बुधवार, 17 अप्रैल 2024
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Written By WD

मैं दाउद से मिला, मैं एक पत्रकार हूं : शेखर गुप्ता

मैं दाउद से मिला, मैं एक पत्रकार हूं : शेखर गुप्ता -
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इस लेख को शीर्षक देने के दो तरीके हो सकते हैं। पहला, हां, मैं दाउद इब्राहिम से मिला और मैं एक आतंकवादी नहीं हूं। और दूसरा मैं केवल एक पत्रकार हूं और मेरा नाम वैदिक नहीं है। अब मैं पहले सवाल का जवाब देता हूं और मैं इसकी पूरी जानकारी देना चाहता हूं।

मैं जरनैलसिंह भिंडरावाले से डेढ़ दर्जन बार मिला हूं। इसके अलावा, ललडेंगा, तुइंगलेंग मुइवा, गुलुबुद्दीन हिकमतयार, काजी हुसैन अहमद, जनरल मिर्जा असलम बेग (तब पाक की जमात ए इस्लामी मे अमीर और सेना प्रमुख) से मिल चुका हूं। मैं ताहिर उल कादरी के साथ मिला जिन्हें इस्लामाबाद की घेराबंदी करने के लिए जाना जाता है। मैं वेलुपिल्लई प्रभाकरण से मिला हूं। आईएसआई के दो सेवारत प्रमुखों से मिल चुका हूं। जेनेवा के एक होटल की लिफ्ट में मेजर जनरल असफंदर पटौदी से मिला हूं जो कि सैफ अली खान के चाचा हैं और उस समय आईएसआई में दूसरे नंबर पर थे।

आज रहस्योद्‍घाटन करना कितना 'देशभक्तिपूर्ण' हो गया है कि मुझे इस खराब आचरण को कैसे बताना चाहिए। साथ ही, मेरी 'कायरता' ने उपरोक्त मौकों को न भुनाने को प्रेरित किया। अब मुझे क्या करना चाहिए। क्या मैं हिंदी फिल्मों के हीरो जैसी बहादुरी दिखाने के लिए तैयार रहता? मुझे एक कांटेक्ट रिपोर्ट भेजनी चाहिए थी लेकिन मैं तो अपनी रिपोर्ट अपने पाठकों को देता हूं। वैदिक की विद्वता को जानते हुए मुझे खुशी है कि वे अपनी एकाएक मिली प्रसिद्धि से खुश होंगे, लेकिन इस सारे मामले ने हमारे सामूहिक निर्णय की क्षमता को बौद्धिक कंगाली में बदल दिया है। इस मामले ने यह बता दिया है कि एक देश के रूप में हम कितनी खामियों के शिकार हैं। 'वैदिक मिले हाफिज सईद से' के कॉमिक शो ने संसद तक में जगह बना ली। इस मुद्दे को लेकर बहुत सारे हास्यास्पद सवाल उठाए गए।

बेचारे वैदिक जी की अपनी 'खूबियां' हैं और उन्होंने अपनी 'पेशेगत उपलब्धियों' के चलते कश्मीर को आजाद करने की सलाह भी दे डाली। इससे जुड़े भी कई सवाल हो सकते हैं। सवाल है कि क्या वैदिक ने सईद को कश्मीर देने को कहा और सईद ने कश्मीर ले लिया? इस हाइपरपैट्रियाट्रियोटिक समय में अंग्रेज पेसर जिम्मी एंडरसन भारत का राष्ट्रीय दुश्मन बन जाता है और तब भारत का हास्य बोध कपिल शर्मा की कॉमेडी नाइट्‍स और नवजोतसिंह सिद्धूइज्स की बराबरी करने लगता है। पाकिस्तान के एक टीवी एंकर ने मुझसे कहा कि अरुंधति रॉय भी तो कश्मीर पाकिस्तान को देने की बात कर चुकी हैं, तो मैंने उससे पूरी गंभीरता से कहा कि वह कश्मीर अरुंधति रॉय से जाकर ले ले। आखिर वे बहुत नामी और महान लेखिका जो हैं।

अब इस सप्ताह के लेख को गंभीर हो जाने की जरूरत है। मेरा मानना है कि एक पत्रकार के लिए ऑफ रिकॉर्ड बातचीत करना उसके अधिकार में आता है। कई बड़े और नामी पत्रकारों ने ऐसे इंटरव्यू लिए हैं जो कि उन्हें पेशेगत रूप से सक्षम और योग्य बनाने के प्रतीक बने हालांकि उन्हें इसके कारण बदनामी भी झेलनी पड़ी। इसी तरह भारत में पिछले पंद्रह वर्ष से संभवत: कारगिल के बाद से, प्रसिद्ध लोगों, राजनेताओं से मिलना देशभक्ति के पैमाने पर परखा जाने लगा, लेकिन अब ‍‍‍‍स्थ‍िति यह आ गई है कि पत्रकारों से सुनने, सवाल करने, संबंधित समाचार लाने और पूरी स्थिति की परखकर बात कहने की उम्मीद नहीं की जाती है। अब उम्मीद की जाती है कि पत्रकार भी सैनिकों और राजनयिकों की तरह लड़ें। वैदिक मामले के सिलसिले में यह उल्लेखनीय है कि उनकी राष्ट्रवादिता को सिद्ध करने के लिए उन्हें आरएसएस का आदमी बताया जाता है।

इसलिए अब मैं कहता हूं कि मै केवल एक पत्रकार हूं और मेरा नाम वैदिक नहीं है। वैदिक ने भी कई भूमिकाएं निभाई हैं। वैदिक का एक कारनामा तो काबिले गौर है। एक समय पर उन्होंने प्रणब मुखर्जी जैसे अनुभवी और वरिष्ठ मंत्री को बाबा रामदेव के सामने झुकने को विवश कर दिया था। इस काम के साथ ही, यूपीए दो सरकार की जो थोड़ी बहुत साख थी, वह भी मिट्‍टी में मिल गई थी। यह वैदिक जी सबसे बड़ा स्कूप था हालांकि इसका पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं था। मैं मानता हूं कि वैदिक एक ऐसे 'पत्रकार' हैं जो कि अपनी महानता की कहानियों को सुनाने से परहेज नहीं करते हैं और अपने आप को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं।