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Last Updated : शनिवार, 10 सितम्बर 2016 (17:06 IST)

पुराणों का क्रम और उसके क्रम की महत्ता

पुराणों का क्रम और उसके क्रम की महत्ता - order of the Puranas, Hindu Puranas, the Vedas
वेद 4 हैं- यथाक्रम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। पुराण 18 हैं- यथाक्रम ब्रह्म, पद्म, वैष्णव, वायव्य (शैव), भागवत, नारद, मार्कण्डेय, आग्नेय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लैंग (लिंग), वराह, स्कंद, वामन, कौर्म (कूर्म), मतस्य, गरूड़, ब्रह्मांड। उपनिषद वेदों का ही अंग है। गीता उपनिषद का ही संक्षिप्त वाचन है।
पुराणों का मुख्य विषय है सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और विलय को समझना, प्रारंभिक मानवों के इतिहास को प्रकट करना और वेदों के ज्ञान को एक नए रूप में प्रस्तुत करना। पुराणों के उपरोक्त क्रम को देखेंगे तो यह स्वत: ही समझ में आएगा। सबसे पहला पुराण है- ब्रह्म पुराण, ब्रह्म अर्थात परमेश्वर के बारे में। दूसरा पुराण है- पद्म पुराण अर्थात ब्रह्मा जहां से प्रकट हुए। पद्म के उद्भव स्‍थान अर्थात जहां से पद्मकमल की उत्पत्ति हुई उस स्थान को विष्णु स्थान कहते हैं यह तीसरा विष्णु पुराण है। 
 
उस विष्णु के आधार अर्थात शयन का वायव्य पुराण में निरूपण किया गया है। यह वायु पुराण ही शैव पुराण के नाम से विख्यात हुआ। इस शेष के आधार सारस्वान् अर्थात क्षीरसागर को ही 5वां पुराण भागवत माना गया है अतएव उसे 'सारस्वत कल्प' कहते हैं। अब नारद पुराण में पहले 6 पुराणों में यह सृष्टि का पुराणोत्त चित्र एक-एक करके समझा दिया गया। श्रद्धावान के लिए यहां तक का वर्णन संतोषजनक हो जाता है।
 
लेकिन जो तर्क से समझते हैं और विष्णु की नाभि से कमल और कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति जिनके लिए एक कल्पना है उनके लिए पद्म पुराण है। इस पुराण में यह स्पष्ट रूप में समझाया गया है कि इस पद्म को हम धरती मानते हैं या धरती को ही पद्म मानते हैं।
 
पद्म पुराण के सृष्टि खंड के अध्याय 40 में इसका उल्लेख मिलता है। जब यह समझ में आ गया कि यह धरती पद्म अर्थात कमल के समान है तो यह समझना भी आसान होगा कि पृथ्वी पर व्याप्त यह आग्नेय ही चतुर्मुख ब्रह्मा के समान है जिनकी नाभि से यह कमल निकला है वह विष्णु नारायण स्वयं आग्नेय सूर्यनारायण ही है। 
 
वैज्ञानिक भाषा में नाभि केंद्र को कहते हैं। सूर्य मंडल के केंद्र से ही यह पृथ्वी प्रादुर्भूत होकर उस मंडल से पृथक हो गई। सभी ग्रह और तारों के जो ये मंडल बनते हैं वे सभी गोलाकार अर्थात पद्म के समान हैं। इस तरह भू: भुव: स्व: का निर्माण हुआ। वायु के कई प्रकार हैं। अंतरिक्ष की वायु उपद्रावक भी है लेकिन दूसरे अंतरिक्ष मह:लोक की वायु विशुद्ध कल्याणकारक है इसीलिए उसे 'शिव' अर्थात 'शुभ' कहा गया है। प्रकृति का मूल तत्व क्या है यह सप्तम पुराण मार्कण्डेय में प्र‍दर्शित हुआ है। कई आग्नेय प्राण को मूल तत्व मानते हैं। उनके सिद्धांत नवम पुराण भविष्य पुराण में बताए गए हैं।
 
उपरोक्त मत बताकर दशम पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण में वेदव्यासजी ने अपना मत बता दिया कि यह सभी ब्रह्मा का विवर्त है अर्थात मूल तत्व ब्रह्म ही है। उसके बाद उस ब्रह्म का अवतार होता है। उसमें लैं‍ग वा लिंग और स्कंद ये भगवान शिव के अवतार हैं जबकि वराह, वामन, कूर्म और मत्स्य ये भगवान विष्णु के अवतार हैं। 
 
इस प्रकार संपूर्ण सृष्टि और उसके संचालक का बखान करने के बाद इस सृष्टि चक्र में जीव की अपने कर्म के अनुसार क्या-क्या गति होती है इसका जिक्र 17वें पुराण 'गरूड़ पुराण' में किया गया। अंत में इस संपूर्ण ब्रह्मांड का आयतन किया गया है। इसकी गति का आयतन किया गया है और इसकी सीमा कितनी है यह 18वें पुराण 'ब्रह्मपुराण' में निरूपण किया गया है।
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