पितृयज्ञ यानी श्राद्धपक्ष ज्योतिष की नजर में
शास्त्रों में पितृ को देवतुल्य स्शान दिया गया है। प्रत्येक बड़े धार्मिक अनुष्ठान में पितृपूजन प्रायश्चित नांदी श्राद्ध पहले किया जाता है। उसके बाद ही आगे का कर्म होता है। पितृपक्ष 16 दिवसीय होता है। यह भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन (क्वार) कृष्ण पक्ष अमावस्या तक रहता है। ऐसी शास्त्रोंक्त धारणा है कि इन सोलह दिनों में पितृ अपने परिवार के बीच रहते हैं एवं उस परिवार द्वारा दिया गया भोग ग्रहण करते हैं और उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं।त्रेतायुग में भी भगवान श्रीराम द्वारा पितृपूजन का प्रमाण मिलता है। माता सीता और भगवान श्रीराम द्वारा गयाजी श्राद्ध पिता दशरथ के लिए किया गया था। इसका प्रमाण आज भी शिला यानी दशरथशिला के नाम से गयाजी में विद्यमान है।प्रत्येक व्यक्ति को पितृपूजन करना चाहिए। जिस परिवार को पितृदोष होता है उसके लिए इस पक्ष में किया गया नारायण बलि पूजन बहुत महत्वपूर्ण होता है। पितृपूजन में दिवंगत पिता, पितामह, प्रपितामह, माता, मातामह, प्रमातामह, मातामह (नाना), प्रमातामह, वृद्धमातामह, मातामही (नानी) एवं इससे जुड़े पूरे परिवार से संबंधित दिवंगत कोई भी सदस्य यथा बहन, काका, मामा, बुआ, मौसी, ससुर आदि का भी महत्व रहता है। इनके पूजन के अलावा दिवंगत गुरु तथा सखा तक के पूजन का पूजन विधान है।मनोकामना भी पूर्ण होती है : पितृदोष वाला परिवार 15 दिन पितरों का निम्न मंत्र से पितृ आवाहन करके यर्जुवेद के नौ मंत्रों को प्रतिदिन पढ़े तो उसके प्रत्येक कार्य बिना विघ्न के संपन्न होंगे तथा मनोकामना पूर्ण होगी। |
पितृपक्ष 16 दिवसीय होता है। यह भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन (क्वार) कृष्ण पक्ष अमावस्या तक रहता है। ऐसी शास्त्रोंक्त धारणा है कि इन सोलह दिनों में पितृ अपने परिवार के बीच रहते हैं एवं उस परिवार द्वारा दिया गया भोग ग्रहण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं |
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ॐ उशन्तस्त्वा निधीमह्त्रुशन्त: समिधीमहि।उशन्नुशत आ वह पितृन हविषे अन्तवे।।या यन्तु न: पितर: सोम्यासोऽग्निएवाता: पथिभिदैवयाने:।अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तोऽधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्।।आवाहन के बाद पितृतीर्थ से जल गिराएँ या ब्राह्मण द्वारा पाठ कराएँ पितृ अवश्य प्रसन्न होंगे।
ॐ उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमा: पितर: सोम्यास:। असुंय ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु।।अंगिरसो न: पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगव: सोम्यास:।तेषां वयँसुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम।।आ यन्तु न: पितर: सोम्यासोऽग्निष्वाता: पथिभिर्देवयानै:।अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तोऽधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्।।उर्ज वहन्तीरमृतं घृतं पय: कीलालं परिस्त्रुतम्। स्वधा स्व तर्पयत में पितृन्।। (
यजु 2/34)पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम:। पितामहेभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधानम:। प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधा: नम:। - अक्षन्तिपतरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतृपन्त पितर: पितर: शुन्ध्वम्। ये चेह पितरो ये च नेह यॉश्च विधयाँडचन प्रत्रिध’।त्वं वेत्थयति ते जातवेद: स्वधाभिर्यज्ञ सुकृतं जुषस्व। मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धव:। माध्वीर्न: संतोषधी।मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्वाथिवि ँ्रज:। मधु धौरस्तु न पिता।मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ अस्तु सूर्य:। माध्वीगॉवो भवन्तुन: ॐ मधु। मधु। मधु। तृप्यध्वम्। तृप्यधवम्। तृप्यधवम्।इस प्रकार प्रार्थना करने से पितृ दोष का निवारण कर सकते हैं, पितृ तर्पण से यदि आपके पितृ-नरक में हो, यातना भुगत रहे हो, उनका भी उद्धार हो जाता है, वह आत्मा आपके द्वारा दिया गया तर्पण ग्रहण कर (बैकुण्ठ) को प्राप्त हो जाता है।नरकेषु समस्तेषु यातनासु च ये स्थिता:।तेषामाप्यायनायैतद्वीयते सलिलं मया।।येऽबाधवा बान्धवाश्च येऽयजन्मनि बान्धवा:।ते तृप्तिमखिला यान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवाच्छति।।पितृ ही धन का भंडार भरते हैं। उनके आशीर्वाद से गौत्र (वंश) की वृद्धि होती है। उनके आशीर्वाद से ही हमारे द्वार से कोई याचक खाली नहीं जाता है। पितरों से ही हमारे निर्बाध कर्म होते हैं।तत: कृताञ्जलि: प्रार्थयेत्।। ॐ गोत्रन्नो वर्ध्दतां दातारो नोऽभिवर्ध्दन्तां वेदा: सन्ततिरेव च।। श्रद्धा च नोमा व्यगमद्बहु देयं नोऽस्तु।। अन्नं च नो बहु भवेदतिथीश्च लभेमहि।। याचितारश्च न: सन्तु मा च याचिष्म कश्चन। इति शुभम्।