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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 15 अप्रैल 2014 (14:49 IST)

'उन्होंने बलात्कारी पिता को माफ करने को कहा, मैंने कर दिया'

- दिव्या आर्य (आइज़ॉल से लौटकर)

''उन्होंने बलात्कारी पिता को माफ करने को कहा, मैंने कर दिया'' -
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सारा उसका असली नाम नहीं है। 19 साल की इस युवती के मुताबिक उनका बलात्कार कई बार हो चुका है। और यह हरकत किसी और ने नहीं, उनके सौतेले पिता ने ही की है। सारा का चेहरा मिजोरम की उस आबादी में कहीं दबा-छुपा है, जो इस राज्य को प्रति महिला बलात्कार की दर के मामले में सबसे आगे करता है।

सारा जहां पली-बढ़ीं, वहां ऐसे हादसों पर बात नहीं की जाती। न समाज इस स्याह सच को सामने आने देता है, न स्थानीय मीडिया इस तरह की रिपोर्ट करता है। इसकी कलई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट में खुलती है, जहां बाकी भारतीय राज्यों के मुकाबले बलात्कार की दर सबसे ज्यादा (20.81) मिजोरम में है।

(इस कहानी में इस्तेमाल की गई तस्वीरों में से कोई भी सारा की नहीं है।)

ये संख्या इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 10,97,206 की आबादी वाले राज्य के मतदाताओं में औरतों की तादाद मर्दों से 12,856 ज्यादा है। ये इसलिए भी आश्चर्यजनक भी है क्योंकि मिजोरम में साक्षरता दर (89.27%) भी शीर्षस्थ राज्यों में तीसरे स्थान पर है।

सारा का जब पहली बार बलात्कार हुआ, तब वे 10 साल की थीं। उन्होंने अपनी मां को बताया भी था। मां ने तय किया था कि पिता के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी।

सारा उसी पिता के साथ रहती रहीं। जब वे मुझे मिलीं तो बहुत सहमी-सकुचाई सी लगीं। उन्होंने मुझे बताया कि पिछले साल पिता ने फिर बलात्कार किया था, पर इस बार भी वही हुआ। सारा बालिग हो गई हैं, पर परिवार फिर आड़े आ गया।

उन्होंने बताया, 'परिवार ने कहा- पिता को माफ कर दो, इसलिए मैंने कर दिया। मेरी मर्जी चलती तो मैं नहीं करती।'
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अब सारे मर्दों से...

मिजोरम में खुलेपन के बावजूद महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कमी नहीं है। सारा की ही तरह मिजोरम की ज्यादातर आबादी ईसाई है। इन लोगों में हर तरह की हिंसा के मामले में हिंसा करने वाले को ‘माफ करने’ का चलन है।

इसके पीछे मान्यता है कि अगर इंसान खुद को बदलने की मंशा दिखाए, तो उसे दूसरा मौका देना चाहिए। सारा ने माफी दी, पर वह यौन हिंसा का जुर्म कम न हुआ। उन्होंने मुझसे बहुत रुआंसी होकर कहा, 'अपने पिता से तो डर लगता ही था, अब सभी मर्दों से लगता है।'

पिछले साल हुए बलात्कार के बाद अब सारा अपने मां-बाप से अलग किसी और घर में रहती हैं, जहां वह एक बच्ची की देख-रेख करती हैं। इसके लिए उन्हें तनख्वाह भी मिलती है। अपने पैसे कमाना सारा के लिए बहुत जरूरी है।

मुझे कहती है कि स्कूल छूटने का दुख तो है पर अब वो ब्यूटीशन का काम करना चाहती है। सारा के मुताबिक, 'मैं अपने मां-बाप पर निर्भर नहीं रहना चाहती, उनसे दूर रहकर खुश हूं, अपने फैसले लेना चाहती हूं।'

