गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

ये है दुनिया के खास पवित्र स्थल, जानिए रहस्य...

ये है दुनिया के खास पवित्र स्थल, जानिए रहस्य...

ये है दुनिया के खास पवित्र स्थल, जानिए रहस्य... - all religious place shrines
दुनिया के जितने भी प्राचीन धर्म हैं उनमें 3 बातें सदा से प्रमुख रहीं- मूर्ति पूजा, प्रकृति पूजा और बहुदेववाद। इन तीनों से अलग सर्वप्रथम वैदिक ऋषियों ने एकेश्वरवाद अर्थात 'ब्रह्मवाद' की घो‍षणा की थी। इसी दर्शन को पारसी और इब्राहीमी धर्म के लोगों ने अपनाया। इस दर्शन को अतिवादी तरीके से मानना बिलकुल ही उचित नहीं है, क्योंकि सत्य को किसी एक डायमेंशन से नहीं जाना जा सकता। उसके लिए एक हजार डायमेंशन भी कम पड़ेंगे।
दुनियाभर में कई धर्म आज भी मौजूद हैं और कई का वजूद मिटा दिया गया है। दुनिया में हजारों तरह के धर्म हैं जिनमें प्रमुख हैं- हिन्दू, जैन, बौद्ध, यहूदी, ईसाई, पारसी, इस्लाम और सिख।
 
इसके अलावा बहुत से धर्म लुप्तप्राय हैं तो बहुत से लुप्त होने की कगार पर हैं। सभी में बहाई, ताओ, कन्फ्यूशियस, लाओत्से, यजीदी, काओ दाई, चेनोडो मत, तेनरिक्यो, विक्का, सिचो-नो-ले, वूडू, बहाई, पेगन, सबाइन, सुमेरी, असरीरिया, माया, मुश्रिक आदि प्रमुख हैं।
 
इस्लाम में कई ऐसे संप्रदाय हैं, जिनको इस्लाम की मूल विचारधारा से अलग माना जाता हैं, जैसे सूफी, अहमदिया, बोहरा, कादियानी, खारजी, तर्क और कुर्द। इसी तरह हिन्दुओं में वैदिक आर्य विचारधारा से अलग है वैष्णव, शैव, शाक्त, नाथ और स्मार्त। हालांकि यह शोध का विषय हो सकता है।
 
आओ हम जानते हैं देश-विदेश के कुछ प्रमुख और प्रचलित धर्मों और उनके संप्रदायों के पवित्र तीर्थ, जियारत और इबादत स्थल के बारे में संक्षिप्त जानकारी। इन्हें जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। जरूर पढ़ें और अपने ज्ञान को अपडेट करें।
 
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राम की अयोध्या : भगवान राम की नगरी अयोध्या हजारों महापुरुषों की कर्मभूमि रही है। यह पवित्र भूमि हिन्दुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां पर भगवान राम का जन्म हुआ था। यह राम जन्मभूमि है। राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। आधुनिक शोधानुसार भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व चैत्र मास की नवमी को हुआ था।
 
माना जाता है कि 1528 में बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। बाबर एक तुर्क था।
 
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कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा (उत्तरप्रदेश) : श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। मथुरा यमुना नदी के तट पर बसा एक सुंदर शहर है। मथुरा जिला उत्तरप्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है।
मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है और कहा जाता है कि उसी जन्मभूमि के आधे हिस्से पर बनी है ईदगाह। कहते हैं कि औरंगजेब ने 1660 में मथुरा में कृष्ण मंदिर को तुड़वाकर ईदगाह बनवाई थी। मथुरा शहर के आसपास ही वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, नंदगांव, बरसाना आदि तीर्थ स्थित हैं।
 
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काशी विश्वनाथ, वाराणसी (उत्तरप्रदेश) : द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। यह मंदिर प्राक्-ऐतिहासिक काल में निर्मित हुआ था। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। 
कहते हैं कि ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। यह भी माना जाता है कि उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। बाद में यहां एक मस्जिद बना दी गई। ऐसा माना जाता है कि सन् 1776 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने मस्जिद के पास मंदिर के पुनर्निमाण के लिए काफी धनराशि दान की थी।
 
इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
 
18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई 
 
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बौद्ध धर्म के प्रमुख चार तीर्थ हैं-
1. लुम्बिनी : जहां बुद्ध का जन्म हुआ।
2. बोधगया : जहां बुद्ध ने 'बोध' प्राप्त किया।
3. सारनाथ : जहां से बुद्ध ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।
4. कुशीनगर : जहां बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ।
1. लुम्बिनी lumbini  : बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी स्थान पर ईसा पूर्व 563 को हुआ। लुम्बिनी महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली है। उस काल में यह शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के पास था। यह स्थान सभी हिन्दू और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है। 
 
 
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यह स्थान नेपाल की तराई में पूर्वोत्तर रेलवे की गोरखपुर-नौतनवां लाइन के नौतनवां स्टेशन से 20 मील और गोरखपुर-गोंडा लाइन के नौगढ़ स्टेशन से 10 मील दूर है। नौगढ़ से यहां तक पक्का मार्ग भी बन गया है। यहां के प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। केवल अशोक का एक स्तंभ है जिस पर खुदा है- 'भगवान बुद्ध का जन्म यहां हुआ था।' इस स्तंभ के अतिरिक्त एक समाधि स्तूप भी है जिसमें बुद्ध की एक मूर्ति है। नेपाल सरकार द्वारा निर्मित दो स्तूप और हैं। रुक्मनदेई का मंदिर दर्शनीय है। एक पुष्करिणी भी यहां है।
 
2. बोधगया bhodhgaya : यहां बुद्ध ने 'बोध' प्राप्त किया था। भारत के बिहार में स्थित गया स्टेशन से यह स्थान 7 मील दूर है।
 
3. सारनाथ : उत्तरप्रदेश के बनारस छावनी स्टेशन से 5 मील, बनारस सिटी स्टेशन से 3 मील और सड़क मार्ग से सारनाथ 4 मील पड़ता है। यह पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है और बनारस से यहां जाने के लिए सवारियां तांगा, रिक्शा आदि मिलते हैं।
 
भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। यहीं से उन्होंने धर्मचक्र प्रवर्तन प्रारंभ किया था। सारनाथ की दर्शनीय वस्तुएं हैं- अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का मंदिर (यही यहां का प्रधान मंदिर है), धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप, सारनाथ का वस्तु संग्रहालय, जैन मंदिर, मूलगंधकुटी और नवीन विहार।
यह संयोग ही है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व उन्होंने 'बोधगया' (भारत में) में एक वृक्ष के ‍नीचे जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को 'कुशीनगर' (भारत) में अलविदा कह गए
 
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महावीर की वैशाली : वर्धमान महावीर या महावीर, जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभनाथ (आदिनाथ) की परंपरा में 24वें तीर्थंकर थे। महावीर का जीवनकाल 599 ईसा पूर्व से 527 ईसा पूर्व तक माना जाता है। उनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ एवं माता का नाम प्रियकारिणी (त्रिशला) था। 
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भगवान महावीर स्वामी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को प्राचीन भारत के वैशाली राज्य (जो अब बिहार प्रांत में है) के पास बसोकुंड में हुआ था। यह स्थान भी हिन्दू और जैन दोनों की ही आस्था का केंद्र है।
 
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श्री सम्मेदशिखरजी (गिरिडीह, झारखंड) : जैन धर्म में सम्मेदशिखरजी को सबसे बड़ा तीर्थस्थल माना जाता है। यह भारतीय राज्य झारखंड में गिरिडीह जिले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ पर स्थित है। इस पहाड़ को पार्श्वनाथ पर्वत कहा जाता है। 
श्रीसम्मेदशिखरजी के रूप में चर्चित इस पुण्य स्थल पर जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष प्राप्त किया था। यहीं पर 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान 'आदिनाथ' अर्थात भगवान ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर, 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चंपापुरी, 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ ने गिरनार पर्वत और 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया।
 
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श्रवणबेलगोला : यह प्राचीन तीर्थस्थल भारतीय राज्य कर्नाटक के मड्या जिले में श्रवणबेलगोला के गोम्मटेश्वर स्थान पर स्थित है। यहां पर भगवान बाहुबली की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है, जो पूर्णत: एक ही पत्थर से निर्मित है। इस मूर्ति को बनाने में मूर्तिकार को लगभग 12 वर्ष लगे। बाहुबली को गोम्मटेश्वर भी कहा जाता था।
 
