शुक्रवार, 29 मार्च 2024
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Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला

उच्छिष्ट गणपति : ऐश्वर्य भी देते हैं और मोक्ष भी...

उच्छिष्ट गणपति मंदिर सनावद - Uchchhisht Ganapati Temple
संकष्टी चतुर्थी विशेष : आज ही के दिन माह में एक बार खुलता है मंदिर...
यत्रास्ति भोगो न तु तत्र मोक्ष:
यत्रास्ति मोक्षो न तु तत्र भोग:
उच्छिष्टविघ्नेश्वपूजकानां
भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव। 
 
अर्थात संसार में भोग की इच्छा करने वाला व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाता और मोक्ष की कामना करने वाले मनुष्य को भोग छोड़ने पड़ते हैं, किन्तु जो व्यक्ति भगवान उच्छिष्ट महागणपति के दर्शन और आराधना करता है, उसे ऐश्वर्य और मोक्ष दोनों की ही प्राप्ति होती है। 
परम पावन बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक औंकारेश्वर के समीप सनावद के ग्राम मोरघड़ी में स्थित है श्री शनि-गजानन शक्तिपीठ। इसी शक्तिपीठ में दर्शन होते हैं दुर्लभ और अद्भुत भगवान उच्छिष्ट महागणपति के, जिनकी गोद में भगवती नील सरस्वती विराजित हैं। उच्छिष्ट महागणपति भगवान गणेश का ही एक स्वरूप हैं, जिनके दर्शन मात्र से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। इस मंदिर के अधिष्ठाता हैं आचार्य पंडित संदीप बर्वे। 
 
पुण्य सलिला नर्मदा से कुछ ही दूरी पर प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच स्थित यह मंदिर अपने आप में अनूठा है। जैसे ही आप मंदिर में प्रवेश करेंगे तो सर्वप्रथम आपको शनि देव के दर्शन होंगे। प्रवेश द्वार के बाईं ओर रामभक्त हनुमान विराजमान हैं। शनि प्रतिमा के पीछे स्थित है राज राजेश्वरी ललिता त्रिपुर सुंदरी की दिव्य प्रतिमा और उच्छिष्ट महागणपति की प्रतिमा। यहीं पर आपको दर्शन होते हैं मेरु पृष्ठी श्रीयंत्र के। 
 
पंडित संदीप बर्वे बताते हैं कि उच्छिष्ट गणपति का स्वरूप बहुत ही दुर्लभ है। भारत में उच्छिष्ट गणपति का एकमात्र मंदिर तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के समीप काफी जीर्णशीर्ण अवस्था में है, जो कि 1300-1400 साल पुराना है। इसके अलावा चीन में इस तरह का मंदिर होने का उल्लेख मिलता है। वे बताते हैं कि अथर्ववेद में उच्छिष्ट गणपति स्वरूप का उल्लेख मिलता है। मंत्र महार्णव और मंत्र महोदधि नामक ग्रंथों में भी इनका उल्लेख है। सतयुग में गणेशजी के इस स्वरूप की उपासना महर्षि भृगु एवं महर्षि गर्ग ने की थी, जबकि त्रेता युग में वानर राज सुग्रीव और रावण के छोटे भाई वि‍भीषण ने उच्छिष्ट गणपति की आराधना की थी। द्वापर में ऋषि पाराशर एवं कलयुग में आदि शंकराचार्य ने गणेश के इस स्वरूप की उपासना की थी। इसके साथ ही श्री विद्या के सभी उपासक उच्छिष्ट गणपति की निरंतर आराधना करते आ रहे हैं। 
 
उच्छिष्ट गणपति का मंदिर बनाने की प्रेरणा कहां से मिली? इस प्रश्न पर आचार्यजी कहते हैं कि साधना के दौरान गणेशजी से ही प्रेरणा मिली और इस मंदिर में उच्छिष्ट गणपति की प्रतिमा स्थापित हुई। इस गणपति मंदिर की विशेषता के बारे में पंडित बर्वे बताते हैं कि यह मंदिर माह में एक बार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन ही खुलता है। इसी दिन इनके दर्शन किए जा सकते हैं। चतुर्थी को शाम के समय महाआरती के बाद गणेशजी की छोटी प्रतिमा को बाहर कीर्ति स्तंभ तक लाया जाता है और सभी श्रद्धालु अपने पैरों को आगे की तरफ रखकर बैठते हैं। बारी-बारी से सभी को भगवान का आशीर्वाद मिलता है। यहां निर्मित कीर्ति स्तंभ के बारे में मान्यता है कि जो उसे नीचे से ऊपर की ओर निहारता है, उसकी कीर्ति बढ़ती है। 
वे कहते हैं कि गणेश जी का यह स्वरूप जल्दी फल देने वाला है। गणेशजी के ही अन्य स्वरूपों की तुलना में उच्छिष्ट गणपति दस गुना जल्दी फल देते हैं। जो लाभ सवा लाख जप से मिलता है, वही फल उच्छिष्ट गणपति के साढ़े बारह हजार जप से मिल जाता है। गणपति के इस स्वरूप के दर्शन मात्र से बुद्धि, पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, धन-समृद्धि, पारिवारिक सुख-शांति, दीर्घायु, शीघ्र विवाह एवं अनिष्ट ग्रहों का निवारण होता है। इनकी साधना से अन्न का भंडार बढ़ता है साथ ही व्यवसाय में भी वृद्धि होती है। उच्छिष्ट गणपति के दर्शन और पूजन का शास्त्रीय विधान है। 
 
क्या है गणेशजी के इस दुर्लभ स्वरूप के मंत्र और आराधना का शास्त्रीय विधान..... पढ़ें अगले पेज पर.... 
 

