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Written By ND

चमत्कारी बीसा यंत्र

चमत्कारी बीसा यंत्र -
- भगवान पुरोहित

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तंत्र शास्त्र में चमत्कारी बीसा यंत्र का उल्लेख मिलता है। इस यंत्र के कई स्वरूप हैं, जो धन, समृद्धि, वैभव प्राप्ति के लिए, तनाव, कष्ट, विपदाओं से बचने के लिए और रोग-व्याधियों से मुक्ति के लिए लाभदायक रहते हैं। इन यंत्रों को शुभ मुहूर्त में शास्त्रोक्त विधि से तैयार करके और अभिमंत्रित द्वारा सिद्ध करके यदि पूजा-अर्चना की जाए तो मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

बीसा यंत्र को रवि-पुष्य, रवि-हस्त, गुरु-पुष्य, नवरात्रि, धनतेरस, दीपावली या सूर्य-चंद्रग्रहण में लाभ के चौघड़िए में शास्त्रोक्त विधि से तैयार किया जाना चाहिए। शुभ मुहूर्त में अनार की डाली तोड़कर पत्थर पर घिसकर कलम तैयार करनी चाहिए। इस यंत्र को भोजपत्र पर, भोजपत्र की अनुपलब्धि में कोरे कागज पर अष्टगंध स्याही (अर्थात- केसर, कस्तूरी, गोरोचन, लाल चंदन, सफेद चंदन, कपूर, अगर-तगर और कुमकुम मिलाकर बनाई स्याही), यदि यह उपलब्ध न हो तो केसर की स्याही से अंकित करना चाहिए।

इस यंत्र का विधिवत पूजन कर मंत्रोच्चारण के साथ ध्यान करने पर कार्य सिद्धि तथा विपत्ति निवारण होता है। बीसा यंत्रों की आकृतियाँ निम्नानुसार दी जा रही हैं- 1. धन संपत्ति, व्यापार में सफलता एवं निरंतर उन्नति करने के लिए बीसा यंत्र :
बीसा यंत्र को रवि-पुष्य, रवि-हस्त, गुरु-पुष्य, नवरात्रि, धनतेरस, दीपावली या सूर्य-चंद्रग्रहण में लाभ के चौघड़िए में शास्त्रोक्त विधि से तैयार किया जाना चाहिए। शुभ मुहूर्त में अनार की डाली तोड़कर पत्थर पर घिसकर कलम तैयार करनी चाहिए।


दीपावली के पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र में, धनतेरस या दीपावली के दिन लाभ के चौघड़िए में घर में, पूजागृह में, मंदिर, दुकान या व्यापार के स्थान पर ईशान कोण की पश्चिम मुखी दीवार पर शुद्ध घी-सिंदूर से इन्हें अंकित करना चाहिए। इससे सुख-समृद्धि एवं वैभव बना रहता है। शुभ मुहूर्त में 'ओम्‌ हीं हीं श्रीं श्रीं क्रीं क्रीं स्थिरां ओम्‌' का 11 बार जाप करें, साथ में लक्ष्मीजी एवं गणेशजी के अष्टकम्‌ स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसके साथ लक्ष्मीजी-गणेशजी की पूजा करें तो उत्तम रहेगा।

समस्या, तनाव, विपत्ति दूर करने के लिए तथा शत्रुनाश हेतु निम्नांकित बीसा यंत्रों को विधिवत तैयार करके पूजा-आराधना करनी चाहिए। साथ ही दुर्गा देवी के दुर्गा स्तोत्र का वाचन शीघ्र लाभ करता है।

कहावत है-
'वो करे यंत्र बीसा,
जो कर न सके जगदीशा'