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समझनी होगी भारत मां की वेदना

समझनी होगी भारत मां की वेदना - 26 January Republic day
- नजमू नवी खान 'नाज'














पृथ्वी के धरातल पर तमाम देश हैं, मगर भारत देश को ही हम 'माता' के नाम से पुकारते हैं। माता जो केवल अपने बच्चों के भले के बारे में ही सोचती है, जिसका जीवन अपने बच्चे के इर्द-गिर्द ही सीमित रहता है, जो अपने बच्चों पर सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहती है।

भारत मां जिसने हमें सब कुछ दिया है आज वह दर्द से कराह रही है। उसके बच्चे उसको धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता के नाम पर बांटने में लगे हैं। भारत एक ऐसा देश है जिसको ईश्वर का वरदान प्राप्त है। यहां पर सारी ऋतुएं (गर्मी, सर्दी, वर्षा, वसंत), विविध फसलें (रबी, खरीफ, जायद), धरातलीय विभिन्नताएं (मैदानी, पहाड़ी, समुद्र, नदियां, मरुस्थल) पाई जाती हैं।

कहने का आशय यह है कि ईश्वर ने हमारे वतन को सारी नेमतों से नवाजा है। मां (भारत माता) जिसने कभी भी अपने बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव अपने सारे संसाधनों के वितरण में नहीं किया, सभी को एक समान और खुले दिल से प्यार दिया, आज उसके बेटों ने ही उसका दिल छलनी कर दिया है। वे आपस में रक्तपात कर रहे हैं। मां की बेटियां अपने ही घर में सुरक्षित नहीं हैं।

आज हमारे देश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार (कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या) में तेजी दर्ज की जा रही है। वे आज सवाल पूछ रही हैं कि क्यों आजाद होकर भी हमने आजादी नहीं पाई।

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मां के कुछ शिशु स्कूल जाते हुए अपनी ही उम्र के साथियों को किसी होटल में हाथों में बर्तन मांजने की राख देखते हैं तो सोचते हैं कि क्यों उनके हाथों में पेन नहीं है और कंधे पर बैग की बजाय टेबल साफ करने का कपड़ा क्यों है?

आज माता अपने घर में व्याप्त समस्याओं से व्यथित है। अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, धर्मांधता जैसी तमाम बीमारियां फैलती ही जा रही हैं। घर के मुखिया समस्या को हटाने की बजाय ध्यान भटकाने में लगे हुए हैं। विदेशी शासकों से तो हमने मुक्ति पा ली लेकिन वर्तमान परिस्थिति में उनकी ही नीति अमल में लाई जा रही है।

'फूट डालो और राज करो' नीति का हमारे राजनेता भी अनुसरण कर रहे हैं। वे हमें धर्म, भाषा के नाम पर बांटकर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं जिसमें वे काफी हद तक सफल होते दिख रहे हैं, लेकिन उनकी ये गतिविधियां हमारे राष्ट्र को नुकसान पहुंचा रही हैं।

हमारा देश जो कि ज्ञान का केंद्र रहा है, आज शिक्षा के बाजारीकरण के दौर से गुजर रहा है। आज हमारे देश में धर्म, राजनीति, शिक्षा सबसे चोखे धंधों में शुमार है।

आज संत के चोले में भू-माफिया व अपराधी घूम रहे हैं, जो राजनेताओं के संरक्षण में फल- फूल रहे हैं। संत को ईश्वर-प्राप्ति का साधन माना जाता था, जो सांसारिक प्रलोभनों को भुलाकर केवल और केवल ईश्वर की साधना में लीन रहता था, परंतु वर्तमान में संत की परिभाषा बदल गई है।

आज संत वो है, जो लग्जरी वाहनों में चलता है जिसके साथ अत्याधुनिक हथियारों से लैस अंगरक्षक होते हैं, जो टीवी चैनलों के माध्यमों से अपने विचारों को जनता के सम्मुख रखता है। हमारे देश में दो ही वर्ग मौज कर रहे हैं। एक राजनेता व दूसरा आधुनिक संत। आज धर्म एक बड़े व्यवसाय के रूप में उभरा है जिसका आधुनिक संत व्यापारी है।

अत्यंत दुःख की बात है, लेकिन यह कटु सत्य हैं कि आज हम दीन-दुखियों को एक पैसा भी देने से कतराते हैं लेकिन धर्म के नाम पर लाखों का दान एकत्र हो जाता है। समाज को राह दिखलाने वाले खुद ही राह से भटक गए हैं। मां तो वो है, जो दूसरे के बच्चों को भी गले से लगाती है।

माता यशोदा ने जिस प्रकार कन्हैया का लालन-पालन किया, वह इसका एक उदाहरण है। भारत मां ने भी समय-समय पर पड़ोसी देशों से विस्थापितों को शरण दी है। एक गीत सुना था बचपन में- 'इंसानियत की डगर पर बच्चों दिखाओ चलके, ये देश है तुम्हारा नेता (लीडर) तुम्हीं हो कल के।'

'लीडर' यानी लीड करने वाला एक ऐसा इंसान जिसके पीछे जनता चले और कुछ ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं, जैसे लालबहादुर शास्त्री जिन्होंने सारा जीवन देश की सेवा में लगा दिया और अपने लिए कुछ भी नहीं बचाया।

हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि पहले ऐसे विधायक/सांसद हुआ करते थे, जो जनता के द्वार पर जाकर पूछते थे कि आपकी क्या समस्या है? वे थे सच्चे मायनों में जनसेवक।

अपने काले कारनामों को उजले वस्त्रों के पीछे छिपाने के लिए राजनेता संसद के बाहर एक-दुसरे का विरोध करते नजर आते हैं, लेकिन जब उनके फायदे की बात आती है तो एक सुर में बोलते हैं।

इसका ताजा उदाहरण सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला, जिसमें अपराधी को चुनाव लड़ने से रोकना था, को संसद के भीतर सारे दलों द्वारा एकमत से संशोधित कर दिया गया। आरटीआई के दायरे से पार्टियों का बाहर होना भी यही दर्शाता है कि आधुनिक राजनेता जनसेवा नहीं, बल्कि 'स्वयंसेवा' कर रहे हैं।

भारतमाता के वीर सपूत, जो कि सीमा पर देश की रक्षा के लिए सर्वस्व न्योछावर कर रहे हैं, उनके कफन तक में हमारे राजनेता दलाली खा रहे हैं। आमजन के लिए बनने वाली योजनाओं का पैसा अफसर और बाबू खा रहे हैं। आज भारत मां अपनी एक संतान को दूसरी संतान द्वारा सताता देख व्यथित है