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Written By WD

'प्राइवेट कंपनियां बन गए हैं राजनीतिक दल'

ज़ुबैर अहमद, बीबीसी संवाददाता

''प्राइवेट कंपनियां बन गए हैं राजनीतिक दल'' -
"कांग्रेस मां और बेटे की पार्टी है। समाजवादी पार्टी बाप, बेटे और बहू की, राष्ट्रीय जनता दल पति-पत्नी की और झारखंड मुक्ति मोर्चा बाप-बेटे की पार्टियां हैं।"

ये थे भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उमीदवार नरेंद्र मोदी के शब्द, जो उन्होंने झारखंड के पलामू शहर में आम जनता को हाल में संबोधित करते समय कहे थे।

BBC

नरेंद्र मोदी का इशारा साफतौर पर वंशवाद की राजनीति की तरफ़ था, जिसे वे आगे कोडरमा शहर में अपने एक भाषण में लोकतंत्र के लिए ग़लत मानते हुए कहते हैं। 'वंशवाद की राजनीति का लोकतंत्र में कोई महत्त्व नहीं।

नरेंद्र मोदी के दोनों बयानों को नकारा नहीं जा सकता। वह चुनावी अभियान के शुरू में केवल गांधी परिवार को ही वंशवाद की सियासत के लिए आड़े हाथों लेते थे, लेकिन अब 'लोकतंत्र के लिए हानिकारक' इस सियासत के लिए दूसरे राजनीतिक परिवारों को भी निशाना बना रहे हैं।

लेकिन एक तरफ़ मोदी वंशवाद की राजनीति को ख़त्म करने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ़ ख़ुद उनकी पार्टी में यह परंपरा फल फूल रही है।

प्राइवेट लिमिटेड पार्टियां : उदाहरण के तौर पर भाजपा के नेता यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं और अपने पिता की सीट पर। मुंबई में प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन लोकसभा चुनाव के मैदान में पहली बार कूदी हैं। साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश भी लोकसभा के चुनावी अखाड़े में उतरे हैं।

लिस्ट और भी लंबी है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथसिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमनसिंह और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार के धूमल के बेटे भी चुनावी अखाड़े में उतरे हैं। यह फेहरिस्त और भी लंबी है।

कांग्रेस के नेता शकील अहमद कहते हैं कि भाजपा दोहरी नीति रखती है, लेकिन भाजपा के नितिन गडकरी कहते हैं उनकी पार्टी में वंशवाद नहीं है। "कांग्रेस के गांधी परिवार की तरह आडवाणी परिवार, वाजपेयी परिवार भाजपा में नहीं है। भाजपा के नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट इसलिए दिए गए हैं क्योंकि वे पार्टी में वर्षों से सक्रिय हैं।


सच तो यह है कि आज जिस राज्य या जिस पार्टी पर निगाह डालें वहां आपको ऐसे परिवार मिल जाएंगे। उत्तरप्रदेश में मुलायमसिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को आगे बढ़ा दिया। कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने पहले फारुक अब्दुल्ला को अपनी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बनाया और वो मुख्यमंत्री बने। बाद में जब वे केंद्र सरकार में आए तो पार्टी और राज्य में सत्ता की बागडोर अपने बेटे उमर अब्दुल्ला के हवाले कर दी।

ओडिशा में बीजू पटनायक ने नवीन पटनायक को आगे बढ़ाया। महाराष्ट्र में शिवसेना की स्थापना करने वाले बाल ठाकरे ने मरने से पहले अपने बेटे उद्धव ठाकरे के हवाले पार्टी की जिम्मेदारियां सौंप दीं। अब उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे पार्टी के उभरते हुए युवा नेता हैं।

दक्षिण भारत पर निगाह डालें तो तमिलनाडु में डीएमके के करुणानिधि ने अपने बेटे और परिवार के कई सदस्यों को मुख्य स्थान दिए चाहे वह पार्टी हो या सरकार।

