श्रीराम के आदर्श जीवन की गाथा
श्रीराम की लीलाएं व्रतोत्सव से परिपूर्ण
- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी
गोस्वामी तुलसीदास सगुण भक्ति के आचार्य हैं। उनका जीवन सदाचार, व्रत, तप और उपासनामय था। श्रीराम प्रेमरूपी व्रत के वे साक्षात मूर्तिमान ही थे। प्रभु श्रीराम के चरणों में अनन्य निष्ठा ही उनका जीवन व्रत था। गोस्वामी अपने जीवन व्रत को भरत के वचनों द्वारा इस प्रकार व्यक्त करते हैं-
'
अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहऊं निरबान।
जनम-जनम रति राम पद यह बरदानु न आन।।' भक्त के लिए भगवान के चरणों का आश्रय ही सबसे बड़ा आश्रय होता है। वह पूर्ण निष्ठा से प्रभु चरण के आश्रय का ही व्रत किए रहता है। गोस्वामी की इसी व्रतचर्या का दर्शन उनके श्रीरामचरितमानस आदि ग्रंथों में अक्षरस: दिखाई देता है। उनके प्राणनाथ ठाकुरजी का अवतरण तो विभिन्न व्रतों की मर्यादा की प्रतिष्ठा के लिए ही हुआ है।
भगवान श्रीराम की प्राय: सभी लीलाएं व्रतोत्सव से परिपूर्ण हैं। रामचरितमानस में परात्पर ब्रह्म भगवान नारायण के श्रीरामावतार की विस्तृत कथा है। यह अवतार भी महाराज स्वायम्भुव मनु और महारानी शतरूपा के तपोव्रत और अनन्यता से भगवान के रीझने पर ही हुआ। दोनों शाकाहार, फलाहार और कंदाहार करते हुए सच्चिदानंद ब्रह्म का स्मरण करते रहे। पुन: उन्होंने मूल फल को त्यागकर 6 हजार वर्षों तक जलाहार व्रत एवं 7 हजार वर्षों तक केवल वायु लेकर पुन: निराहार व्रतपूर्वक एक पैर पर खड़े रहकर कठिन तप का अनुष्ठान किया। भगवत्कृपा से उनका तपोव्रत पूर्ण हुआ और महाराज स्वायम्भुव मनु तथा महारानी शतरूपाजी का व्रत श्रीरामावतार हेतु बताना।