रमज़ान : एक प्रशिक्षण शिविर
प्रस्तुति : इब्राहीम कुरैशी
Ramadan Celebrationsईश्वर की भक्ति में लीन होकर मनुष्य उसके प्रति अपने समर्पण को व्यक्त करने के लिए सदैव से तप और उपवास करता आ रहा है। यही कारण है कि समस्त धर्मों में भक्ति का यह रूप पाया जाता है कि मनुष्य कुछ समय के लिए खान-पान से स्वयं को अलग करके अपने आपको उसकी उपासना में लीन कर देता है। ईसाई हो या यहूदी, हिन्दू हो या पारसी, समस्त धर्मों में यह प्रथा पाई जाती है।ईश्वर ने जब इस्लाम को समस्त मानव जाति के लिए मार्गदर्शन बनाकर अपने अंतिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल) के माध्यम से कुरआन के रूप में भेजा, तो उसने मुसलमानों को इस सत्य से अवगत भी कराया कि तुमसे पूर्व के लोगों पर भी रोजे़ अनिवार्य किए गए थे।'
ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, तुम्हारे लिए रोजे़ अनिवार्य कर दिए, जिस तरह तुमसे पहले नबियों के अनुयायियों के लिए अनिवार्य किए गए थे। इससे उम्मीद है कि तुममें तक़वा पैदा होगा।' (सूरह बक़रा 183)अनिवार्यता का उद्देश्य :- रोज़ों के अनिवार्य किए जाने का उद्देश्य 'तकवा' की प्रवृत्ति को पैदा करना है। तक़वा से तात्पर्य है बुराइयों से बचना। जो लोग एकेश्वरवाद को स्वीकार कर स्वयं को उसी एक शक्तिशाली ईश्वर के समक्ष समर्पित करना चाहते हैं, उनसे आशा की जाती है कि वे स्वयं भी बुराइयों से बचें और समाज में फैली हुई बुराइयों को मिटाने का भरसक प्रयत्न करें, चाहे समाज उसका कितना ही विरोध करें।
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रमज़ान एक प्रशिक्षण शिविर :- लोगों के विचार एवं व्यवहार में यह परिवर्तन इतना सरल न था, अत: ईश्वर ने यह आवश्यक समझा कि लोगों के अंदर इस प्रवृत्ति को उत्पन्न करने के लिए उन्हें प्रतिवर्ष पूरे एक माह का प्रशिक्षण दिया जाए। उसने अपने सर्वव्यापी ज्ञान के आधार पर प्रशिक्षण के लिए उस माह को चुना, जिसमें क़ुरआन का अवतरण हुआ था और वह था रमज़ान का महीना।'
रमज़ान वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया जो इंसानों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन है और ऐसी स्पष्ट शिक्षाओं पर आधारित है जो सीधा मार्ग दिखाने वाली और सत्य और असत्य का अंतर खोलकर रख देने वाली है। अत: अब से जो व्यक्ति इस महीने को पाए उसके लिए अनिवार्य है कि इस पूरे महीने के रोजे रखे...।'' (सूरह बक़रा : 185)
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