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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: श्रीनगर , शुक्रवार, 21 नवंबर 2014 (18:32 IST)

गंदरबल में भी उमर इज्जत दांव पर

गंदरबल में भी उमर इज्जत दांव पर - Umar Abdullah
श्रीनगर। माना कि इस बार मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला गंदरबल से चुनाव मैदान में नहीं हैं पर वहां होने वाले मुकाबले में भी उनकी ही इज्जत दांव पर है। ऐसा वे खुद भी मानते हैं और गंदरबल का मतदाता भी यही समझता है कि शेख परिवार के पारंपारिक विधानसभा क्षेत्र रहे गंदरबल में उमर अब्दुल्ला की हार-जीत ही होगी। वैसे भी गंदरबल में मुख्य मुकाबला पीडीपी और नेकां के बीच है, जबकि नेकां से बागी हुए एक उम्मीदवार ने मुकाबले को रोचक बना डाला है।
 
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के गंदरबल निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ने के फैसले के बाद, सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस का पारंपरिक गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर पीडीपी, नेकां और एक निर्दलीय के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है। पीडीपी के काजी मुहम्मद अफजल, नेकां के शेख इशफाक जब्बार और निर्दलीय के तौर पर किस्मत आजमा रहे शेख गुलाम अहमद सलूरी के बीच चुनावी मुकाबला है। ‘पीडीपी लहर’ से आस लगाए काजी को घाटी में फतह पर यकीन है। राज्य के पिछले चुनावों की तुलना में पार्टी को यहां पर बेहतर संभावनाएं नजर आ रही है।
 
उन्होंने कहा कि मुझे सौ फीसदी भरोसा है कि लोग बदलाव चाहते हैं। मैं अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हूं क्योंकि नेकां की ओर से विकास और रोजगार को लेकर वादे नहीं निभाने के कारण लोग पार्टी (नेकां) को नापसंद करते हैं।
 
उन्होंने कहा कि लोगों ने नेकां को हराने का मन बना लिया है और उमर ने यह भांप लिया, यही कारण है कि उन्होंने यहां से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। अलबत्ता, काजी को जहां मुकाबले में आगे माना जा रहा है, वहीं मैदान में सलूरी के आने से मुकाबला रोचक हो गया है क्योंकि विधानसभा क्षेत्र के कई भागों में उनकी पकड़ है। 25 नवंबर को इस विधानसभा क्षेत्र में पहले चरण में ही मतदान होना है, जबकि 23 दिसंबर जब परिणाम आना है, को इसका फैसला हो जाएगा कि क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस यहां अपना किला सुरक्षित रख पाती है या फिर इसे गंवाती है।
 
उमर के दादा और नेकां के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला मुख्यधारा की राजनीति में आए और 1975 में गंदरबल से चुनाव लड़ा। उस समय कांग्रेस के तत्कालीन विधायक मुहम्मद मकबूल बट ने उनके लिए सीट खाली की थी। 
 
शेख उपचुनाव जीत कर राज्य के मुख्यमंत्री बने और फिर इस क्षेत्र से उनके परिवार का नाता जुड़ गया। दो साल बाद शेख ने यहां पर फिर जीत हासिल की। शेख के निधन के बाद उनके बेटे और उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला ने 1983, 1987 और 1996 में चुनाव लड़ा और हर बार जीत हासिल की। 
 
उमर ने जब राजनीति में प्रवेश किया और पार्टी की बागडोर संभाली तो उन्होंने भी शुरुआत के लिए गंदरबल सीट को चुना। हालांकि, 2002 में पीडीपी के काजी मोहम्मद अफजल से वह चुनाव हार गए। इस हार का बदला लेते हुए उन्होंने 2008 में काजी को गंदरबल से चुनाव हरा दिया और राज्य के मुख्यमंत्री बने। पर, इस बार उमर बीरवाह से चुनाव लड़ रहे हैं। गंदरबल के साथ 14 अन्य क्षेत्रों में पहले चरण में चुनाव हो रहा है। पांच चरण का विधानसभा चुनाव 25 नवंबर से शुरू हो रहा है।