भाग्य 'भूतकाल' और पुरुषार्थ 'वर्तमान'
विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने बेंगलुरु शिविर के दौरान एक युवा द्वारा पूछे गए इस प्रश्न कि इंसान की सफलता मे उसके भाग्य का बड़ा योगदान है या उसके पुरुषार्थ का? इसका उत्तर देते हुए कहा कि मेरे देश के नौजवानों आप ये मानें कि भाग्य 'भूतकाल' का हिस्सा था और 'वर्तमान' में आप पुरुषार्थ के जरिए ही अपना, समाज का, देश और समूची दुनिया का कल्याण कर सकते हैं।उन्होंने कहा कि जिस परिस्थिति से देश और विश्व गुजर रहा है, वह बहुत खतरनाक है। अब वह वक्त आ गया है, जब पूरी दुनिया को भारत के आध्यात्म की जरूरत है। भारत की युवा पीढ़ी अपने पुरुषार्थ और आध्यात्मिक चेतना के जरिए एक बड़ा बदलाव कर सकती है।देश में हत्या और आत्महत्या की बढ़ती वारदातों के संदर्भ में श्रीश्री ने कहा कि हमारा देश बहुत संकट से गुजर रहा है। ब्रिटिशों के जमाने या उससे पहले बड़े-बड़े संकट आए। यहां तक महामारियां भी फैलीं, लेकिन तब भी किसी ने हत्या या आत्महत्या करने की नहीं सोची लेकिन आज हमारा देश दूसरे देशों की तुलना में काफी संपन्न है। क्या हमारे दिल इतने कमजोर हो गए हैं कि हमारा पड़ोसी भूखा मर रहा है और हम एक रोटी भी नहीं दे सकते? हम इतने कमजोर तो नहीं हो गए। आत्मीयताआध्यात्मिक गुरु श्रीश्री का मानना था कि आत्महत्या आर्थिक कारणों से बिलकुल नहीं हो रही है। मैं जानता भी और समझता भी हूं और जगह-जगह जाकर देखा भी है। मैं इस सोच पर पहुंचा हूं कि हमारे यहां आत्मीयता की कमी होती जा रही है, अपनापन की कमी होने के कारण ही हमें दूसरों के दु:ख नजर नहीं आते। देश में आध्यात्मिकता की भी कमी है। हमें भरोसा दिलाना होगा उन लोगों को, जो नैतिक बल की कमी की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं और भरोसा देना होगा उन लोगों को, जो हताश-निराश हो गए हैं। एक तरह की डिप्रेशन में चले गए हैं।प्राणायाम, ध्यान और हमारी जो आध्यात्मिक प्रक्रियाएं हैं और उन पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। सत्संग के जरिए आपकी चेतना को ऊपर उठाना होगा। मैं हर व्यक्ति से कहता हूं कि वह पूरे दिन में कुछ समय के लिए अपने मन और शरीर को शांत करने की कोशिश करे। जब मन शांत हो जाएगा तो अपने आप आपमें नई ऊर्जा का संचार होगा और आप में परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति भी पैदा होगी। (वेबदुनिया न्यूज)