दिल्ली गैंग रेप : मां, मैं जीना चाहती हूं लेकिन...
एक कराह, मार्मिक आह, और फिर जीने की चाह....
मां मैं जीना चाहती हूं .... । मां मैं जीना चाहती हूं ....। कितने कानों में जा रही है यह आवाज कि मां मैं जीना चाहती हूं ....। कितने दिलों में उठ रहा है भावनात्मक ज्वार यह शब्द पढ़कर कि मां... मैं जीना चाहती हूं...। यह करूण पुकार है दिल्ली में गैंग रेप की शिकार उस 23 वर्षीया युवती की जो अपने शरीर और आत्मा को छलनी किए जाने के बाद लड़ रही है जिंदगी से। उस जिंदगी से, जिसने उसे पाशविकता का वह घिनौना चेहरा दिखाया है जिसे देखने की हिम्मत किसी 'इंसान' में नहीं है। एक दर्दनाक कराह, एक मार्मिक आह, और फिर जीने की चाह...। कितनी बार कांपी होगी वह कलम जब जब गैंग रेप की शिकार उस युवती ने कागज की पुर्जी पर लिखा होगा यह वाक्य -मां, मैं जीना चाहती हूं। सोच कर देखिए....कैसे हिम्मत कर रही है वह लड़की, जिसके साथ इस बर्बरता से बलात्कार हुआ है कि उसके प्रायवेट पार्ट्स जख्मों से भरे हैं, उसे अस्पताल ले जाने वाले व्यक्तियों ने बताया कि उसकी आंतें तक बाहर आ गई थी। अगले पेज पर : सलाम उस जज्बे को
जिंदगी से निर्वासन नहीं चाहती इस समय भी उसका इलाज कर रहे डॉ. अथानी का कहना है कि उ सकी हालात काफी नाजुक है लेकिन वह ठीक होने में हमें हर तरह से सहयोग दे रही है...। जैसे-जैसे उसकी मेडिकल खबरें सामने आ रही है, कलेजा टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। लेकिन सलाम उस जज्बे को जो जिंदगी से निर्वासन नहीं चाहती।