प्रेम कविता : हां, मैंने भी देखा था मुझको...
हां, मैंने भी देखा था
मुझको ही
खुद को ही
उस समय...
तुम जब मिले तो चंद्र-सी चमक
मेरे चेहरे पर निखर आई थी
सूर्य-सा सौभाग्य मेरे माथ पर सज उठा था
तुम्हारे साथ का जादू ही था कि
आ गया मुझमें धरा-सा धैर्य
और अरमानों को मिल गया वायु-सा वेग
जीवन जल-सा सरल-तरल हो गया.....
झरने-सी कलकल झर-झर
खूब सारी खुशियों का स्वर
सुना था मैंने हर तरफ....
तारों-सी टिमटिम
दमकती मुस्कुराती मेरी चूनरी ने
देखा था मुझको
मुझे ही निहारते हुए...
और मैंने शर्मा कर फैला दिया था उसे
आसमानी असीमता को छूने के लिए
लहराते हुए...