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श्रवणबेलगोला में गोम्मटेश्वर द्वार के बाईं ओर एक पाषाण पर शक सं. 1102 का एक लेख कानड़ी भाषा में है। इसके अनुसार ऋषभ के दो पुत्र भरत और बाहुबली थे। ऋषभदेव के जंगल चले जाने के बाद राज्याधिकार के लिए बाहुबली और भरत में युद्ध हुआ। बाहुबली ने युद्ध में भरत को परास्त कर दिया। लेकिन इस घटना के बाद उनके मन में भी विरक्ति भाव जाग्रत हुआ और उन्होंने भरत को राजपाट ले लेने को कहा, तब वे खुद घोर तपश्चरण में लीन हो गए। तपस्या के पश्चात उनको यहीं पर केवलज्ञान प्राप्त हुआ। भरत ने बाहुबली के सम्मान में पोदनपुर में 525 धनुष की बाहुबली की मूर्ति प्रतिष्ठित की। प्रथम सबसे विशाल प्रतिमा का यहां उल्लेख है।
 
कालांतर में मूर्ति के आस-पास का प्रदेश वन कुक्कुटों तथा सर्पों से व्याप्त हो गया जिससे लोग मूर्ति को ही कुक्कुटेश्वर कहने लगे। भयानक जंगल होने के कारण यहां कोई पहुंच नहीं पाता था इसलिए यह मूर्ति लोगों की स्मृति से लुप्त हो गई।
 
गंगवंशीय रायमल्ल के मंत्री चामुंडा राय ने इस मूर्ति का वृत्तांत सुनकर इसके दर्शन करने चाहे, किंतु पोदनपुर की यात्रा कठिन समझकर श्रवणबेलगोला में उन्होंने पोदनपुर की मूर्ति के अनुरूप ही गोम्मटेश्वर की मूर्ति का निर्माण करवाया। गोम्मटेश्वर की मूर्ति संसार की विशालतम मूर्तियों में से एक मानी जाती है।
 
श्रवणबेलगोला में चंद्रगिरि और विंध्यगिरि नाम की 2 पहाड़ियां पास-पास हैं। पहाड़ पर 57 फुट ऊंची बाहुबली की प्रतिमा विराजमान है। हर 12 वर्ष बाद महामस्तकाभिषेक होता है।
 
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यरुशलम का पवित्र परिसर : यरुशलम बहुत ही प्राचीन शहर है। मध्यपूर्व का यह प्राचीन नगर यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का संगम स्थल है। उक्त तीनों धर्म के लोगों के लिए इसका महत्व है इसीलिए यहां पर सभी अपना कब्जा बनाए रखना चाहते हैं। हिब्रू में लिखी बाइबिल में इस शहर का नाम 700 बार आता है। 
यहां का सुलेमानी प्राचीन मंदिर, जिसके परिसर में अब मस्जिद, चर्च और यहूदियों के स्थान बन गए हैं, यह पहले सिनेगॉग था। 937 ईपू बना यह सिनेगॉग इतना विशाल था कि इसे देखने में पूरा एक दिन लगता था, लेकिन लड़ाइयों ने इसे ध्वस्त कर दिया। अब इस स्थल को 'पवित्र परिसर' कहा जाता है। माना जाता है कि इसे राजा सुलेमान ने बनवाया था।
 
किलेनुमा चहारदीवारी से घिरे पवित्र परिसर में यहूदी प्रार्थना के लिए इकट्ठे होते हैं। इस परिसर की दीवार बहुत ही प्राचीन और भव्य है। यह पवित्र परिसर यरुशलम की ओल्ड सिटी का हिस्सा है। 
 
पहाड़ी पर से इस परिसर की भव्यता देखते ही बनती है। इस परिसर के ऊपरी हिस्से में तीनों धर्म के पवित्र स्थल हैं। उक्त पवित्र स्थल के बीच भी एक परिसर है। पहाड़ी पर से इस परिसर की भव्यता देखते ही बनती है। इस परिसर के ऊपरी हिस्से में तीनों धर्म के पवित्र स्थल हैं। उक्त पवित्र स्थल के बीच भी एक परिसर है। पवित्र परिसर की दीवार के पास तीनों ही धर्म के स्थल हैं। 
 
