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Written By WD

अल्लाह हाफिज़ या खु़दा हाफिज़ ?

शराफत खान

Allah Hafiz Khuda Hafiz Difference | अल्लाह हाफिज़ या खु़दा हाफिज़ ?
अक्सर किसी से विदा लेते वक्त अल्लाह हाफिज़ या खुदा हाफिज़ सुना जा सकता है। यह सवाल बारहा पूछा जाता है कि अल्लाह हाफिज़ कहना सही है या या खुदा हाफिज़? बहुत से आलिम इसे बेज़ा बहस मानते हैं और कहते हैं कि असल तो नीयत है। अल्लाह हाफिज़ या खुदा हाफिज़ कहने में क्या नीयत है, यह अहम है।

कुछ आलिम (जानकार) खु़दा और अल्लाह के बीच भाषा का फर्क करते हुए इसे विस्तार से समझाते भी हैं। अल्लाह अरबी का शब्द है, जिसका फारसी में अनुवाद खु़दा किया गया है। जब उर्दू भाषा विकसित हो रही थी तब बहुत से शब्द अरबी और फारसी से लिए गए। इसीलिए जब अरबी की आयत 'फी अमान अल्लाह' (अल्लाह की अमान में रहें) का अनुवाद उर्दू में किया गया तो उसे खुदा हाफिज़ लिखा गया। यहां अल्लाह को उर्दू में फारसी की तरह खुदा लिखा गया। अल्लाह को फारसी और बाद में उर्दू में भी खुदा लिखा गया। शायरों ने अल्लाह को अक्सर खुदा लिखा, जिससे यह प्रचलित हो गया।

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इन्दौर के मुफ्ती जनाब जुनैद साहब कहते हैं 'खुदा लफ्ज़ अल्लाह का फारसी अनुवाद है, जिसे उर्दू में भी ज्यों का त्यों अपना लिया गया है। भारत में सूफीवाद ईरान से भी आया, जहां फारसी सबसे प्रचलित भाषा है और जब सूफीवाद में अल्लाह का जिक्र आता है तो वहां ज्यादातर जगह खुदा शब्द इस्तेमाल हुआ। वक्त के साथ साथ उर्दू में फारसी का चलन खत्म हो रहा है और यही वजह है कि खुदा हाफिज़ की जगह अल्लाह हाफिज़ ने ले ली है।'

मुफ्ती साहब ने मुगलकाल में भी खुदा हाफिज़ के इस्तेमाल पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा, 'मुगल सल्तनत में उर्दू को असल ज़बान माना जाता था।। हिन्दुस्तान के अलग अलग मज़हब के लोगों के लिए उर्दू का इस्तेमाल अधिक से अधिक होने लगा। यहां तक कि मुगल दरबार में अरबी के इस्तेमाल से परहेज़ किया जाता रहा और यही वजह थी कि मुगल सल्तनत में सलाम के बजाय आदाब को अधिक महत्व दिया गया और इसे प्रचलित किया गया। इसी तरह इस दौर में अल्लाह हाफिज़ के बजाय खुदा हाफिज़ का अधिक इस्तेमाल होने लगा।

शिया-सुन्नी नज़रिया : आजकल बहुत से मुसलमान खुदा हाफिज़ के बजाय अल्लाह हाफ़िज़ कहने पर ज़ोर देते हैं, जबकि पूरी फारसी शायरी में अल्लाह के लिए लफ़्ज़ खुदा का इस्तेमाल किया गया है। अल्लाह हाफिज़ और खुदा हाफिज़ के फर्क को शिया सुन्नी के फर्क के साथ जोड़ने में कोई तुक नज़र नहीं आती क्योंकि दोनों शब्दों में भाषा का ही अंतर है।

अल्लाह हाफिज़ पहले क्यों : मुसलमान खुदा हाफिज़ के बजाय अल्लाह हाफ़िज़ कहने पर ज़ोर देते हैं और इसकी वजह यह है कि कुरआन में कहीं भी खुदा शब्द नहीं है। खुदा फारसी शब्द है और इसका इस्तेमाल पहले पर्शियन गॉड के लिए किया जाता था। मुसलमान अल्लाह को उसके अनुवादित रूप (खुदा) के बजाय मूल रूप में पुकारना अधिक पसंद करते हैं, इसीलिए खुदा हाफिज़ न कहकर अल्लाह हाफिज़ कहा जाता है।

राजनीतिक पृष्ठभूमि : खुदा हाफिज़ के स्थान पर अल्लाह हाफिज़ इस्तेमाल होने की राजनीतिक पुष्ठभूमि भी है।पाकिस्तान में 1978 में जिया उल हक सत्ता में आया तो उसने सबसे पहले सऊदी अरब से संबंध गहरे करने की दिशा में कदम बढ़ाए क्योंकि यहां से पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति हो रही थी।

इसके बाद जिया उल हक ने लायलपुर का नाम किंग फैसल के नाम पर फैसलाबाद रखा और इसका असर यह हुआ कि पाकिस्तान को बड़ी रकम मिली। इसके अगले साल 1979 में दो बड़ी घटनाएं हुई। सोवियत सेना अफगानिस्तान आई और खुमैनी ने ईरान में सत्ता संभाली। ये दोनों घटनाएं अमेरिका के लिए रेड सिग्नल थीं।

शिया लीडर खुमैनी के सत्ता में आने के बाद ईरान में सारे कानून शिया थिओलाजी के लागू हुए। यहां खास बात यह है कि ईरान की जबान फ़ारसी है और खुदा लफ्ज़ फ़ारसी का है। सऊदी अरब की ज़बान अरबी है और अल्लाह लफ्ज़ अरबी का है। अब जिया उल हक को सऊदी अरब और अमेरिका के सामने यह साबित करना था कि वह ईरान का कट्टर विरोधी है। उसने एक के बाद एक पाकिस्तान में ऐसे काम किए जिससे से सऊदी के साथ साथ अमेरिका भी खुश हो।

यही वह दौर था जब पकिस्तान अचानक इस्लाम से सुन्नी इस्लाम कि तरफ बढ़ गया। अहमदिया, बोहरा, कादियानी शिया समुदायों को इस्लामी दायरे से हटाने कि मुहिम भी शुरू हो गई। इसके अलावा जि़या ने पाकिस्तान के सभी मीडिया जिसमें रेडियो, टीवी, अखबार शामिल थे, उन्हें निर्देश दिए कि खुदा कि जगह अल्लाह इस्तेमाल करें। पहली बार पाकिस्तान रेडियो पर 1979 में सुना गया 'अल्लाह हाफ़िज़।'