गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. समाचार
  4. »
  5. प्रादेशिक
Written By भाषा

आसान नहीं रही सोरेन की ताजपोशी...

आसान नहीं रही सोरेन की ताजपोशी... -
आठ वर्ष पहले झारखंड के गठन के बाद मुख्यमंत्री बनने के प्रयास में असफल रहने के बाद वर्ष 2005 में अपने प्रयासों में एक बार फिर विफल रहने वाले झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन अंतत: कांग्रेस राजद और अन्य विधायकों की मदद से झारखंड के छठे मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।

झारखंड आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले शिबू सोरेन का मुख्यमंत्री पद के लिए संघर्ष आसान नहीं रहा और उन्हें तमाम उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरना पड़ा।

आज से आठ वर्ष पहले 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड राज्य का गठन हुआ था तब झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) अध्यक्ष शिबू सोरेन ने झारखंड को राज्य का दर्जा दिलाने से जुड़े आंदोलन में मुख्य शिल्पकार की भूमिका के मद्देनजर भाजपा से प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उनका समर्थन करने का आग्रह किया था।

बहरहाल भाजपा ने प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनने के उनके सपने को उस समय तोड़ दिया जब पार्टी ने सोरेन के आग्रह को ठुकराते हुए राज्य में राजग का नेतृत्व करने के लिए बाबूलाल मरांडी का चयन किया।

इसके बाद मार्च 2005 में एक बार फिर उनका सपना 9 दिनों मे ही टूट गया जब वह विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद बहुमत जुटाने में विफल रहे। शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग जिले के नेमरा गाँव में एक संथाल स्कूल शिक्षक के परिवार में हुआ था।

सोरेन ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत साहूकारों के खिलाफ आंदोलन शुरू करते हुए उस समय की जब उनके पिता हमलावरों के शिकार बने। दसवीं पास सोरेन ने धनबाद में संथाल सद्भाव समाज का गठन किया। इसके बाद वर्ष 1972 में सोरेन ने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की और पार्टी के महासचिव बने।

सोरेन अलग राज्य के आंदोलन में उस समय शामिल हुए जब वहाँ कई अन्य राजनीतिक संगठन इससे सक्रियता से जुड़े हुए थे। मुख्यमंत्री के रूप में मधु कोड़ा के समक्ष अपना दावा रखते हुए सोरेन ने कहा कि मैंने 44 वर्षों तक साहूकारों के खिलाफ तथा झारखंड राज्य के दर्जे के लिए संघर्ष कि‍या।

वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव में सोरेन को हालाँकि सफलता नहीं मिली, लेकिन 1980 में दुमका से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे। चार वर्ष बाद इस सीट पर वह एक बार फिर पराजित हो गए, लेकिन 1989, 1991, 1996 तथा 2004 में उन्हें इस सीट पर सफलता मिली।

गुरूजी के नाम से मशहूर शिबू सोरेन को आपराधिक मामलों के मद्देनजर प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। बाद में सोरेन को 1975 के चीरूडीह नरसंहार और अपने निजी सचिव की हत्या मामले से बरी कर दिया गया।

उन्होंने दिसंबर 2006 से अगस्त 2007 तक जेल की सलाखों के बीच समय गुजारा जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें निजी सचिव शशिनाथ हत्याकांड में बरी कर दिया। इसके अलावा उन्हें 1990 के घूस कांड से भी बरी कर दिया गया।