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Written By ND

प्यार की गुंजाइश समान स्तर पर

Romance love message | प्यार की गुंजाइश समान स्तर पर
मानसी

ND
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हेलो दोस्तो! हम प्यार के इतने भूखे होते हैं कि कोई सहानुभूति के दो शब्द बोलता है और हम उसे अपना समझ लेते हैं। खासकर जब हम नौजवान हों। उस वक्त दुनियादारी हम ज्यादा जानते नहीं और घाघ लोगों से हमारा वास्ता न पड़ा हो तो बड़ी आसानी से हम किसी भी व्यवहार कुशल व्यक्ति के सहयोग और मदद को अपने जी-जान से लगा लेते हैं। हमें लगता है कि वह हमारा कितना बड़ा शुभचिंतक है। उसे हमारी कितनी फिक्र है। हम दिलोजान से कुर्बान होने के लिए उसके सामने बिछने लगते हैं।

सोचते हैं कि हम यह एहसान कैसे चुकाएँ! और तब उस उम्र में आपके पास सिवाय आपके प्यार भरे दिल के और होता ही क्या है। बस आप उसे अपनी हथेली पर लेकर परोस देते हैं। सामने वाले ने यदि दुनिया देखी हुई है तो वह मौका हाथ से जाने नहीं देता और आप उस अजीबोगरीब रिश्ते में फँसकर रह जाते हैं। ऐसी स्थिति वहीं पर होती है जहाँ दो लोगों में ज्यादा असमानता हो।

ऐसी ही एक उलझन में फँस गए हैं दीपक तिवारी (बदला हुआ नाम)। दीपक एक नौजवान हैं और कॉलेज के छात्र हैं। आर्थिक हालत अच्छी नहीं होने के कारण उसी कॉलेज में फोर्थ ग्रेड की नौकरी भी करते हैं। दीपक को दोगुनी से भी अधिक उम्र की उसी कॉलेज की एक प्रोफेसर से प्यार हो गया है। दीपक को लगता है कि यह संबंध अस्वाभाविक है और वह असमंजस में रहते हैं।

दीपक जी, आपके भीतर असमंजस जैसा अहसास पैदा होना बहुत ही स्वाभाविक है क्योंकि यह रिश्ता न केवल असहज है बल्कि अनैतिक भी। अनैतिक इसलिए नहीं कि वह आपसे उम्र में बड़ी हैं या उनका अपना संसार है। अनैतिक इसलिए कि जिस रिश्ते को आप समाज में किसी भी रूप में सम्मानित रूप से स्वीकार न कर सकें, उसे किसी भी स्वरूप में, चाहे दोस्ती के रूप में ही दर्जा न दिला सकें वह सही या नैतिक नहीं हो सकता। हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है और उसे सामाजिक रूप से निभाना पड़ता है। कोई यदि इस बात से इनकार करता हो तो उस रिश्ते से पीछे हट जाना चाहिए।

प्यार का रिश्ता मन का रिश्ता होता है। यहाँ रुतबे की जरूरत नहीं होती। अगर किसी को अपने रुतबे के कारण प्यार को स्वीकार करने में शर्म आती है तो उसे प्यार नहीं करना चाहिए या यूँ कहें कि वहाँ प्यार है ही नहीं।
प्यार का अहसास और रिश्ता बहुत ही पवित्र होता है। इतना पाक कि जितना सामाजिक मुहर लगे रिश्ते भी नहीं होते। अधिकतर शादीशुदा जोड़े बस अपनी सामाजिक पहचान बनाए रखने के लिए ही रिश्ता निभा रहे होते हैं। उन रिश्तों में कितना सम्मान व प्यार छुपा होता है यह तो बस उनका दिल ही जानता है। दरअसल, नौकरी हो या रिश्ता, हर जगह हमें एक साइन बोर्ड चाहिए जिसे हम लगाए घूमते फिरें।

प्यार का रिश्ता मन का रिश्ता होता है। यहाँ रुतबे की जरूरत नहीं होती। अगर किसी को अपने रुतबे के कारण प्यार को स्वीकार करने में शर्म आती है तो उसे प्यार नहीं करना चाहिए या यूँ कहें कि वहाँ प्यार है ही नहीं। बस यूँ समझे कि कोई अपनी एकरसता भरी जिंदगी में जोश, बदलाव और रोमांस भरना चाहता है। उसे यह रिश्ता केवल उस सिनेमा की तरह लगता है जिसे देखकर वह थोड़ी देर के लिए अपने जीवन में ताजगी भर सके।

फिल्म देखते हुए हम खुशी-गम के कितने अहसास से गुजरते हैं पर फिर हम अपनी वास्तविक दुनिया में लौट आते हैं। ऐसे बेमेल रिश्तों की तुलना इसी प्रकार की जा सकती है। दीपक जी, आप यह रिश्ता तोड़ लें। इस रिश्ते से निकलने में ही आपकी भलाई है। किसी के सहयोग या मदद के बदले अपनी भावना की बलि नहीं चढ़ाई जाती।

यह रिश्ता आपके मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालेगा। वह आपसे बड़ी हैं, परिपक्व हैं, उस स्थान पर हैं कि जरूरतमंद छात्र की मदद कर सकें। यह मदद उनका फर्ज बनता है। एक मासूम दिल के साथ खिलवाड़ करना पाप ही नहीं जुर्म है। यदि आपने उनके एहसान से भावविभोर होकर उन्हें देवी समझकर खुद को अर्पण भी कर दिया तो उन्हें आपको सही राह दिखाना चाहिए था। दीपक जी, प्यार के रिश्ते में बहुत बड़ा तत्व समानता का होता है। अपने बराबर वालों के साथ दोस्ती और प्यार करें ताकि आप शान से अपनी भावना पर फख्र कर सकें।

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