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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 16 नवंबर 2008 (00:04 IST)

ग्लेशियर के लुप्त होने का खतरा

ग्लेशियर के लुप्त होने का खतरा -
बढ़ते तापमान का भारतीय ग्लेशियरों पर बुरा असर पड़ रहा है और अगर ग्लेशियरों के पिघलने की यही रफ्तार रही तो हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक गायब हो जाएँगे। अध्ययन में पाया गया है कि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बहुत तेज है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि कश्मीर में कोल्हाई ग्लेशियर पिछले साल 20 मीटर से अधिक पिघल गया है, जबकि दूसरा छोटा ग्लेशियर पूरी तरह से लुप्त हो गया है।

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ब्राउन क्लाउड : हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान के मुनीर अहमद का कहना है ग्लेशियरों के इस कदर तेजी से पिघलने की वजह ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ 'ब्राउन क्लाउड' है।

ब्राउन क्लाउड प्रदूषण युक्त वाष्प की मोटी परत होती है। यह तीन किलोमीटर तक मोटी हो सकती है। इसका वातावरण पर विपरीत असर होता है और यह जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभाती है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट की तलहटी में भी काले धूल के कण हैं। इनका घनत्व प्रदूषण वाले शहरों की तरह है।

शोधकर्ताओं का कहना है काली-घनी सतह ज्यादा प्रकाश और ऊष्मा सोखती है, लिहाजा ग्लेशियरों के पिघलने की यह भी वजह हो सकती है।
अगर ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार अनुमान के मुताबिक ही रही तो इसके गंभीर नतीजे होंगे।

दक्षिण एशिया में ग्लेशियर गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र जैसी अधिकांश नदियों का मुख्य स्रोत हैं। ग्लेशियर के अभाव में ये नदियाँ बारामासी न रहकर बरसाती रह जाएँगी और कहने की जरूरत नहीं कि इससे लाखों, करोड़ों लोगों का जीवन सूखे और बाढ़ के बीच झूलता रहेगा।