शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By WD

देश क्या, वे तो दुनिया ही छोड़ गए

-अनिल जैन

देश क्या, वे तो दुनिया ही छोड़ गए -
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हमारी भारतीय सभ्यता हमें सिखाती है कि हम किसी दिवंगत व्यक्ति का सम्मान भले ही न करें लेकिन उसका अपमान तो नहीं करें, लेकिन अपने को भारतीय सभ्यता और संस्कृति का चौकीदार मानने वाले हिन्‍दुत्ववादी खेमे के कुछ लफंगों ने देश के एक शीर्षस्थ साहित्यकार और महान बुद्धिजीवी यूआर अनंतमूर्ति की मौत पर पूरे तीन दिन तक जश्न मनाने के अंदाज में जिस तरह उन्हें कोसा, गरियाया और पटाखे फोड़े वह हैरान करने वाला है। वैसे सामाजिक सरोकारों से जुड़े किसी लेखक और बुद्धिजीवी की मृत्यु पर उसकी वैचारिक विरोधी जमात के लोग खुशियां मनाए, इससे बड़ी श्रद्धांजलि उसके लिए कोई और नहीं हो सकती।

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेशक अनंतमूर्ति की मौत पर शोक जताते हुए उनके परिवारजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की, लेकिन पिछले कुछ समय में तैयार हुई मोदी के मुरीदों की फौज ने सोशल मीडिया पर जिस तरह गाली-गलौच वाली भाषा में अनंतमूर्ति की मौत पर अपनी उत्साही प्रतिक्रिया जताई उससे साफ जाहिर है कि सांप्रदायिक और संकीर्ण दिमाग वाले राजनीतिक सोच के लिए वह समतावादी लेखक कैसी और कितनी बड़ी परेशानी का सबब था।

अनंतमूर्ति के प्रति हिन्‍दुत्ववादी खेमे की खुन्नस की वजह यह है कि तीन महीने पहले आम चुनाव की गहमा-गहमी के दौरान प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की काबिलियत पर सवाल उठाते हुए उनकी यह टिप्पणी काफी सुर्खियों में रही थी कि अगर नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए तो वे यह देश छोड़ देंगे।

उनकी इस टिप्पणी का देश में किसी ने भी, यहां तक की मोदी के घोर विरोधियों ने भी समर्थन नहीं किया था। हालांकि अपनी इस टिप्पणी के दो दिन बाद ही शायद अनंतमूर्ति को यह अहसास हो गया था कि वे गलत बोल गए हैं, लिहाजा उन्होंने कहा था कि देश छोड़ने की बात वे महज भावुकता में आकर कह गए थे, हकीकत तो यह है कि वे भारत के सिवाय दुनिया में और कहीं रह ही नहीं सकते।

दरअसल, वह टिप्पणी देश के संवैधानिक ढांचे और उससे जुड़े बुनियादी ढांचे में अटूट आस्था रखने वाले अनंतमूर्ति जैसे साहसी और संवादप्रिय व्यक्ति की चिंतन प्रक्रिया से जरा भी मेल नहीं खाती थी। और फिर सोचने वाली बात यह भी है कि कोई ऐसा व्यक्ति जिसके जीवन को महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया के चिंतन और विचारों ने अनुप्राणित किया हो, वह किसी भी परिस्थिति में अपने देश या समाज से कैसे पलायन कर सकता है।

लेकिन अतिशय भावावेश की गई अपनी टिप्पणी पर अनंतमूर्ति के स्पष्टीकरण के बावजूद हिन्‍दुत्ववादी खेमे ने उन्हें 'माफ' नहीं किया। जब चुनाव नतीजे आए और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो इस खेमे के कुछ अति वाचाल तत्वों ने तो अनंतमूर्ति के पास पाकिस्तान जाने का टिकट भेजने जैसी वाहियात हरकत भी की और अब जब वे अपना देश तो क्या यह दुनिया ही छोड़कर चले गए हैं, तब भी ऐसे तत्वों के कलेजे को ठंडक नहीं मिली है। वे अनंत में विलीन हो चुके अनंतमूर्ति को पानी पी-पीकर कोस रहे हैं।

हैरानी होती है यह देखकर कि अपनी संकीर्ण विचारधारा को वैधानिकता का जामा पहनाने के लिए अरविंद और स्वामी विवेकानंद जैसे मनीषियों और सुभाष बाबू और सरदार पटेल जैसे महान नेताओं की विरासत का अपने को वाहक बताने वाली इस जमात की विचार-परंपरा में कितनी ठोस नकारात्मकता और अभारतीयता कूट-कूटकर भरी हुई है। अनंतमूर्ति का क्या, वे तो चले गए अनंत की यात्रा पर, लेकिन उनका लेखनकर्म हमेशा इस अभारतीय और अमानवीय विचार-परंपरा को मुंह चिढ़ाता रहेगा।