अघोर पंथियों के 10 तांत्रिक पीठ
अघोर पंथ को शैव और शाक्त संप्रदाय की एक तांत्रिक शाखा माना गया है। अघोर पंथ की उत्पत्ति काल के बारे में कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। वाराणसी या काशी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं की इस पंथ की स्थापना की थी। अघोर पंथ का प्रारंभिक गढ़ शिव की नगरी काशी को माना गया है, लेकिन आगे चलकर यह शक्तिपीठों में साधना करने लगे। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख अघोर तीर्थ के बारे में...सबसे कठिन साधना का स्थल, अगले पन्ने पर...
तारापीठ : तारापीठ को तांत्रिकों, मांत्रिकों, शाक्तों, शैवों, कापालिकों, औघड़ों आदि सबमें समान रूप से प्रमुख और पूजनीय माना गया है। इस स्थान पर सती पार्वती की आंखें भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कटकर गिरी थीं इसलिए यह शक्तिपीठ बन गया।यह स्थल तारा साधन के लिए जगत प्रसिद्ध रहा है। यहां सती के रूप में तारा मां का मंदिर है और पार्श्व में महाश्मशान। सबसे पहले इस मंदिर की स्थापना महर्षि वशिष्ठ ने की थी। पुरातन काल में उन्होंने यहां कठोर साधना की थी।मान्यता है कि वशिष्ठजी मां तारा को प्रसन्न नहीं कर पाए थे। कारण कि चीनाचार को छोड़कर अन्य किसी साधना विधि से भगवती तारा प्रसन्न नहीं होतीं। माना जाता है कि यह साधना भगवान बुद्ध जानते थे। बौधों में वज्रयानी साधक इस विद्या के जानकार बतलाए जाते हैं। अघोर साधुओं को भी इस विद्या की सटीक जानकारी है।प्रमुख अघोराचार्य में बामा चट्टोपाध्याय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन्हें बामाखेपा कहा जाता था।शताब्दियों से साधकों, सिद्धों में प्रसिद्ध यह स्थल पश्चिम बंगाल के बीरभूम अंचल में रामपुर हाट रेलवे स्टेशन के पास द्वारका नदी के किनारे स्थित है। कोलकाता से तारापीठ की दूरी लगभग 265 किलोमीटर है। यह स्थल रेल एवं सड़क मार्ग दोनों से जुड़ा है। दूसरा प्रमुख तीर्थ 'नानी का हज', अगले पेज पर