देश में सालों पुरानी वंशावली लेखन परपंरा दम तोड़ रही है
देश में समाज के हर व्यक्ति का जन्म से मृत्यु तक का संपूर्ण लेखा-जोखा रखने वाली वंशावली लेखन की अनोखी परंपरा उचित संरक्षण एवं प्रोत्साहन के अभाव में अब दम तोड़ रही है।
विश्व में मात्र भारत में हजारों सालों से चल रही इस परंपरा को आजादी के बाद भी उचित सम्मान एवं प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण लेखकों का जीवन-यापन करना ही मुश्किल हो रहा है और नई पीढ़ी वंशावली लेखन से मुंह मोड़ रही है।
अखिल भारतीय वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान, जयपुर के संस्थापक रामप्रकाश के अनुसार समाज के हर व्यक्ति एवं वंशों का हजारों साल पुराना सच्चा इतिहास संजोकर रखने की परंपरा अंग्रेज एवं मुगल शासनकाल में तो उपेक्षा की शिकार रही, लेकिन देश को आजादी मिलने के बाद भी इसे उचित सम्मान एवं प्रोत्साहन का अभाव रहा है।
उन्होंने बताया कि वंशावली लेखन के कार्य में लगे समुदायों को अलग-अलग राज्यों में अनेक नामों से जाना जाता है। इनमें मुख्य रूप से राव, बड़वा, भाट, बस्र भट्ट, बारोट, जागा, याज्ञिक, तीर्थ पुरोहित, पण्डे, रानीमंगा, हेलवा पंजीकार एवं राजवंश नाम शामिल हैं।
इनके पास लोगों के हजारों साल पुरानी वंशावली का रिकॉर्ड मौजूद है तथा कई लेखकों के पास तो 1,500 साल पुराना लेखा-जोखा मौजूद है।