प्रेम काव्य : दोस्त सयाने
- रजनी मोरवाल
छलक गए आखिर इस पल में
उनकी नफरत के पैमाने।
मुसकानें अधरों पर लादे
वर्षों तक जो साथ चले थे,
या यूं कह लो गर्दन तक वे
अहसानों के बोझ तले थे,
आंख चुराते फिरते हैं अब
दुश्मन बनकर दोस्त सयाने।
कविता की गलियों ने जब भी
कभी हमारा साथ कराया,
हाथ मिलाकर बढ़े दोमुंहे
जैसे कोई श्राद्ध सिराया,
नाम हुआ जब कुछ मेरा तो
लगे बिचारे वे घबराने।
ताने दे-दे हार थके जब
उलाहनों के झाड़ उगाए,
शब्दों के कोड़े लेकर के
वार पीठ पर है बरसाए,
मैंने तो बस हंसकर झेले
सभी तीर जो लगे निशाने।
साभार- हिन्दी चेतना