बिहार में लालू यादव ने अपनी बेटी मीसा भारती को पार्टी में शामिल करके इस बार उन्हें चुनाव के मैदान में भी उतार दिया है, जबकि वे पहले ही अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनवा चुके हैं।

वरिष्ठ महिला पत्रकार तवलीन सिंह अपने एक लेख में कहती हैं कि इन नेताओं ने अपनी पार्टियों को प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों में बदल दिया है। पार्टियों पर इन परिवारों का शिकंजा इतना कसा हुआ है कि दूसरों को आगे बढ़ने का अवसर ही नहीं मिलता।

शुरुआत : ज़रा सोचिए सोनिया गांधी और राहुल के बिना कांग्रेस पार्टी का वजूद बाक़ी रहेगा? नटवर सिंह अब सियासत से रिटायर हो चुके हैं लेकिन वंशवाद की राजनीति की अलंबरदार इंदिरा गांधी के क़रीब थे। वे कहते हैं, "मां-बेटा ही कांग्रेस पार्टी है।"

लेकिन नटवरसिंह कहते हैं कि गांधी परिवार की ही आलोचना करना ठीक नहीं, "केवल नेहरू गांधी परिवार को वंशवाद की सियासत के लिए ज़िम्मेदार मानना सही नहीं। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी राज्यों और सभी पार्टियों में है।"

अगले पन्ने पर क्या कहना है नेता पु‍त्रों का...


उन परिवारों की संतानें क्या कहती हैं जो अपने राजनीतिक परिवार और पिता के बल पर सियासत में हैं।

मिलिंद देवड़ा दक्षिण मुंबई से सांसद हैं। क्या अगर उनके पूंजीपति पिता मुरली देवड़ा शक्तिशाली नहीं होते और मंत्री पद पर न होते तो उन्हें सियासत में प्रवेश मिलता? वे कहते हैं, "आप सियासत में जिस कारण से आएं, चुनाव में जीत और हार जनता के हाथ में होती है।

हर आम चुनाव के समय ये सवाल उठाए जाते हैं कि भारत से वंशवाद की राजनीति का अंत कब होगा? क्योंकि आमतौर से इसे लोकतंत्र के विपरीत माना जाता है।

इंदर मल्होत्रा एक ऐसे वरिष्ठ पत्रकार हैं जिन्होंने न केवल वंशवाद की सियासत का झंडा गाड़ने वाली इंदिरा गांधी पर किताब लिखी है बल्कि दक्षिण एशिया में वंशवाद की राजनीति पर भी उनकी किताबें प्रकाशित हुई हैं। उनका जवाब साफ़ है, "वंशवाद की राजनीति भारत से ख़त्म नहीं होगी।"

आमतौर पर लोग समझते हैं कि इसकी शुरुआत जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को सियासत में उतार कर की थी, लेकिन इन्दर मल्होत्रा कहते हैं कि नेहरू ने इंदिरा को किसी बड़े ओहदे के लिए नहीं आगे बढाया। वे आज़ादी से पहले से अपने पिता के साथ काम करती थीं और बाद में उनका हाथ बंटाती थीं।

वे इंदिरा गांधी को वंशवाद की राजनीति की शुरुआत करने वाला मानते हैं, 'इंदिरा ने संजय गांधी को आगे बढ़ाकर वंशवाद की राजनीति की बुनियाद रखी।'

लेकिन नेहरू-गांधी परिवार का दबदबा न केवल कांग्रेस पार्टी पर बल्कि देश की सियासत पर जवाहर लाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू के समय से चला आ रहा है। यह आज भारत में राजनीतिक वंशवाद का सबसे पुराना उदाहरण है। कांग्रेस उसकी पुश्तैनी पार्टी की तरह है।