डर सड़क पर नहीं, घरों के भीतर है : सारा एक गरीब परिवार की लड़की है। इस पूरे समय में ‘आयको’ नाम के महिला संगठन ने उसकी मदद की। छुआनतेई ‘आयको’ में काउंसलर हैं और बलात्कार पीड़ित लड़कियों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में बताती हैं।

वे कहती हैं, 'मिजोरम में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में परिवार माफी का रास्ता चुनते हैं, लेकिन इसमें अक्सर लड़की की मर्जी नहीं ली जाती। हम कोशिश करते हैं कि लड़की को हौसला और जानकारी दें ताकि वो अपने मन का फैसला ले पाएं, पर कई बार ऐसा नहीं हो पाता।'

छुआनतेई के मुताबिक बलात्कार के ज्यादातर मामले गरीब तबके के परिवारों में हो रहे हैं और इनमें हिंसा करने वाला पीड़ित लड़की का दोस्त या रिश्तेदार होता है।

ये तस्वीर उस मिजोरम से बहुत अलग है जो शहर में आम दिखाई पड़ती है। कॉलेज जाने वाली लड़कियां अकेले घूमते दिखती हैं और बाजार में ज्यादातर व्यापारी भी महिलाएं ही हैं।

कैथरीन मिजोरम विश्वविद्यालय में सामाजिक कल्याण विभाग में पढ़ाई कर रही हैं। वो राजधानी आइजॉल में अकेले रहती हैं।

मुझसे वो कहती हैं, 'सड़कों पर डर जैसा माहौल बिल्कुल नहीं है लेकिन घर-परिवार की अंदरूनी हिंसा को लेकर चुप्पी जरूर है। कोई नहीं मानना चाहता कि मिजो पुरुष हिंसा कर सकते हैं।'

एक तरफ पढ़ी-लिखी अपनी रोजी कमाने वाली महिलाएं और एक तरफ हिंसा के खिलाफ आवाज न उठा पाने की बंदिश। मैंने मिजोरम की राजधानी में जितना समय बिताया, इन्हीं दो तस्वीरों के बीच दूरी समझने की कोशिश करती रही और आखिरकार एक तार मिला।
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संख्या है, पर सत्ता में हिस्सा नहीं : मिजोरम वह राज्य है, जहां से आज तक कोई महिला सांसद चुनकर संसद नहीं पहुंची। पिछले 25 साल से 40 सीटों वाली राज्य विधानसभा में भी कोई महिला नहीं चुनी गई।

पर राजनीति का समाज में महिलाओं की हैसियत से कितना रिश्ता हो सकता है?

समाजसेवी और राजनेता जोथानकिमी किमतेई के मुताबिक 'बहुत ज्यादा।' कांग्रेस के टिकट पर 2003 और 2008 में विधानसभा चुनाव लड़कर हारने के बाद पी किमतेई अब मिजोरम के सोशल वेलफेयर बोर्ड की अध्यक्ष हैं।

मिजोरम में लोकसभा की एक सीट है और किमतेई के मुताबिक पार्टियां इसके लिए महिलाओं को टिकट तक नहीं देतीं, जीत तो बहुत दूर की बात है।

किमतेई बताती हैं कि यही हाल चर्च का है। राज्य में चर्च बहुत प्रभावशाली है पर महिलाओं को पादरी बनने की इजाजत नहीं है। उन्होंने मुझे कहा, 'जब तक महिलाओं को फैसले लेने वाले पदों पर नहीं बैठने दिया जाएगा, तब तक परिवार में भी उनकी इज्जत नहीं होगी।'

किमतेई के मुताबिक मिजोरम में महिलाओं के लिए जो खुलापन और आजादी दिखाई पड़ती है, वह भी मर्दों की शर्त पर ही है और जब तक वो पूरी तरह आजाद नहीं होंगी, तब तक सारा जैसी लड़कियों को इंसाफ पाने का मौका नहीं मिलेगा और हिंसा जैसे मुद्दों पर चुप्पी बनी रहेगी।