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Written By अरविन्द शुक्ला
Last Modified: सोमवार, 5 अक्टूबर 2015 (15:09 IST)

प्रबंधकों की समस्याओं के समाधान से ही होगा शिक्षा हित : बाजपेई

प्रबंधकों की समस्याओं के समाधान से ही होगा शिक्षा हित : बाजपेई - Kasturba Kanya Inter College Lucknow
लखनऊ। स्थानीय कस्तूरबा कन्या इंटर कॉलेज, सआदतगंज के प्रांगण में अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालय प्रबंधक सभा, उप्र का एक दिवसीय अधिवेशन रविवार को आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता डॉ. अशोक बाजपेई, सदस्य विधान परिषद ने की। अधिवेशन में राजधानी एवं संगठन से जुड़े प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आए प्रतिनिधिगणों ने हिस्सा लिया।
 
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अशोक बाजपेई ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा शिक्षा का स्तर बढ़ाने में अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों की जमकर सरहना की। उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश को शिक्षित बनाने में अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों का महत्वपूर्ण योगदान है। 
 
डॉ. अशोक बाजपेई ने कहा कि सरकारी हस्तक्षेप तथा शिक्षक संघों के दबाव में प्रबंधकों के अधिकारों में कटौती की गई है। शिक्षक संगठनों ने प्रबंधकों को काफी कमजोर किया है। प्रदेश में शिक्षक संगठन प्रारंभ से ही बहुत प्रभावशाली रहे हैं, इसके प्रतिनिधि विधान परिषद में भी प्रतिनिधित्व करते हैं। शिक्षक संगठित हैं और वे दबाव बनाकर सरकारों से अपना काम करा लेते हैं जबकि प्रबंधक संगठित नहीं हैं। प्रबंधकों के अधिकारों में लगातार कटौती होने से प्रबंधकों को हाशिए में लाकर खड़ा कर दिया गया है। 
 
डॉ. बाजपेई ने कहा कि शिक्षा में आज उदासीनता आ गई है। विद्यालयों की संख्या तथा शिक्षकों की संख्या तो बढ़ी किंतु शिक्षा का स्तर नहीं सुधरा। डॉ. बाजपेई ने कहा कि प्रबंधकों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान हो जाए तो यह प्रदेश तथा शिक्षा के हित में होगा, क्योंकि प्रबंधकों की मांगें शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए हैं। 
 
डॉ. अशोक बाजपेई ने अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालय के प्रबंधकों को आश्वासन दिया कि वे उनके साथ हैं तथा शीघ्र ही माध्यमिक शिक्षा मंत्री, प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा के साथ बैठकर प्रबंधकों की जायज मांगों के निस्तारण कराने का प्रयास करेंगे।
 
इससे पहले विद्यालय प्रबंधक सभा के कार्यकारी अध्यक्ष अरविंद कुमार तथा महासचिव अनिल कुमार अग्रवाल ने बताया कि प्रबंधकों की सभा में निर्णय लिया गया कि आगामी 26 व 27 दिसंबर को अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों के प्रबंधकों का 2 दिवसीय विशाल सम्मेलन लखनऊ में आयोजित किया जाएगा जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाएगा।
 
विद्यालय प्रबंधक सभा के महामंत्री डॉ. अनिल कुमार अग्रवाल ने विद्यालय प्रबंध तंत्रों के समक्ष उपस्थित चुनौतियों एवं समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालय प्रबंधक सभा द्वारा अब तक प्राप्त प्रबंधकों की समस्याओं पर चर्चा की और कहा कि माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास कर उनको राष्ट्र का सुयोग्य नागरिक बनाने के उद्देश्य से समाज के सहयोग से की थी। 
 
उन्होंने कहा कि इन संस्थाओं में शासन ने जब से हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया, तब से दिन प्रतिदिन इन विद्यालयों की स्थिति बदतर होती जा रही है। आज ये संस्थाएं इस अवस्था में पहुंच चुकी हैं कि समाज का अधिकांश वर्ग इसमें अपने बच्चों को पढ़ाने की इच्छा नहीं रखता है जिसके फलस्वरूप इन विद्यालयों में फीस नगण्य होने के उपरांत भी छात्र संख्या निरंतर गिर रही है और छात्र-शिक्षक अनुपात असंतुलित हो गया है। व्यय के अनुपात में सभी शुल्क काफी कम हैं तथा कक्षा 6 से 8 तक निः शुल्क शिक्षा ने इन विद्यालयों को बिलकुल पंगु बना दिया है। यही सबसे बड़ी चुनौती है जिसका हमें एकजुट होकर मुकाबला करना है।
 
