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Written By WD

क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा

Christmas 2013 | क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा
Christmas 2013

क्रिसमस ट्री की कथा है कि जब महापुरुष ईसा का जन्म हुआ तो उनके माता-पिता को बधाई देने आए देवताओं ने एक सदाबहार फर को सितारों से सजाया। कहा जाता है कि उसी दिन से हर साल सदाबहार फर के पेड़ को 'क्रिसमस ट्री' प्रतीक के रूप में सजाया जाता है।

इसे सजाने की परंपरा जर्मनी में दसवीं शताब्दी के बीच शुरू हुई और इसकी शुरुआत करने वाला पहला व्यक्ति बोनिफेंस टुयो नामक एक अंगरेज धर्मप्रचारक था।

इसके बाद अमेरिका के एक आठ साल के बीमार बच्चे ने क्रिसमस पेड़ को अपने पिता से सजवाया तब से क्रिसमस ट्री को रंग-बिरंगी बत्तियों, फूलों और कांच के टुकड़ों से सजाया जाने लगा।

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इंग्लैंड में 1841 में राजकुमार पिंटो एलबर्ट ने विंजर कासल में क्रिसमस ट्री को सजावाया था। उसने पेड़ के ऊपर एक देवता की दोनों भुजाएं फैलाए हुए मूर्ति भी लगवाई, जिसे काफी सराहा गया। क्रिसमस ट्री पर प्रतिमा लगाने की शुरुआत तभी से हुई।

पिंटो एलबर्ट के बाद क्रिसमस ट्री को घर-घर पहुंचाने में मार्टिन लूथर का भी काफी हाथ रहा। क्रिसमस के दिन लूथर ने अपने घर वापस आते हुए आसमान को गौर से देखा तो पाया कि वृक्षों के ऊपर टिमटिमाते हुए तारे बड़े मनमोहक लग रहे हैं।

मार्टिन लूथर को तारों का वह दृश्य ऐसा भाया कि उस दृश्य को साकार करने के लिए वह पेड़ की डाल तोड़ कर घर ले आया।

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घर ले जाकर उसने उस डाल को रंगबिरंगी पन्नियों, कांच एवं अन्य धातु के टुकड़ों, मोमबत्तियों आदि से खूब सजा कर घर के सदस्यों से तारों और वृक्षों के लुभावने प्राकृतिक दृश्य का वर्णन किया। वह सजा हुआ वृक्ष घर सदस्यों को इतना पसंद आया कि घर में हर क्रिसमस पर वृक्ष सजाने की परंपरा चल पड़ी।

1920 की बात है, सान फ्रांसिस्को शहर में पांच साल की बालिका की हालत गंभीर थी। उसके पिता सैंडी ने कुछ बड़े-बड़े मिट्टी के हंडों पर चित्रकारी की और उन्हें घर से सड़क की दूसरी तरफ रस्सी पर लटका कर दिखाया। वे इतने सुंदर लगे कि काफी लोग उन्हें देखने को इकट्ठे हो गए। सौभाग्य की बात थी कि नए साल तक बालिका भी ठीक हो गई। इस घटना से सैंडी बड़ा चकित हुआ।

अब वह लोगों को क्रिसमस वृक्ष सजाने के अलावा लगाने के लिए भी कहता। उसने कैलिफोर्निया में एक संस्था बनाई, जो पेड़ लगाने के उत्सुक लोगों को रेडवुड वृक्ष के पौधे मुफ्त भेजती थी। सैंडी ने 20 साल तक रेडियो, समाचार-पत्रों आदि में लेख और व्याख्यान देकर लोगों को पेड़ लगाने के लिए उत्साहित किया