ईस्टर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
क्यों नाम पड़ा ईस्टर...
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ईसाई धर्म की कुछ मान्यताओं के अनुसार ईस्टर शब्द की उत्पत्ति ईस्त्र शब्द से हुई है। -
धर्म विशेषज्ञों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुराने समय में किश्चियन चर्च ईस्टर रविवार को ही पवित्र दिन के रूप में मानते थे। किंतु चौथी सदी से गुड फ्रायडे सहित ईस्टर के पूर्व आने वाले प्रत्येक दिन को पवित्र घोषित किया गया।
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ईस्टर रविवार के पहले सभी गिरजाघरों में रात्रि जागरण तथा अन्य धार्मिक परंपराएं पूरी की जाती है।
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असंख्य मोमबत्तियां जलाकर प्रभु यीशु में अपने विश्वास प्रकट करते हैं। यही कारण है कि ईस्टर पर सजी हुई मोमबत्तियां अपने घरों में जलाना तथा मित्रों में इन्हें बांटना एक प्रचलित परंपरा है। -
ईस्टर खुशी का दिन होता है।
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इस पवित्र रविवार को खजूर इतवार भी कहा जाता है। ईस्टर का पर्व नव जीवन के बदलाव के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
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ईस्टर की आराधना उषाकाल में महिलाओं द्वारा की जाती है क्योंकि इसी वक्त यीशु का पुनरुत्थान हुआ था और उन्हें सबसे पहले मरियम मगदलीनी नामक महिला ने देख अन्य महिलाओं को इस बारे में बताया था। -
इसे सनराइज सर्विस कहते हैं।
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ईस्टर के दिन उषाकाल में होने वाली प्रार्थना के बाद दोपहर 12 बजे से पूर्व में भी आराधना होती है। इसमें पुनरुत्थान प्रवचन व प्रार्थना होती है।
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ईसाई धर्म में गुड फ्रायडे से तीसरा दिन रविवार अधिक महत्व रखता है।