लेकिन परिवार का समर्थन करने वाले यह तर्क देते हैं कि जिस कमज़ोरी के लिए परिवार की आलोचना की जाती है, वही इस परिवार की शक्ति है। मणिशंकर अय्यर इंदिरा गांधी के बेटे और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के क़रीबी साथियों में से एक थे।

वे कहते हैं कि राजीवजी के मरने के बाद अगर सोनिया पार्टी का नेतृत्व न करतीं तो पार्टी बिखर सकती थी। भारत के इतिहास में इस परिवार का काफ़ी योगदान है। इसने दो प्रधानमंत्रियों का बलिदान दिया। कांग्रेस पार्टी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी है जो इस परिवार के कारण ही संभव हो पाया है।

अगले पन्ने पर, क्या है वंशवाद की राजनीति में कमी


वंशवाद की राजनीति में कमी? : इन्दर मल्होत्रा भी वंशवाद की सियासत के पूरी तरह से ख़िलाफ़ नहीं हैं. वे कहते हैं कि हर मैदान में- चाहे वह फ़िल्मी दुनिया हो या डॉक्टर, किसान और पत्रकार का पेशा हो- भारतीय समाज में वंशवाद का सिलसिला पुराना है। इसे बुरा नहीं माना जाता और इसीलिए हर मैदान में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी उसी मैदान में आ जाती है।

इंदर मल्होत्रा कहते हैं कि भारत के बाहर भी इसकी परंपरा है। बांग्लादेश में शेख हसीना और पाकिस्तान में भुट्टो परिवार इसकी मिसालें हैं।

यहां तक कि उनके अनुसार अमेरिका जैसा लोकतंत्र भी इससे वंचित नहीं। बुश सीनियर के बाद बिल क्लिंटन राष्ट्रपति बने और उनके बाद बुश सीनियर के बेटे बुश जूनियर। अगर बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन, बराक ओबामा को प्राइमरीज में हरा देतीं तो हो सकता था वे उनकी जगह राष्ट्रपति होतीं।

लेकिन जो वंशवाद की राजनीति के ख़िलाफ़ हैं और एक ही परिवार के शिकंजे में पार्टी को नहीं देखने के हक़ में हैं, वे कहते हैं कि इसका सबसे बड़ा नुक़सान यह होता है कि पार्टी के अंदर दूसरे योग्य लोगों को अवसर नहीं मिलते। कांग्रेस में एक से एक क़ाबिल नेता हुए हैं लेकिन पार्टी के बड़े ओहदों के लिए या प्रधानमंत्री पद के लिए उनका प्रोत्साहन नहीं किया गया।

सोनिया गांधी ने 2004 चुनाव में जीत के बाद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया, लेकिन उनके आलोचक कहते हैं कि मनमोहन सिंह के कंधे पर रखकर सोनिया गांधी बंदूक चलना चाहती हैं।

इंदर मल्होत्रा ने अपनी पुस्तक पिछले चुनाव से पहले लिखी थी। तो क्या इस चुनाव में वंशवाद की राजनीति में कमी आई है? वह एक लंबी सांस लेकर कहते हैं। "यह रिवाज और बढ़ा है। यह जारी रहेगा।

अगले पन्ने पर, भारत में राजनीतिक परिवार


परिवार की राजनीति : भारत में वंशवाद काफ़ी पुराना है। एक अंदाज़ के अनुसार स्वतंत्र भारत में अब तक वंशवाद की राजनीति करने वाले 57 परिवार हैं, जिनमें सब से पहला और सबसे पुराना नेहरू-गांधी खानदान है। कुछ ऐसे परिवारों की लिस्ट :

