धूसर होते जीवन में इंद्रधनुष रचने की इच्छा
ब्लॉग चर्चा में इंद्रधनुष
शुरुआत से पहले इस टिप्पणी पर गौर कीजिए। मैं जैसे एक बहाव के साथ बहती जा रही थी। नहीं जानती थी कि यह कहाँ ले जाएगा। अचानक आई एक कठोर चट्टान से टकराकर मैंने चोट खाई। दर्द से कराहकर मैंने उस चट्टान को बद्दुआएँ दीं। तभी मुझे होश आया। सिर उठाकर देखा तो दुनिया नई थी। होश आया तो जाना कि यूँ ही बहते हुए खत्म हो जाना तो कोई बात नहीं। बहना ही मेरी नियति तो नहीं। शुक्रिया उस चट्टान का जो जाने कितनी बद्दुआओं का बोझ संभाले जाने कब से उस बहाव के बीच स्थिर खड़ी है। बेहोश और नशे की रौ में दिशाहीन हो बहाव के साथ बहते जा रहे लोगों को जगाती, संभालती और सही राह बताती। आशाओं के इंद्रधनुष दिखाती।उम्मीदों के इस इंद्रधनुष के पीछे चलते जाना होता है, सभी को। इसके हल्के-गहरे, धुँधले-उजले, छुपते-खिलते रंगों में से कोई अँधियारा रंग किसी वक्त आपको ढँक लेता है, तो कोई स्लेटी आपके सामने अड़ जाता है बेमानी ज़िद सा। कभी कोई अलमस्त रंग अपनी अलग-अलग छटाओं से आपको सजा देता है तो कोई रुमानी-सा हल्के-से आपका हाथ थामे साथ खड़ा हो जाता है अपनी गर्वभरी धज के साथ। इंद्रधनुष के इन रंगों से बचकर कोई निकल सका है भला?यह एक ब्लॉग की पहली पोस्ट है। और इससे जाहिर है कि इसकी ब्लॉगर एक मकसद से यहाँ मौजूद है। एक जज्बे के साथ। अपने दुःख और अवसाद को झाड़ती-पोंछती, नए उत्साह और उमंग के साथ। दूसरों के जीवन में इंद्रधनुष को रचती। उन्हें इसके रंगों से रूबरू कराती। बस ढंग थोड़ा अलग है। ये ब्लॉगर हैं आर. अनुराधा और इनके ब्लॉग का नाम है इंद्रधनुष। यह कोई कविता-कहानी या शायरी का ब्लॉग नहीं, एक खास ब्लॉग है, खास मकसद के साथ। यहाँ कैंसर के बारे में बाते हैं। कैंसर से जुड़ी तमाम बातें। कैंसर को पहचानने, इसके लक्षणों को समझने-बूझने, जानकारी और ज्ञान बढ़ाने की बातें हैं। कोई बड़े दावे नहीं, बस एक गहरी इच्छा कि लोगों को कैंसर के बारे में तमाम जानकारियाँ दी जा सके। यह ब्लॉग कहता है कि - यह ब्लॉग उन सबका है जिनकी जिंदगियों या दिलों के किसी न किसी कोने को कैंसर ने छुआ है।
इसमें आपको कैंसर की पहेलियाँ मिलेंगी। त्वचा, कोलोन, प्रोस्टेट कैंसर से जुड़े सवाल पूछे गए हैं और आखिर में उत्तर भी दिए गए हैं। एक दूसरी पहेली कैंसर के बारे में ‘हम कितना जानते हैं’ में महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई हैं। यहाँ आप उनका नवभारत टाइम्स में छपा लेख ‘आखिर हार रहा है कैंसर’ को भी पढ़ सकते हैं। मजेदार बात यह है कि यहाँ कैंसर से जुड़े चुटकुले और नज्म भी हैं। एक कैंसर विजेता की डायरी जैसी किताब लिखकर मशहूर हो चुकी यह ब्लॉगर लिखती हैं कि कई तकलीफों का मुफ्त इलाज है हँसी। ज़ाहिर है, कैंसर होने की खबर पाने के बाद कोई हँसता हुआ डॉक्टर के कमरे से नहीं निकलता लेकिन यह भी सच है कैंसर हजारों बार हँसने के मौके देता है। शर्त यह है कि दिल होना चाहिए, अपनी हालत पर हँसने का और दूसरों को हँसने देने का। हँसी कैंसर से जुड़ी चिंताओं को भुलाने का मौका देती है और मरीजों की जिंदगी के अँधेरे कोनों तक भी पहुँचने के लिए रोशनी की किरण को रास्ता बताती है। एक बीमारी ही तो हुई है, उसकी चिंता में आज जिंदगी जीने से क्यों रुका जाए भला! और अगर सचमुच जिंदगी कम बाकी है तब तो और भी जरूरी है कि सब कुछ किया जाए। भरपूर जी भी लिया जाए, जल्दी-जल्दी, ताकि कुछ बाकी न रह जाए।
