकर किया जाए उसे भी पूर्ण करता है। यदि आपमें ईष्‍ट प्राप्ति की इच्‍छा है तो यह प्रदोष जरूर रखें।
 
गुरुवार : इस गुरुवारा प्रदोष कहते हैं। इससे आपक बृहस्पति ग्रह शुभ प्रभाव तो देता ही है साथ ही इसे करने से पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अक्सर यह प्रदोष शत्रु एवं खतरों के विनाश के लिए किया जाता है। यह हर तर की सफलता के लिए भी रखा जाता है।
 
शुक्रवार : इसे भ्रुगुवारा प्रदोष कहा जाता है। जीवन में सौभाग्य की वृद्धि हेतु यह प्रदोष किया जाता है। सौभाग्य है तो धन और संपदा स्वत: ही मिल जाती है। इससे जीवन में हर कार्य में सफलता भी मिलती है।
 
शनिवार : शनि प्रदोष से पुत्र की प्राप्ति होती है। अक्सर लोग इसे हर तरह की मनोकामना के लिए और नौकरी में पदोन्नति की प्राप्ति के लिए करते हैं।
 
अगले पन्ने पर जानिए अन्य तिथियों के लाभ के बार में...
 

प्रतिपदा : प्रतिपदा प्रथम तिथि है। प्रतिपदा के स्वामी अग्निदेव हैं। प्रतिपदा को आनंद देने वाली कहा गया है। रविवार एवं मंगलवार के दिन प्रतिपदा होने पर मृत्युदा होती है, लेकिन शुक्रवार को प्रतिपदा सिद्धिदा हो जाती है। मृत्युदा में शुभ कार्य वर्जित जबकि सिद्धिदा में किए गए कार्य सफल होते हैं। भाद्रपद महीने की प्रतिपदा शून्य होती है। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा में चन्द्रमा अस्त रहता है, अतः इसे समस्त शुभ कार्यों में त्याज्य माना गया है। कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में स्थिति एकदम विपरीत होती है। 
द्वितीया : द्वितीया तिथि को सुमंगल कहा जाता है जिसके देवता ब्रह्मा है। यह तिथि भद्रा संज्ञक तिथि है। भाद्रपद में यह शून्य संज्ञक होती है। सोमवार और शुक्रवार को मृत्युदा होती है। बुधवार के दिन दोनों पक्षों की द्वितीया में विशेष सामर्थ आ जाती है और यह सिद्धिदा हो जाती है, इसमें किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।
 
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तृ‍तीया : तृतीया तिथि की स्वामिनी गौरी है। बुधवार को मृत्युदा और मंगल को यह तिथि सिद्धदा होती है। शुक्ल और कृष्ण दोनों ही पक्ष की इस तिथि को शिवपूजन निषेध है। यह तिथि आरोग्य देने वाली है।
चतुर्थी व्रत : चतुर्थी के व्रतों का भी पुराणों में उल्लेख मिलता है। चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश हैं। इस तिथि का नाम 'खला' है और यह  तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है। अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं।
 
यदि चतुर्थी गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी सिद्धिदा होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है। चतुर्थी तिथि की दिशा नैऋत्य है।
 
चतुर्थी के व्रतों के पालन से संकट से मुक्ति मिलती है और आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। प्रत्येक माह में दो चतुर्थी होती है। इस तरह 24 चतुर्थी और प्रत्येक तीन वर्ष बाद अधिमास की मिलाकर 26 चतुर्थी होती है। सभी चतुर्थी की महिमा और महत्व अलग अलग है। 
 
संकट चतुर्थी : माघ मास के कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी, माघी चतुर्थी या तिल चौथ कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना सुख-सौभाग्य की दृष्टि से श्रेष्ठ है।
 
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पंचमी : पंचमी तिथि का स्वामी नाग होता है। यह 'पूर्णा संज्ञक' होकर इसका नाम 'श्रीमती' है। पौष मास के दोनों पक्षों में यह तिथि शून्य फल देती है। पंचमी तिथि की दिशा दक्षिण है।
पंचमी तिथि पर किए गए कार्य शुभफल दायक होते हैं। शनिवार के दिन पंचमी पड़ने पर मृत्युदा होती है जिससे इसकी शुभता में कमी आ जाती है। गुरुवार के दिन यही पंचमी सिद्धिदा होकर विशेष शुभ फलदायी है। शुक्ल पंचमी सुख देवे वाली और कृष्ण पंचमी श्री-प्राप्ति कारक है।
 
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षष्ठी : इस छठ भी कहते हैं। इसके स्वामी कार्तिकेय हैं और इसका विशेष नाम कीर्ति है। रविवार को पड़ने वाली षष्ठी मृत्युदा और शुक्रवार की सिद्धिदा होती है। माघ कृष्ण माह में यह शून्य होती है। इसकी दिशा पश्चिम है। 
सप्तमी : सप्तमी के स्वामी सूर्य और इसका विशेष नाम मित्रपदा है। शुक्रवार को पड़ने वाली सप्तमी मृत्युदा और बुधवार की सिद्धिदा होती है। आषाढ़ कृष्ण सप्तमी शून्य होती है। इस दिनए किए गए कार्य अशुभ फल देते हैं। इसकी दिशा वायव्य है। 
 
अष्टमी : इस आठम या अठमी भी कहते हैं। कलावती नाम की यह तिथि जया संज्ञक है। मंगलवार की अष्टमी सिद्धिदा और बुधवार की मृत्युदा होती है। इसकी दिशा ईशान है।
 
नवमी : यह चैत्रमान में शून्य संज्ञक होती है और इसकी दिशा पूर्व है। शनिवार को सिद्धदा और गुरुवार को मृत्युदा। अर्थात शनिवार को किए गए कार्य में सफलता मिलती है और गुरुवार को किए गए कार्य में सफलता की कोई गारंटी नहीं। 
 
दशमी : शनवार को दशमी मृत्युदा और गुरुवार को सिद्धिदा होती है। अश्विन माह में दशमी शून्य संख्यक होकर शुभकार्यों के लिए वर्जित है। इसकी दिशा उत्तर है।
 
द्वादशी : इसे बारस भी कहते हैं। इसकी दिशा नैऋत्य है। इसका नाम यशोबला और इसकी संज्ञा 'भद्रा' है। सोमवार को मृत्युदा और बुधवार को सिद्धिदा होती है। रविवार को मध्यम फल देने वाली होती है। 
 
चतुर्दशी : चतुर्दशी को चौदस भी कहते हैं।  यह रिक्ता संज्ञक है एवं इसे क्रूरा भी कहते हैं। इसीलिए इसमें समस्त शुभ कार्य वर्जित है। इसकी दिशा पश्‍चिम है।