नेहरू-गांधी परिवार :
मोती लाल नेहरू : नेता और एक प्रसिद्ध वकील
जवाहर लाल नेहरू : मोती लाल के बेटे और प्रधानमंत्री (1947-1964)
इंदिरा गांधी : जवाहरलाल नेहरू की बेटी और प्रधानमंत्री (1966-1977 और 1980-1984)
राजीव गांधी : इंदिरा के बेटे और प्रधानमंत्री (1984-1989)
सोनिया गांधी : राजीव गांधी की पत्नी, अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी और यूपीए
राहुल गांधी : राजीव और सोनिया के बेटे, उपाध्यक्ष कांग्रेस पार्टी
प्रियंका गांधी : राजीव और सोनिया की बेटी, कांग्रेस पार्टी नेता
संजय गांधी : इंदिरा के बेटे और राजीव के छोटे भाई। उनका एक विमान दुर्घटना में देहांत न होता तो वे अपने भाई राजीव की जगह प्रधानमंत्री बन सकते थे।
मेनका गांधी : संजय गांधी की पत्नी, भाजपा नेता और पूर्व मंत्री
वरुण गांधी : संजय एवं मेनका के बेटे और भाजपा नेता

इनके इलावा परिवार के अन्य सदस्य जो किसी न किसी सूरत में राजनीति से जुड़े रहे, वे थे इंदिरा गांधी की चचेरी बहन उमा नेहरू, उनके बेटे अरुण नेहरू, जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू, मोतीलाल नेहरू की बेटी विजय लक्ष्मी पंडित और उनकी बेटी नयनतारा सहगल।


अब्दुल्ला परिवार

1. शेख अब्दुल्ला : भूतपूर्व मुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर
2. फारुक अब्दुल्ला : शेख अब्दुल्ला के बेटे और भूतपूर्व मुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर, केन्द्रीय मंत्री
3. उमर अब्दुल्ला : फारूक अब्दुल्ला के बेटे और मुख्यमंत्री जम्मू कश्मीर

इनके इलावा शेख अब्दुल्ला की पत्नी बेगम अकबर सांसद रह चुकी हैं और उनके बेटे मुस्तफा कमाल अब्दुल्ला कश्मीर विधानसभा के सदस्य थे।


ठाकरे परिवार

बाल ठाकरे : शिव सेना के संस्थापक
उद्धव ठाकरे : बाल ठाकरे के बेटे और शिव सेना के अध्यक्ष
आदित्य ठाकरे : उद्धव ठाकरे के बेटे और युवा शिव सेना का अध्यक्ष
राज ठाकरे : बाल ठाकरे के भतीजे और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के संस्थापक
स्मिता ठाकरे : बाल ठाकरे की बहू


नन्दामुरी परिवार (एनटीआर)

नन्दामुरी ताराक रामाराव (एनटीआर) : भूतपूर्व मुख्यमंत्री आंध्र प्रदेश और अभिनेता
चंद्रबाबू नायडू : एनटीआर के दामाद और भूतपूर्व मुख्यमंत्री आंध्र प्रदेश
लक्ष्मी पार्वती : पत्नी एनटीआर तेलुगु देसम एनटीआर गुट की भूतपूर्व अध्यक्ष
एन. हरिकृष्ण : एनटीआर के बेटे और भूतपूर्व मंत्री
एन. बालकृष्ण : एनटीआर के बेटे अभिनेता और राज नेता
डी. पुरंदेश्वरी : एनटीआर की बेटी और भूतपूर्व मंत्री
डी. वेंकटेश्वर राव : एनटीआर के दामाद और भूतपूर्व मंत्री

करुणानिधि परिवार

एम करुणानिधि : भूतपूर्व मुख्यमंत्री तमिल नाडु और डीएमके पार्टी नेता
एम के स्टालिन : करुणानिधि के बेटे और भूतपूर्व उप मुख्यमंत्री तमिलनाडु
एम के अझागिरी : करुणानिधि के सब से बड़े बेटे और भूतपूर्व केन्द्रय मंत्री
कनिमोझी : करुणानिधि की बेटी और राज्यसभा सदस्य
मुरासोली मारन : करुणानिधि के भतीजे और भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री
दयानिधि मारन : मुरासोली के बेटे और भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री