एक चुटकुला पढ़िए। *-कैंसर बहुत तकलीफदेह होता है, सच कहा।मेरी पत्नी की मौत कैंसर से ही हुई थी। अब अपने हाथ से पका खाना खाने की असहनीय पीड़ा हर दिन झेल रहा हूँ।एक अन्य पोस्ट में नज्म देते हुए उन्होंने लिखा है कि साक़ी फारुकी मॉडर्न उर्दू नज्म शायरों में महत्वपूर्ण दस्तखत हैं। वे लंदन में रहते हैं। पिछले दिनों उनकी यह नज़्म सुनने को मिली तो मैंने इसे झट कलमबंद कर लिया। यहाँ आप सबकी नज़र है ब्रेस्ट कैंसर पर लिखी उनकी यह नज़्म।जिन मेहताब (1) प्यालों से डेढ़ बरस तक रोज हमारी बेटी नेसब्ज़ सुनहरे बचपनघनी जवानी रौशन मुस्तक़बिल (2)का नूर पिया है,चटख़ गए हैंउन खुर्शीद (3) शिवालों (4) मेंजहरीले सरतान (5) कोबरेकुंडली मारके बैठे हैंदिल रोता हैमैंने तेरे सीने परखाली आँखें मल-मल केआज गुलाल कासारा रंग उतार लिया है-
साकी फारुक़ीनोट: (1)= चाँद (2)= भविष्य (3)= सूर्य (4)= मंदिरों (5) = कैंसरलेकिन वे अपना असल मकसद भूलती नहीं और महिलाओं में कैंसर के प्रति जागरूक करने के लिए लिखती रहती हैं। वे जानकारी तो देती ही हैं लेकिन रेखाचित्रों के जरिए ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के तरीके भी बताती हैं। अपनी एक पोस्ट में अनुराधाजी लिखती हैं कि खुद को आईने में हम रोज देखते हैं- लेकिन आम तौर पर श्रंगार के लिए। क्यों न सेहत के लिए भी खुद को देखने की आदत डाल लें। जैसा कि पहले भी जिक्र आ चुका है- कैंसर बड़ी बीमारी है लेकिन अपनी सजगता से हम इसके इलाज को सफल और सरल बना सकते हैं- बीमारी का जल्द से जल्द पता लगाकर। कई बार डॉक्टर से पहले हमें ही पता लग जाता है कि हमारे शरीर में कुछ बदलाव है, कुछ गड़बड़ है। शरीर का मुआयना इस बदलाव को सचेत ढंग से पहचानने का एक जरिया है।वे यह भी लिखती हैं कि पहले से ही कुछ सावधान और जागरूक होकर इस कैंसर को रोका जा सकता है। वे यह सुझाती हैं कि कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है- जल्द पहचान। कैंसर की खासियत है कि यह दबे पाँव आता है, बिना आहट के, बिना बड़े लक्षणों के। फिर भी कुछ तो सामान्य लगने वाले बदलाव कैंसर के मरीज में होते हैं, जो कैंसर की ओर संकेत करते हैं और अगर वह मरीज सतर्क, जागरूक हो तो वहीं पर मर्ज को दबोच सकता है। वरना थोड़ी छूट मिलते ही यह शैतान बेकाबू होकर बस, कहर ही ढाता है।यही नहीं वे कैंसर कोशिकाओं से लेकर जीवनशैली और खानपान के बारे में भी युवाओं को जागरूक करती हैं कि कैसे शाकाहारी होकर और सही जीवनशैली अपनाकर इससे बचा जा सकता है। वे दुनिया के तमाम हिस्सों में हुए शोधों के आधार पर जानकारियाँ, तथ्य और आँकड़ें भी जुटाती हैं और महत्वपूर्ण सूचनाएँ देती हैं। वे यह भी बताती हैं कि माता-पिता कैसे बच्चों को खानपान की सही आदत डालकर इस कैंसर से बचा सकते हैं। इन जानकारियों के साथ ही यहाँ जीवन की हताशा-निराशा के बीच उम्मीद की किरणें भी हैं। यहाँ बताया गया है कि कैसे सकारात्मक सोच, इलाज के बारे में सही जानकारी, सही इलाज के जरिए इंद्रधनुष रचकर जीवन को खूबसूरत बनाया जा सकता है। इंद्रधनुष का पता यह है। http://ranuradha.blogspot.com