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Written By Author सुरेश एस डुग्गर

56 वर्षीय महबूबा को जिंदगी ने दिए हैं बहुत थपेड़े

56 वर्षीय महबूबा को जिंदगी ने दिए हैं बहुत थपेड़े - Mehbooba Mufti, PDP, Jammu and Kashmir government
श्रीनगर। मुख्यमंत्री का पद संभालने जा रहीं 56 वर्षीय महबूबा मुफ्ती ने जिंदगी में जो कुछ पाया है वह सिर्फ अपने बलबूते पर है। दूसरे शब्दों में कहें तो जिंदगी ने उन्हें बहुत थपेड़े दिए हैं। उनकी दोनों बेटियां उनके साथ ही रहती हैं। इसमें से बड़ी बेटी अभी लंदन में है और दूसरी अपने मामा के पास मुंबई में है।
 
महबूबा मुफ्ती वह शख्सियत हैं जो राज्य की राजनीति में बड़ा कद रखने वाले पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद की छाया से मजबूती से बाहर आई हैं और पार्टी को फिर से महत्वपूर्ण क्षेत्रीय ताकत बनाने के लिए प्रयासरत हैं। कांग्रेस से अपनी मुख्यधारा की राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाली 56 वर्षीय महबूबा विधि स्नातक हैं। उन्होंने अपने पिता के साथ राजनीति की शुरुआत तब की थी जब राज्य में आतंकवाद चरम पर था।
 
पिता सईद के निधन के बाद अब महबूबा जम्मू कश्मीर की 13वीं और पहली महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं। महबूबा, मुफ्ती की सबसे बड़ी बेटी हैं। उनकी छोटी बहन राजनीति से दूर हैं और चेन्नई में रहती हैं, जबकि भाई मुंबई में रहता है।
 
महबूबा का जन्म 22 मई 1959 को कश्मीर के कद्दावर राजनीतिक परिवार में हुआ था। कश्मीर यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री लेने के बाद 1984 में उनकी शादी जावेद इकबाल से हुई थी। महबूबा की दो बेटियां हैं इल्तिजा और इर्तिका। दोनों बेटियों के जन्म के बाद ही महबूबा का अपने पति जावेद इकबाल से तलाक हो गया था। जावेद से तलाक के बाद बेटियों को महबूबा ने ही पाला। 
 
बताया जाता है कि जावेद पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह थे और यही बात तलाक की वजह बनी। महबूबा की बड़ी बेटी इल्तिजा लंदन में भारतीय हाई कमिश्नर में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव अफसर हैं। छोटी बेटी इर्तिका फिल्मों में अपना करियर बनाना चाहती है इसलिए वह अपने मामा तसादुक मुफ्ती के पास मुंबई में रहती हैं।
 
महबूबा को पीडीपी के विकास और उसे जमीनी स्तर पर लोगों से जोड़ने का श्रेय दिया जाता है। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि पार्टी को जमीनी स्तर से जोड़ने के काम में वह अपने पिता से भी आगे हैं। इस बात ने महबूबा को अपने समय के अन्य नेताओं से अलग पहचान दिलाई। 
 
दो बेटियों की मां महबूबा ने कांग्रेस की टिकट पर बीजबहेड़ा से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता था। वर्ष 18 में कांग्रेस के टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उनके पिता सईद की जीत में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सईद ने उस चुनाव में दक्षिण कश्मीर से नेशनल कॉन्‍फ्रेंस के मोहम्मद युसुफ टैंग को हराया था। सईद घाटी में शांति की वापसी लाने को उत्साह से लबरेज थे और महबूबा हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं। इन पिता-पुत्री की जोड़ी ने वर्ष 1999 में अपनी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का गठन किया।
 
मुफ्ती मुहम्मद सईद ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्‍फ्रेंस से रुष्ट कुछ नेताओं को भी अपनी पार्टी में ले आए। सईद ने कांग्रेस में अपने राजनीतिक जीवन के छह दशक गुजारे थे। उसके बाद से महबूबा ने भी नई पार्टी बनाने की जिम्मेदारी संभाल ली। महबूबा पर नरम अलगाववादी राजनीति को हवा देने का आरोप लगाया जाता है। पीडीपी ने पार्टी के झंडे के लिए हरा रंग चुना और वर्ष 1987 के मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के चिन्ह कलम-दवात को पार्टी के चुनाव चिन्ह के तौर पर स्वीकार किया।
 
महबूबा आतंकवादी हिंसा के पीड़ितों के घर अक्सर जाया करतीं और जल्द ही उनके परिजनों विशेषकर महिलाओं के साथ एक अनोखा संबंध स्थापित कर लेतीं। वर्ष 2004 में महबूबा ने अपना पहला लोकसभा चुनाव दक्षिण कश्मीर से जीता। इससे पहले वर्ष 1999 में श्रीनगर से उन्हें लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला के सामने हार का सामना करना पड़ा था।