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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

जुंजाला धाम एक चमत्कारिक स्थान, जानकर रह जाएंगे हैरान

जुंजाला धाम एक चमत्कारिक स्थान, जानकर रह जाएंगे हैरान | Junjala Gusainji Mharaj in Rajasthan
जुंजाला के बारे में जानकर शायद आप हैरान रह जाएंगे। राजस्थान के नागौर जिला मुख्‍यालय से 35 किमी दक्षिण में अजमेर-नागौर बस मार्ग पर ही स्थित है गुसांईजी का पावन स्‍थल जुंजाला। इस धाम के बारे में कई तरह के पौराणिक संदर्भ और किंवदंतियां प्रचलित हैं।
500 बीघा ओरण व लगभग 100 बीघा में फैले कच्‍चे सरोवर के किनारे पर गुसांईजी के इस मंदिर के गर्भगृह में शिला पर अंकित पदचिह्न ही आराधना का मुख्‍य केंद्र है। गुसांईजी को वामनदेव का अवतार माना गया है। 
 
इस स्थान पर हिन्दू और मुसलमान दोनों ही संप्रदाय के लोग माथा टेककर अपनी मन्नत मांगते हैं। लाखों की संख्या में लोग यहां इकट्ठे होते हैं। अपने शिल्‍प से लगभग 600 वर्ष पुराना लगने वाला मंदिर का शिखर काफी दूर से दिखाई देता है।
 
इस स्थान से जुड़ी है ये कथा...
 
 

कहते हैं कि यह पदचिह्न भगवान वामन का है। आपको मालूम ही होगा कि राजा बली से भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर 3 पग भूमि दान में मांग ली थी। भगवान वामन ने 2 पग में तो राजा बली का संपूर्ण राज्य ही नाप दिया था और तब उनसे पूछा कि बता- अब यह तीसरा पग कहां रखूं? बली ने कहा- प्रभु अब तो मेरा सिर ही बचा है।
तब तीसरा डग भरने के लिए भगवान वामन ने बली‍ की पीठ पर अपना पैर टिकाया, तो बली की पीठ पर वामन का दायां पद अंकित हो गया। यही वह स्‍थान है, जहां वामन ने तीसरा डग भरा था।
 
भगवान वामन ने अपने पहले दो पैर कहां धरे थे... अगले पन्ने पर...
 

कथा प्रचलित है कि जब भगवान ने वामन अवतार धारण कर पृथ्वी का नाप किया तो पहला कदम उन्होंने मक्का में रखा। वहां तक राजा बली का राज्य था। दूसरा कदम उन्होंने कुरुक्षेत्र में रखा और तीसरा पग उन्होंने ग्राम जुंजाला के राम सरोवर के पास रखा, जहां आज गुसांईजी का मंदिर है। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि समुद्र को पार कर पहला पग मक्का में, दूसरा पग उन्होंने जुंजाला में रखा था। तीसरा पग तो राजा बली के सिर पर महाबलीपुरम में रखा गया था।
जुंजाला के तीर्थ रामसरोवर में हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोग आते हैं। इसे गुसांईजी महाराज का पदचिह्न मंदिर कहते हैं, तो मुसलमान इसे 'बाबा कदम रसूल' बोलते हैं।
 
असल में किसके हैं ये पदचिह्न, जानिए अगले पन्ने पर...
 

कहा जाता है कि राजस्थान के लोकदेवता और पीरो के पीर रामापीर बाबा रामदेव तथा लो‍कदेवता गुसांईजी समकालीन थे। दोनों गुरु भाई थे। भ्रमण के दौरान किसी बात पर रामदेव का गुसांईजी से विवाद हो गया।
 
गुसांईजी ने गुस्‍से में अपना दाहिना पैर जोर से पटककर वहीं रुक जाने का निर्णय ले लिया। जमीन पर पड़ा वह पदचिह्न अमिट बन गया, तभी से आप यहीं पर रहने लगे और गुसांईजी के नाम से इसी क्षेत्र में लोकदेवता में लीन हो गए।
 
बाबा रामदेव उम्र में बड़े थे इसलिए उन्‍होंने अपने भक्‍तों को आदेश दिया कि उनके दर्शनों के बाद उनके गुरु भाई के दर्शन जरूर करें अन्‍यथा 'जात' पूरी नहीं मानी जाएगी। आज भी राजस्‍थान, गुजरात, पंजाब व मध्यप्रदेश से आने वाले यात्री बाबा रामदेवजी की जात देने के पश्‍चात मीरां की स्‍थली मेड़ता से 80 किमी दूर उत्तर में स्थित जुंजाला जरूर आते हैं।
 
बाबा रामदेवजी के परिवार वाले भी यहां अपनी 'जात' का जडूला चढ़ाने जुंजाला आया करते थे। यहां मंदिर में एक पुराना जाल का पेड़ है जिसके नीचे बाबा रामदेवजी का जडूला उतरा हुआ है। इसलिए जो लोग रामदेवरा जाते थे, उन सब यात्रियों की जुंजाला आने पर यात्रा पूरी मानी जाती है इसलिए भादवा और माघ के महीने में मेला लग जाता है।

सभी चित्र यूट्यूब से साभार