भगवान उच्छिष्ट गणपति के दर्शन विधान के बारे में चर्चा करते हुए पंडित संदीप बर्वे बताते हैं कि भगवान की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु मुंह में गुड़, लड्डू या पान खाते हुए दर्शन और पूजन का शास्त्रीय विधान है। श्रद्धालु आराधना के दौरान जो भी सामग्री मुंह में रखेंगे, फल भी उसी के अनुरूप प्राप्त होता है। 
पंडित बर्वे कहते हैं कि ऐसी मान्यता है कि पान मुंह में रखकर गणपति के इस स्वरूप के दर्शन करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती। गुड़ खाकर आराधना करने से धन की वृद्धि होती है, जबकि लड्डू मुंह में रखकर दर्शन करने वाले उपासक का अन्न के भंडार कभी कम नहीं होता।  
 
उच्छिष्ट गणपति के मंत्र-
 
ऊँ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा। 
ऊँ हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने आं क्रों ह्रीं क्लीं ह्रीं हुँ धे धे उच्छिष्ठाय स्वाहा।।
ऊँ नमो भगवते एकदंष्ट्राय हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने आँ क्रों ह्रीं गं धे धे स्वाहा। 
 

अगले पेज पर पढ़ें... उच्छिष्ट गणपति के प्रकट होने की कहानी.... 

उच्छिष्ट गणपति के स्वरूप की कहानी कम रोचक नहीं है। विद्यावान नामक एक असुर था। उसने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया। असुर की लंबी और कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हो गए और उसे वर मांगने को कहा। विद्यावान ने कहा कि हे ब्रह्मदेव! यदि आप मुझे वरदान देना ही चाहते हैं तो मुझे ऐसा वर दीजिए कि कोई भी मेरा वध न कर सके। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि ऐसा वरदान देना असंभव है क्योंकि इस सृष्टि में जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। अत: तुम कोई और वर मांग लो। 
 
काफी सोच-विचार के पश्चात विद्यावान ने कहा कि मुझे ऐसा वर दीजिए कि न तो कोई मानव मुझे मार सके न ही कोई पशु। मुझे वही व्यक्ति मार सके जो अपनी पत्नी के साथ रतिकर्म (संभोग) में लिप्त होकर आए। इसके बाद तथास्तु कहकर ब्रह्मदेव अंतर्धान हो गए। 
 
ब्रह्मा से वरदान प्राप्त करने के बाद विद्यावान निरंकुश और अहंकारी हो गया। उसने पूरे संसार में अपना दमनचक्र शुरू कर दिया। चारों ओर हा-हाकार मच गया। ऋषिगण त्रिदेव की शरण में गए और असुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना की। इस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश इस असुर के संहार के लिए गणेशजी के पास गए क्योंकि गणेशजी का मुख हाथी का है और धड़ मनुष्य का और वरदान के अनुरूप वे ही विद्यावान का नाश करने में सक्षम थे। 
 
त्रिदेव ने गणेशजी से विद्यावान का वध करने के लिए आग्रह किया और वे तैयार भी हो गए, लेकिन उनके साथ शक्ति कौन हो जिसके साथ रतिकर्म में लिप्त होकर गणेश जी असुर के सम्मुख जा सकें। तब सभी ऋषियों और देवताओं ने अथर्ववेद मंत्रों से एक यज्ञ किया। उस यज्ञ से एक शक्ति उत्पन्न हुई, जिसका नाम था नील सरस्वती। फिर नील सरस्वती के साथ मिलकर भगवान गणेश ने विद्यावान असुर का विनाश किया और विश्व में शांति की स्थापना की। बस, यहीं से पूजा शुरू हुई भगवान गणेश के उच्छिष्ट महागणपति स्वरूप की। 
 
जनहितैषी प्रकल्प : पंडित बर्वे के अनुसार शनि गजानन शक्तिपीठ के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण, जल संरक्षण आदि से जुड़ी योजनाओं पर काम किया जाना प्रस्तावित है। इनमें से कृषि और शिक्षा से जुड़ी योजनाओं पर तो काम शुरू भी हो चुका है। इसके तहत गरीब बच्चों की शिक्षा में सहयोग किया रहा है साथ ही कृषकों को भी मिट्‍टी परीक्षण आदि में मदद की जा रही है। 
 
देखें शनि गजानन शक्तिपीठ के त्रिपुर सुंदरी मंदिर का आकर्षक वीडियो
 
कैसे पहुंचे : 
निकटतम रेलवे स्टेशन : खंडवा 48 किलोमीटर
निकटतम हवाई अड्डा : इंदौर 60 किलोमीटर  
सनावद से इंदौर, खंडवा और ज्योतिर्लिंग औंकारेश्वर के लिए बस एवं टैक्सी सेवा उपलब्ध रहती है।