बुद्ध के संबंध में ओशो के विचार
गौतम बुद्ध ऐसे हैं जैसे हिमाच्छादित हिमालय। पर्वत तो और भी हैं। हिमाच्छादित पर्वत और भी हैं, पर हिमालय अतुलनीय है। उसकी कोई उपमा नहीं है। हिमालय बस हिमालय जैसा है। गौतम बुद्ध बस गौतम बुद्ध जैसे हैं। पूरी मनुष्य जाति के इतिहास में वैसा महिमापूर्ण नाम दूसरा नहीं।
गौतम बुद्ध ने जितने हृदयों की वीणा को बजाया है उतना किसी और ने नहीं। गौतम बुद्ध के माध्यम से जितने लोग जागे और जितने लोग परम भगवत्ता को उपलब्ध हुए उतने किसी और के माध्यम से नहीं। गौतम बुद्ध की वाणी अनूठी है और विशेषकर उन्हें, जो सोच-विचार, चिंतन-मनन, विमर्ष के आदी हैं। हृदय से भरे हुए लोग सुगमता से परमात्मा की तरफ चले जाते हैं, लेकिन हृदय से भरे हुए लोग कहां हैं? और हृदय से भरने का कोई उपाय भी तो नहीं है। हो तो हो न हो तो न हो। ऐसे आकस्मिक नैसर्गिक बात पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।
बुद्ध ने उनको चेताया जिनको चेताना सर्वाधिक कठिन है- विचार से भरे लोग, बुद्धिवादी, चिंतन, मननशील। प्रेम और भाव से भरे लोग तो परमात्मा की तरफ सरलता से झुक जाते है, उन्हें झुकना नहीं पड़ता। उनसे कोई न भी कहे, तो भी वे पहुंच जाते हैं, उन्हें पहुंचाना नहीं पड़ता, लेकिन वे तो बहुत थोड़े हैं और उनकी संख्या रोज थोड़ी होती गई है। अंगुलियों पर गिने जा सकें, ऐसे लोग हैं। मनुष्य का विकास मस्तिष्क की तरफ हुआ है। मनुष्य मस्तिष्क से भरा है। इसलिए जहां जिससे हार जाए, जहां कृष्ण की पकड़ न बैठे, वहां भी बुद्ध नहीं हारते।वहां भी बुद्ध प्राणों के अंतरतम में पहुंच जाते है। बुद्ध का धर्म बुद्धि का धर्म कहा गया है। बुद्धि या उसका आदि तो है, अंत नहीं। शुरुआत बुद्धि से है, प्रारंभ बुद्धि से है, क्योंकि मनुष्य वहां खड़ा है, लेकिन अंत, अंत उसका बुद्धि में नहीं। अंत तो परम अतिक्रमण है, जहां सब विचार खो जाते हैं। सब बुद्धिमत्ता विसर्जित हो जाती है। जहां केवल साक्षी, मात्र साक्षी शेष रह जाता है। लेकिन बुद्ध का प्रभाव उन लोगों में तत्क्षण अनुभव होता है, जो सोच-विचार में कुशल है। बुद्ध के साथ मनुष्य जाति का एक नया अध्याय शुरू हुआ। पच्चीस सौ वर्ष पहले बुद्ध ने वह कहा जो आज भी सार्थक मालूम पड़ेगा और जो आने वाली सदियों तक सार्थक रहेगा।