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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : रविवार, 3 जनवरी 2016 (19:07 IST)

चेतावनियों को नजरअंदाज करने का परिणाम है फिदायीन हमला

चेतावनियों को नजरअंदाज करने का परिणाम है फिदायीन हमला - Pathankot, Pathankot airbase, attack
श्रीनगर, 3 जनवरी। रक्षा विशेषज्ञ पठानकोट के एयरबेस पर हुए आत्मघाती हमले को लेकर आश्चर्य में नहीं हैं। कारण पूरी तरह से स्पष्ट है। प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के अचरज भरे लाहौर दौरे के बाद ऐसा कुछ होने की आशंका सभी गलियारों में जताई जा रही थी। इसके पीछे यह सच्चाई थी कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस लेकर लाहौर की यात्रा पर गए थे तो भी नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे और तब पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुरा घोंपते हुए कारगिल का युद्ध छेड़ दिया था।
पिछले साल 27 जुलाई को पठानकोट के पास गुरदासपुर में 20 सालों के अंतराल के बाद जब पाक परस्त आतंकियों ने फिदायीन हमला बोला था तो सभी को आश्चर्य हुआ था। तब यह स्पष्ट हो गया था कि पाकिस्तान, उसकी सेना और आईएसआई के इरादे क्या हैं। पूरे पांच महीने के बाद एक और हमला हुआ। इन पांच महीनों के भीतर पहले हमले से कोई सबक नहीं सिखा गया। यह इसी से स्पष्ट होता था कि आतंकी एक बार फिर आराम से भारत में घुसे, टैक्सी ली और उस एयरबेस के भीतर जा घुसे जो न सिर्फ अति महत्वपूर्ण है बल्कि अति संवेदनशील भी है।
 
जानकारी के लिए पठानकोट का इलाका एक 30 किमी का मैदानी भूभाग है जिसको कब्जाने के लिए पाकिस्तान ने तीनों युद्धों के दौरान अपनी पूरी ताकत झौंक दी थी। दरअसल जम्मू कश्मीर तक पहुंचने के लिए पठानकोट से ही जमीनी रास्ता है, जिसको पाकिस्तान ने हमेशा काटने की कोशिश की है। दरअसल पठानकोट एयरबेस के कारण ही भारतीय वायुसेना पाकिस्तान के भीतर तक मार करने में सक्षम हुई थी तीनों युद्धों में और करगिल की लड़ाई में भी इस एयरबेस ने अहम भूमिका निभाई थी।

पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले में शहीद हुए एनएसजी के लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार अपने परिवार के साथ
 
और यह भी सच है कि इस एयर बेस पर होने वाले हमले से पहले हुए घटनाक्रमों को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का ही परिणाम था कि 6 आतंकियों की मौत के बदले भारत को 7 अफसरों की शहादत देनी पड़ी थी, जिसमें एनएसजी के लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक के अधिकारी निरंजन कुमार भी थे।
 
यह घटनाक्रम क्या थे, जान लिजिए। इस हमले से कुछ ही दिन पहले बठिंडा में तैनात एक वायुसेनाकर्मी को पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यही नहीं, एक दिन पहले ही इन्हीं फिदायीनों ने गुरदासपुर के पुलिस अधीक्षक को किडनैप कर लिया। पर सभी ने हालात को जितने हल्के रूप से लिया उससे स्पष्ट होता था कि आतंकी हमलों की इनपुट को मात्र मजाक बना कर रख दिया गया था।
 
पुलिस एसपी के किडनैप की घटना के करीब 12 घंटों बाद ही एनएसजी को उन आतंकियों की तलाश में पठानकोट रवाना किया गया था जिनके प्रति शक था और अलर्ट मिला था कि वे कुछ बड़ा कर सकते हैं। पर यह अंदाजा किसी ने नहीं लगाया था कि उनका इरादा वायुसेना के बेस को उड़ा देने का हो सकता है, जिसको पहुंचने वाली क्षति का मतलब होता कि वायुसेना की उत्तर भारत में कमर का टूट जाना।
 
हालांकि इन घटनाक्रमों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाहौर के दौरे को भुलाया और नजरअंदाज इसलिए नहीं किया जा सकता था क्योंकि सभी इस सच्चाई से वाकिफ थे कि पाकिस्तान की ओर से ‘रिटर्न गिफ्ट’ तो मिलेगा ही क्योंकि बताया जाता था कि पाकिस्तानी सेना मोदी के लाहौर के इस तरह से किए गए दौरे से नाखुश थी।
 
यह सच है कि अब सभी सांप के गुजर जाने के बाद लकीर को पीट रहे हैं। दरअसल सभी इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि आतंकियों की शत-प्रतिशत घुसपैठ को रोक पाना फिलहाल संभव नहीं है। दरअसल जम्मू कश्मीर में एलओसी और इंटरनेशनल बॉर्डर पर कई ऐसे बीसियों किमी के इलाके हैं जहां तारबंदी नहीं है। कहीं बर्फ ने तारबंदी को दफन कर दिया हुआ है तो कहीं नदी-नालों पर तारबंदी कर पाना संभव नहीं है। 
 
नतीजा सामने है। आराम से भारत में घुसने वाले आतंकी कितना खतरा बन चुके हैं इसी से स्पष्ट है कि अब उनके कदम तेजी से दक्षिण की ओर बढ़ते जा रहे हैं। अगर यह कहा जाए कि आतंकियों की फौज को रोक पाना असंभव है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि सभी इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि वे आत्मघाती हमलावर होते हैं जो सिर्फ और सिर्फ मरने और मारने के मकसद से तैयार किए गए होते हैं। तो ऐसे में उनसे कैसे निपटा जाए, के सवाल से आज सभी जूझ रहे हैं यह एक कड़वा सच है।