कवि की दृष्टि में वसंत
रंगता कौन वसंत?
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दिनेश शुक्ल कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।चूड़ी भरी कलाइयां, खनके बाजू-बंद,फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छन्द।फीके सारे पड़ गए, पिचकारी के रंग,अंग-अंग फागुन रचा, सांसें हुई मृदंग।धूप हंसी, बदली हंसी, हंसी पलाशी शाम,पहन मूंगिया कंठियां, टेसू हंसा ललाम।कभी इत्र रूमाल दे, कभी फूल दे हाथ,फागुन बरजोरी करे, करे चिरौरी साथ।नखरीली सरसों हंसी, सुन अलसी की बात,बूढ़ा पीपल खांसता, आधी-आधी रात।बरसाने की गूजरी, नंद-गांव के ग्वाल,दोनों के मन बो गया, फागुन कई सवाल।इधर कशमकश प्रेम की, उधर प्रीत मगरूर,जो भीगे वह जानता, फागुन के दस्तूर।पृथ्वी, मौसम, वनस्पति, भौंरे, तितली, धूप,सब पर जादू कर गई, ये फागुन की धूल।