यरुशलम में लगभग 1204 सिनेगॉग, 158 गिरजें, 73 मस्जिदें, बहुत-सी प्राचीन कब्रें, 2 म्‍यूजियम और एक अभयारण्य है। यहां एक प्राचीन पर्वत है जिसका नाम जैतून है। इस पर्वत से यरुशलम का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। इस पर्वत की ढलानों पर बहुत-सी प्राचीन कब्रें हैं। यरुशलम चारों तरफ से पर्वतों और घाटियों वाला इलाका नजर आता है।
 
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ईसा मसीह की जन्मभूमि बेथलहेम : 25 दिसंबर सन् 2 ईसा पूर्व को एक यहूदी बढ़ई की पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से यीशु का जन्म बेथलहेम में हुआ। यह भूमि दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र है। इसराइल में यह स्थल यरुशलम से 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
 
बेथलहेम में स्थित चर्च ऑफ नेटिविटी को ईसा मसीह की जन्मस्थली माना जाता है। पानी के रिसाव के कारण वहां जाने वाला तीर्थमार्ग क्षतिग्रस्त है। यहां पर सबसे पहले 339 ईस्वी में एक चर्च पूरा किया गया था और 6ठी शताब्दी में आग लगने के बाद जिस इमारत ने उसकी जगह ली है, उसमें मूल इमारत के फर्श पर विस्तृत पच्चीकारी को बरकरार रखा गया है। इसमें लातिन, ग्रीक आर्थोडॉक्स, फ्रांसिस्कन और आर्मीनियन कॉन्वेंट और गिरजाघरों के साथ-साथ घंटाघर और बगीचे भी शामिल हैं।
 
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चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर : ईसाइयों के लिए भी यह शहर बहुत महत्व रखता है, क्योंकि यह शहर ईसा मसीह के जीवन के अंतिम भाग का गवाह है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईसा एक बार फिर यरुशलम आएंगे। पुराने शहर की दीवारों से सटा एक प्राचीन पवित्र चर्च है जिसके बारे में मान्यता है कि यहीं पर प्रभु यीशु पुन: जी उठे थे। माना यह भी जाता है कि यही ईसा के अंतिम भोज का स्थल है। यह चर्च ईसाई क्वार्टर के इलाके में हैं।
 
चर्च ऑफ डर्मिशन : जियोन गेट के पास स्थित चर्च ऑफ डर्मिशन का महत्व भी कम नहीं है। माना जाता है कि इसका पहले नाम वर्जिन मेरी था। यह स्थान मदर मेरी के स्थान के नाम से जाना जाता है। यहां उनकी सुंदर मू‍र्ति और यहां एक प्राचीन शिलालेख है जिस पर हिब्रू भाषा में चर्च के बारे में लिखा है। यहीं आगे राजा डेविड की कब्र है। एक चर्च लॉयन गेट के सामने ही भी है, जहां वर्जिन मेरी की कब्र है। 
 
विवा डोलोरोसा : विवा डोलोरोसा वह क्षेत्र है, जहां से यीशु को क्रॉस के साथ ले जाया गया था। इसे दुख या पीड़ा का मार्ग माना जाता है। होली स्कल्प्चर से फ्लेगलेशन तक का मार्ग। इस मार्ग के बाद ओल्ड सिटी के पूर्वी भाग में चर्च ऑफ फ्लेगलेशन को वह स्थान माना जाता है, जहां सार्वजनिक रूप से यीशु की निंदा हुई और उन्हें क्रॉस पर चढ़ा दिया। यह एक रोमन कैथोलिक चर्च है, जो संत स्टीफन गेट के पास है। इस चर्च के पास ही संत एन्ना का चर्च भी है, जो 12वीं सदी में निर्मित हुआ था।
 
अगले पन्ने पर ग्यारहवां पवित्र स्थल...
 

