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Written By WD

माइग्रेन और योग

माइग्रेन और योग -
- डॉ. बी.के. बांद्र

आधुनिक जीवन की व्यस्तता के साथ ही माइग्रेन के रोगियों की संख्या इसलिए बढ़ रही है कि पुराने रोगी ठीक नहीं होते और नई पीढ़ी के रोगी बढ़ते ही जाते हैं।

इस रोग का निवारण किसी भी पद्धति में स्थायी रूप से संभव नहीं है। अतः योग के प्रयोगों से लगभग दो सौ रोगियों के सफल उपचार के बाद यह लेखनबद्ध अनुभव अनेक रोगियों को मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।

प्रचलित तीव्र प्रभावशाली दवाइयों जैसे पेरासिटामॉल, फिनोबार्बीटोन, बल्कीजीन आदि का उपयोग रोग दबाने में होता है। इनके कुप्रभाव से रोगी को अन्य अनेक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। जैसे हाथों में कंपन, दृष्टि में कमजोरी, आत्मबल में ह्रास, नींद में कमी आदि।

माइग्रेन सामान्यतः 14-15 साल की उम्र से प्रारंभ होता है। यह महिलाओं में अधिक पाया जाता है। 35 से 40 वर्ष की आयु के बाद यह रोग प्रायः नहीं होता, परंतु किशोरावस्था में होने पर यह 45-50 की आयु तक चलता रहता है।

किसी भी चिकित्सा पद्धति में इसका स्थायी उपचार उपलब्ध नहीं है। कई चिकित्सकों द्वारा तो माइग्रेन के साथ जीवन जीने का प्रशिक्षण दिया जाता है। 2-3 महीने, 1 या 2 हफ्ते के या 2-3 दिन के अंतराल से आधे सिर का दर्द मरीज को प्रभावित करता है।

प्रमुख लक्षणों में तीव्र सिर दर्द के साथ आंख में दर्द होना, एक तरफा सिर दर्द, गर्दन में दर्द, चक्कर और उल्टी करने की इच्छा रोगी प्रकट करता है। रोगी बंद कमरे में, अंधेरे में, एकांत में पड़ा रहना पसंद करता है। भोजन की इच्छा भी समाप्त हो जाती है। टीवी देखना, संगीत सुनना, शोर आदि से उसे अरुचि होती है। धूप की तरफ देखने या धूप सिर में पड़ने से भी माइग्रेन दर्द शुरू हो जाता है।

रोगियों के अनुभव के अनुसार प्रवास से माइग्रेन होता है, उपवास करने से, रात्रि जागरण से, समय पर भोजन न करने से, अधिक बोलने से, भीड़ और शोर वाली जगह पर थोड़ी देर बैठने से, किसी बात को लेकर तनाव होने आदि से माइग्रेन होता है।

इस बात का जब शोध किया गया, तब जिन व्यक्तियों को यह रोग है, उनके मस्तिष्क के एक भाग में रक्त का प्रवाह कम होने के आसार एम.आर.आई. एवं ई.ई.जी. द्वारा पाए गए। इसके साथ नेत्रदर्शी (ऑफ्थलमोस्कोप) से भी पता चलता है कि रक्त का प्रवाह एक आंख की तरफ कम हो गया और दूसरी आंख की ओर सामान्य है।

ऑफ्थलमोस्कोप से रक्तवाहिनी की ऐंठन आंखों के पीछे रेटिना में देखी जा सकती है। इसका परिणाम रोगी की आंख पर पड़ता है। आंख सिकुड़ने लगती है और कुछ समय बाद दर्द संपूर्ण सिर में फैल जाता है।

इस प्रकार गर्दन से सिर की तरफ प्रवाहित होने वाले रक्त प्रवाह की जांच नई तकनीक (रेडियो एक्टिव गैस झेनॉन को गर्दन की मुख्य रक्त वाहिनियों में इंजेक्शन द्वारा प्रविष्ट कराने) से करने पर यह जानकारी मिली कि रक्त प्रवाह गर्दन से मस्तिष्क के एक भाग में कम हो गया है।

यह देखा गया है कि रक्त प्रवाह मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में और भी कम हो जाता है, जिनसे संबंधित लक्षण रोगी में प्रकट होते हैं। विशेषकर उन मस्तिष्क के बिंदुओं पर, जो देखने, छूने, सूंघने या सुनने से संबंधित होते हैं।

माइग्रेन और योगासन

रात्रि को बिना तकिए के शवासन में सोएं। सुबह-शाम योगाभ्यास में ब्रह्म मुद्रा, कंध संचालन, मार्जरासन, शशकासन के पश्चात प्राणायाम करें। इसमें पीठ के बल लेटकर पैर मिलाकर रखें। श्वास धीरे-धीरे अंदर भरें, तब तक दोनों हाथ बिना मोड़े सिर की तरफ जमीन पर ले जाकर रखें और श्वास बाहर निकालते वक्त धीरे-धीरे दोनों हाथ बिना कोहनियों के मोड़ें व वापस यथास्थिति में रखें। ऐसा 10 बार करें। अंत में कुछ देर शवासन करके नाड़िशोधन प्राणायाम 10-10 बार एक-एक स्वर में करें।

इस तरीके से माइग्रेन का दर्द रोगियों के प्रथम दिवसीय अभ्यास से ही कम होने लगा था। कुछ रोगियों ने जिन्हें 2-3 दिन के अंतराल से माइग्रेन का दर्द उठता था, भी दर्द में कमी का अनुभव किया। दो सप्ताह के योगाभ्यास से उन रोगियों को पूर्णतः आराम अनुभव हुआ, जिनको एक माह या दो सप्ताह के अंतराल से माइग्रेन का दर्द उठता था।

कुछ रोगी 25 से 30 वर्षों के इस रोग के शिकार थे, उन्होंने 3-4 माह के उपरांत योगाभ्यास से पूर्णरूपेण आराम का अनुभव किया। सभी दवाइयों का प्रयोग योगाभ्यास के प्रारंभ से ही बंद कर दिया गया था। योगाभ्यास के अलावा अतिरिक्त लाभ के लिए रोगियों को धूप में खुले सिर से घूमने की अनुमति दी गई थी, परंतु सिर दर्द नहीं उठा।