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Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला

सालासर बालाजी : जब भक्त के आग्रह पर पधारे हनुमान

सालासर बालाजी : जब भक्त के आग्रह पर पधारे हनुमान - Salasar Balaji Rajasthan
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
 
मरुधरा राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है राम के प्रिय भक्त और ज्ञानियों में अग्रगण्य महाबली हनुमान का सिद्ध मंदिर। धर्मयात्रा की इस कड़ी में हम आपको लेकर चल रहे हैं अंजनी नंदन हनुमानजी के मंदिर सालासर धाम। 
सालासर बालाजी के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की स्थापना मोहनदास महाराज ने विक्रम संवत 1811 में श्रावण शुक्ल नवमी को की थी। ऐसी मान्यता है कि मोहनदासजी भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमानजी आसोटा में मूर्ति रूप में प्रकट हुए और अपने भक्त की मनोकामना पूर्ण की। तत्पश्चात मूर्ति की सालासर में प्राण प्रतिष्ठा हुई। संवत 1811 (सन 1754) से ही मंदिर परिसर में जहां मोहनदास जी का धूना था, अखंड ज्योति जल रही है। 
 
मंदिर परिसर में ही मोहनदास जी की समाधि है। बहन कान्हीबाई के पुत्र और अपने शिष्य उदयराम को मंदिर की जिम्मेदारी सौंपकर वैशाख शुक्ल त्रयोदशी को मोहनदास जी ने जीवित समाधि ली थी। यहां वह बैलगाड़ी भी है, जिससे हनुमानजी की मूर्ति आसोटा से लाई गई थी। शेखावाटी की सुजानगढ़ में तहसील में स्थित यह मंदिर हनुमान भक्तों की आस्था का केन्द्र है। यहां दूर-दूर से श्रद्धानलु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। यहां मनोकामना की पूर्ति के लिए नारियल बांधे जाते हैं, जिनकी संख्या लाखों में बताई जाती है। (देखें सालासर मंदिर का वीडियो)
 
प्रमुख उत्सव : सालालर बालाजी का प्राकट्य दिवस श्रावण शुक्ल नवमी यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। साथ ही पितृपक्ष में मोहनदासजी का श्राद्ध दिवस त्रयोदशी को मनाया जाता है। इन दोनों ही उत्सवों में भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। हनुमान जयंती और शरद पूर्णिमा पर भी यहां भव्य पैमाने पर उत्सवों का आयोजन किया जाता है। 
 
मंदिर के संचालन का जिम्मा मोहनदास जी की बहन कान्ही बाई के वंशज संभाल रहे हैं। फिलहाल यहां शासन का कोई हस्तक्षेप नहीं है। मंदिर प्रबंधकों में से ही एक धर्मवीर शर्मा ने बताया कि हनुमान सेवा समिति मंदिर की व्यवस्था के साथ ही सामाजिक कार्य भी कर रही है। इलाके में पेयजल व्यवस्था, चिकित्सा शिविरों का आयोजन, यात्रियों के लिए आवास व्यवस्था आदि का इंतजाम समिति करती है।
 
यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कई धर्मशालाएं बनी हुई हैं, जहां रुकने की निशुल्क व्यवस्था है। आवागमन के साधन भी यहां पर्याप्त मात्रा में हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन सुजानगढ़ यहां से 24 किलोमीटर दूर है, जबकि सीकर 57 किलोमीटर है। 
 
सालासर बालाजी की स्थापना से जुड़ी संक्षिप्त कहानी... अगले पेज पर...
 
 

यूं तो सालासर बालाजी मंदिर से कई चमत्कारी प्रसंग जुड़े हुए हैं, लेकिन इसकी स्थापना की कहानी कम रोचक नहीं है। ऐसी मान्यता है कि  मोहनदासजी को हनुमान जी स्वयं दर्शन देने उनके घर आए। जब मोहनदास जी उनके निकट गए तो वे तेज कदमों से वापस लौटने लगे। मोहनदास जी भी उनके पीछे चल दिए।
कुछ दूर जाकर जंगल में हनुमान जी रुके तो मोहनदासजी ने उनके पांव पकड़ लिए और पुन: घर चलने की याचना की। हनुमानजी मोहनदास के साथ घर आए, भोजन किया और विश्राम भी किया। साथ ही मोहनदास को सखा भाव प्रदान कर अन्तर्धान हो गए। बाद में मोहनदास हनुमत भक्ति में इतने लीन हो गए कि भक्त वत्सल हनुमान को बार-बार उन्हें दर्शन देने आना पडा। इस पर मोहनदास जी ने उनसे प्रार्थना की कि मैं आपके बिना एक पल भी नहीं रह सकता।
 
इस पर हनुमान जी ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए कहा कि मैं सालासर (सालमसर) में मूर्ति रूप में तुम्हारे साथ रहूंगा। बाद में आसोटा में हल चलाते समय एक जाट परिवार को हनुमान जी की सुंदर मूर्ति खेत से निकली, जिसे बाद में सालासर में स्थापित किया गया।