मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By संदीपसिंह सिसोदिया

दामिनी : जहर है दुनिया की हवा तेरे लिए...

- संदीप सिसोदिया

Delhi rape case Damini is no More | दामिनी : जहर है दुनिया की हवा तेरे लिए...

रात पीती है नूर मुखड़ों का, सुबह सीनों का ख़ून चाटती है...

लेटे रहते हैं बे-नियाज़, दुम मरोड़े के कोई सर कुचले, काटना क्या ये भौंकते भी नहीं...

(धर्मभीरू, क्रिकेटप्रेमी और जश्नप्रिय समाज के 'हम' )

आखिर वही हुआ जिसका डर था, बलात्कार पीड़ित युवती दामिनी नहीं रही... शेष रह गई सिर्फ उसकी वेदना, अत्याचार, मौत से उसका संघर्ष और उसके 'साक्षी' हम, समाज और दुनिया... यमराज भी शायद उसे लेने सिर्फ इसलिए आ गए होंगे कि इस निष्ठुर दुनिया में उसे किसी और के किए का 'दंड' अब और न भुगतना पड़े...

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अब सिर्फ उसकी यादें बची हैं जो याद दिलाती हैं हमें हमारे बाकी रह गए फर्ज को पूरा करने की। एक लड़ाई जो उसने पिशाचों से लड़ते हुए अपनी अस्मत बचाने के लिए छेड़ी थी, उसे अब हमें लड़ना है और पहुंचाना है उस अंजाम तक जहां किसी और लड़की के साथ दरिन्दगी करने की कोई हिम्मत न कर पाए....

दामिनी, निर्भया या अमानत.... उसे कई नामों से पुकारा गया। उससे एक अनजाना, लेकिन घनिष्ठ रिश्ता सा बन गया था। उसकी पीड़ा पिछले 13 दिनों से महसूस हो रही थी लेकिन उसके निधन की खबर पर पहली प्रतिक्रिया स्तब्ध थी...मौन थी। उस मासूम की आत्मा की शांति के लिए देश में एक अनकहा मौन रखा जाएगा लेकिन उसकी मौत पर 'मौन' इस अपराध का 'उपसंहार' कभी नहीं होना चाहिए...

गोशे-गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए

फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए

क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए

ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे

उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं

तुझ में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे

उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

(क़ैफ़ी आज़मी-औरत)