आतिश बेहराम (Atash Behram) : पारसी धर्म ईरान का राजधर्म हुआ करता था। पैगंबर जरथुष्ट्र ने इस धर्म की स्थापना की थी इसीलिए इसे जरथुष्ट्री धर्म भी कहते हैं। पारसियों का प्रमुख धार्मिक स्थल पश्चिमी ईरान के सिस्तान प्रांत की हमुन झील के पास खाजेह पर्वत पर था। इसकी खोज में यहां से 250 ईसा-पूर्व बने मंदिर के अवशेष मिले हैं।
ईरान का प्राचीन नाम है पारस्य (फारस)। पारस्य देश पारसियों की मूल जन्मभूमि है, लेकिन इस्लामिक आक्रमण के चलते पारसी लोग पलायन कर गए थे उनमें से कुछ भारत आ गए और कुछ कजाकिस्तान चले गए थे।
 
हालांकि अब भारत में पारसियों के जहां भी कहीं प्रार्थना स्थल है, उसे आतिश बेहराम कहा जाता है। आतिश इसलिए कि पारसी धर्म के लोग अग्निपूजक हैं। फारसी में आतिश का अर्थ अग्नि होता है। इसे फायर टेम्पल भी कह सकते हैं। अग्निपूजक होने का यह अर्थ नहीं कि वे एकेश्वरवादी नहीं हैं। माना जाता है कि पारसी धर्म को आर्यों की ईरानी शाखा ने स्थापित किया था।
 
अगले पन्ने पर बारहवां पवित्र स्थल...
 

मक्का : कुछ विद्वानों के मुताबिक इस्लाम के संस्थापक पैगंबर हजरत मुहम्मद (मोहम्मद) साहब सल्ल. अलै. का जन्म हिजरी रबीउल अव्वल महीने की 2 तारीख को मनाया जाता है। 571 ईसवीं को शहर मक्का में पैगंबर साहब हजरत मुहम्मद सल्ल. अलै. का जन्म हुआ था। 
मक्का सऊदी अरब में स्थित है। मक्का में हजारों वर्ष पुरानी एक पवित्र मस्जिद 'काबा' (किबला) है अर्थात वह दिशा जिधर मुसलमान नमाज के समय अपने चेहरे का रुख करते हैं। 
 
मदीना : यह दुनियाभर के मुसलमानों के लिए पहला पवित्र स्थल है। मदीना में पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्ल. का समाधि स्थल है।
 
अल अक्सा मस्जिद : तीसरा सबसे पवित्र स्थल है यरुशलम में अल अक्सा मस्जिद। यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद को 'अलहरम-अलशरीफ' के नाम से भी जानते हैं। मुसलमान इसे तीसरा सबसे पवित्र स्थल मानते हैं। उनका विश्वास है कि यहीं से हजरत मुहम्मद जन्नत की तरफ गए थे और अल्लाह का आदेश लेकर पृथ्वी पर लौटे थे। इस ‍मस्जिद के पीछे की दीवार ही पश्चिम की दीवार कहलाती है, जहां नीचे बड़ा-सा परिसर है, जो यहूदियों का पवित्र स्थल है। इसके अलावा यरुशलम में मुसलमानों के और भी पवित्र स्थल हैं जैसे कुव्‍वत अल सकारा, मुसाला मरवान तथा गुम्बदे सखरा भी प्राचीन मस्जिदों में शामिल है।
 
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सिख धर्म के पवित्र स्थल : सिख धर्म के वैसे को कई पवित्र स्थान है लेकिन उनमें से दो प्रमुख है। पहला नानकाना साहिब और दूसरा अमृतसर का स्वर्ण मंदिर। गुरु नानकदेव या नानकदेव सिखों के प्रथम गुरु थे। आपसे ही सिख धर्म की स्थापना होती है। गुरु नानकदेवजी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई. (1526 विक्रमी संवत्‌) वैशाख सुदी 3 में तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ। 
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तलवंडी अब 'ननकाना साहिब' के नाम से जाना जाता है, जो पाकिस्तान के लाहौर जिले से 30 मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह भूमि दुनियाभर के हिन्दू और सिख दोनों ही धर्मों के अनुयायियों के लिए पवित्र तीर्थस्थल है।

