मंगलकारी भी होता है मंगल, पढ़ें यह आलेख
मंगल से डरें नहीं, यह श्रेष्ठ फल भी देता है...
मंगल जब किसी जातक की जन्म कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भावों में विराजमान हो, तो उसकी कुंडली मांगलिक बन जाती है। मंगल रक्त और हड्डियों का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल की भविष्यवाणी करने से पहले जान लें कि जातक की कुंडली में बैठा मंगल उसकी दिव्यता, दाम्पत्य जीवन में सौहार्द्रता, पत्नी या प्रेमिका का सौन्दर्य, पुत्र-पुत्री का तेज, भाग्येश मंगल का ओज, लाभेश मंगल कहीं जातक को कुबेरों की पंक्ति में खड़ा करने को आतुर तो नहीं है? चतुर्थ भवन में मंगल भूमि, भवन, वाहन तथा मातृ सुख देने का गारंटी कार्ड भी है। पंचमस्थ मंगल पत्नी भवन में बैठकर भार्या सुख के साथ उत्तम संतान सुख, अष्टमस्थ मंगल दीर्घायु और द्वादश मंगल मोक्षगामी बना सकता है। जातक कवि या शायर या साहित्यकार बन जाए तो अनहोनी न समझें। विश्व के अनेक विख्यात खिलाड़ी भी मांगलिक कुंडली के स्वामी रहे हैं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महाकवि निराला, मुंशी प्रेमचंद ये सभी मांगलिक रहे।
मंगल दोष का निवारणजिस जातक की कुंडली में मांगलिक दोष हो तो उस पर गहन विचार करना अत्यंत आवश्यक है। मांगलिक योग की तीन श्रेणियां हैं- उग्र मांगलिक : यदि जातक की कुंडली में मंगल नीच राशि (कर्क अंश 28 तक) में हो तथा राहु अथवा केतु से युक्त या दृष्ट हो, तब वह योग उग्र मांगलिक योग कहलाता है।यदि सामान्यत: लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल हो तो वह मांगलिक योग द्वितीय श्रेणी का कहा जाएगा।सौम्य मांगलिक : यदि मंगल के साथ गुरु बैठा हो अथवा गुरु की सौम्य दृष्टि से मंगल दृष्ट हो, तब यह योग 'सौम्य मांगलिक' कहलाता है। केवल उग्र मांगलिक ही दाम्पत्य जीवन में बाधक होता है जिसका निवारण जातक द्वारा किए जाने वाले सत्कर्म द्वारा होता है।