गुरु गोविंद सिंह : आध्यात्मिक गुरु
गुरु गोविंद सिंह ने पढ़ाया समानता का पाठ
गुरु गोविंद सिंह जी वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने मानवता को शांति, प्रेम, एकता, समानता एवं समृद्धि का रास्ता दिखाया। वे केवल आदर्शवादी नहीं थे, अपितु व्यावहारिक एवं यथार्थवादी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को धर्म की पुरानी और अनुदार परंपराओं से नहीं बांधा बल्कि उन्हें नए रास्ते बताते हुए आध्यत्मिकता के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण दिखाया। संन्यासी जीवन के संबंध में गुरु गोविंद सिंह ने कहा- एक सिख के लिए संसार से विरक्त होना आवश्यक नहीं है तथा अनुरक्ति भी जरूरी नहीं है किंतु व्यावहारिक सिद्धांत पर सदा कर्म करते रहना परम आवश्यक है।
गोविंद सिंह ने कभी भी जमीन, धन-संपदा, राजसत्ता-प्राप्ति या यश-प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं। उनकी लड़ाई होती थी अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार और दमन के खिलाफ। युद्ध के बारे में वे कहते थे कि जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं, उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। जो नैतिक एवं सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्मयोद्धा होता है तथा ईश्वर उसे विजयी बनाता है। गुरुजी की लड़ाई सिद्धांतों एवं आदर्शों की लड़ाई थी और इन आदर्शों के धर्मयुद्ध में जूझ मरने एवं लक्ष्य-प्राप्ति हेतु वे ईश्वर से वर मांगते हैं- 'देहि शिवा वर मोहि, इहैं, शुभ करमन ते कबहू न टरौं।'