स्वर्ण मंदिर, अमृतसर (हरमंदिर साहिब, पंजाब, भारत) : भारत के पंजाब प्रांत के अमृतसर शहर में स्वर्ण मंदिर स्थित है। यह सिख गुरुद्वारा है। इसे हरमंदिर साहिब या श्री दरबार साहिब भी कहा जाता है। इस मंदिर पर स्वर्ण की परत के कारण इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है।
स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले लोग मंदिर के सामने सिर झुकाते हैं, फिर पैर धोने के बाद सीढ़ियों से मुख्य मंदिर तक पहुंचते हैं। सीढ़ियों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुईं सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है। स्वर्ण मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है।
 
अगले पन्ने पर चौदहवां पवित्र स्थल...
 
बहाई धर्म : बहाई पंथ 19वीं सदी के ईरान में सन् 1844 में स्थापित एक नया धर्म है, जो एकेश्वरवाद और विश्वभर के विभिन्न धर्मों और पंथों की एकमात्र आधारशिला पर जोर देता है। इसकी स्थापना बहाउल्लाह ने की थी और इसके मतों के मुताबिक दुनिया के सभी मानव धर्मों का एक ही मूल है।
 
भारत का बहाई धर्म से उसके उद्भव काल से ही संपर्क रहा। बहाई धर्म को भारत में ही फलने और बढ़ने का मौका मिला। जिन 18 पवित्र आत्माओं ने 'महात्मा बाब', जो कि 'भगवान बहाउल्लाह' के अग्रदूत थे, को पहचाना और स्वीकार किया था, उनमें से एक व्यक्ति भारत से भी थे। आज लगभग 20 लाख बहाई भारत देश की महान विविधता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

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द टेंपल ऑफ हेवन (स्वर्ग का मंदिर, बीजिंग : चीन) : चीन का यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। इसे ताओ धर्म का प्राचीन मंदिर कहते हैं। ताओ बौद्ध धर्म से ही संबंधित है। इस मंदिर को देखकर लोगों को यह अहसास होता है कि वास्तव में हेवन यानी स्वर्ग ऐसा ही होगा। 
the temple of heaven
यहां पर ताओ धर्म परंपराओं के अनुसार पूजन और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। 'द टेंपल ऑफ हेवन' का निर्माण 13वीं शताब्दी में किया गया था। यह ध्यान और धार्मिक अभ्यास का श्रेष्ठ स्थान है। ताओ चीन के एक आध्यात्मिक गुरु थे। ताओ की बहुत सारी शिक्षाएं बुद्ध से प्रेरित हैं।
 
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जेन धर्म : जेन (zen) को झेन भी कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ 'ध्यान' माना जाता है। यह संप्रदाय जापान के सेमुराई वर्ग का धर्म है। सेमुराई समाज योद्धाओं का समाज है। इसे दुनिया की सर्वाधिक बहादुर कौम माना जाता था। जेन का विकास चीन में बौद्ध धर्म की एक शाखा के रूप में लगभग 500 ईस्वी में हुआ। चीन से यह 1200 ईस्वी में जापान पहुंचा।

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सूफीवाद : माना जाता है कि सूफीवाद का जन्म इराक के बसरा नगर में करीब 1,000 वर्ष पूर्व हुआ था। धुन नून, जुजैद, मंसूर अल-हलाज इस पंथ के प्रणेता और राबिया, अल अदहम, ख्‍वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती, निजा‍मुद्दीन औलिया आदि इस पंथ के प्रचारक थे। मंसूर अल-हलाज सूफीवाद के सबसे विवादास्पद व्यक्तियों में से एक थे।

इराक में अब सूफीवाद के अवशेष ही बचे हैं, ईरान से भी उसे बेदखल कर दिया गया है। अब भारत और पाकिस्तान में ही सूफियों के धार्मिक केंद्र हैं। भारत में सूफीवाद का एक प्रमुख केंद्र अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन की दरगाह, मुंबई में हाजी अली और दिल्ली के पास निजामुद्दीन में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह समेत कई सूफी संतों की दरगाहें हैं।
 
अजमेर शरीफ : सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का मजार है, जहां सभी धर्मों के लोग जियारत करने या मन्नत मांगने के लिए आते हैं। यह दरगाह भारत के राजस्थान प्रांत के अजमेर में स्थित है।