यदि इन विद्यालयों की आर्थिक स्थिति और इनमें पठन-पाठन की व्यवस्था में सुधार न किया गया तथा इनकी प्रबंध समितियों को अधिकार संपन्न नहीं बनाया गया तो प्रदेश में समाजवादी शिक्षा व्यवस्था का ताना-बाना ध्वस्त हो जाएगा और विद्यार्थी भी शिक्षा के मौलिक अधिकारों से वंचित हो सकते हैं।
 
डॉ. अनिल कुमार अग्रवाल ने कहा कि इन विद्यालयों की कतिपय समस्यायों का निदान प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए। ये समस्याएं निम्न हैं-
 
1. इन माध्यमिक विद्यालयों के लिए प्रशासन योजना की व्यवस्था समाप्त की जाए।
 
2. उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भंग करके इन विद्यालयों में अध्यापकों के चयन का अधिकार प्रबंध तंत्र को दिया जाए अथवा अध्यापकों के चयन की प्रक्रिया में प्रबंध तंत्र को प्रभावी भागीदार बनाया जाए। आपात स्थिति में माध्यमिक शिक्षा अधिनियम की धारा 18 के अंर्तगत चयन की कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
 
3. इन विद्यालयों के अध्यापकों/ कर्मचारियों की सेवा शर्तें राजकीय अध्यापकों/ कर्मचारियों की भर्ती की जाए। जब तक ये व्यवस्था न हो, तब तक अध्यापकों तथा लिपिकों की सेवा शर्तों से निलंबन व लघु दंड के पूर्वानुमोदन की व्यवस्था समाप्त की जाए। समयबद्ध निस्तारण की व्यवस्था के साथ अपील का प्रावधान किया जाए। उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम की धारा 21 के प्रावधानों को समाप्त किया जाए।
 
4. इन विद्यालयों में शिक्षण शुल्क की समाप्ति एवं निःशुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत कक्षा 1 से 8 तक की गई निःशुल्क शिक्षा को दृष्टिगत रखते हुए पूर्व की भांति शुल्क की क्षतिपूर्ति की जाए।
 
5. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सभी शुल्कों का पुनर्परीक्षण किया जाए। पंखा शुल्क में आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए वार्षिक निर्धारण का अधिकार प्रबंध तंत्र को दिया जाए, जैसा कि सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के लिए है। यदि ये तत्काल संभव न हो तो विकास शुल्क में यथोचित वृद्धि की जाए तथा विद्यालय में दिन- प्रतिदिन होने वाले व्ययों को इस मद से करने के लिए विद्यालय को अधिकृत किया जाए।
 
6. सभी छात्र कोषों तथा संपरीक्षा की अनुपालन आख्या पर विद्यालय प्रबंधक के हस्ताक्षर अनिवार्य किए जाएं।
 
7. इन विद्यालयों के वित्तविहीन विषय/ वर्ग को सवित्त किया जाए।
 
8. इन विद्यालयों के रिक्त शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के पदों पर तत्काल नियुक्ति की अनुमति दी जाए।
 
9. मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति उसी विद्यालय में हो, जहां का वह अभ्यर्थी हो।
 
10. इन विद्यालयों के संबद्ध प्राइमरी विभाग के रिक्त पदों पर नियुक्ति की अनुमति निश्चित समय में दी जाए।
 
11. विभागीय अधिकारियों द्वारा विद्यालय प्रबंधकों को लिखे जाने वाले पत्रों की भाषा मर्यादित हो। इनके द्वारा शिक्षक संघों के दबाव में नियमों के प्रतिकूल निर्णय करने की प्रवृत्ति पर प्रभावी नियंत्रण लगाया जाए और ऐसे निर्णय के लिए इनको प्रतिकूल प्रविष्टि दी जाए जिससे न्यायालयीन वादों में कमी हो।
 
12. विद्यालय समय में शिक्षक/ शिक्षक नेताओं के विभागीय अधिकारियों से मिलने पर कड़ी रोक लगाई जाए।
 
13. इन विद्यालयों में पठन-पाठन का माहौल बनाने के लिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस की व्यवस्था अनिवार्य की जाए तथा आकस्मिक निरीक्षण की प्रभावी व्यवस्था पुनर्स्थापित की जाए।
 
14. इन विद्यालयों में शिक्षकों/ कर्मचारियों को मेटरनिटी लीव तथा चाइल्ड केयर लीव अनुमन्य किए जाने पर प्रतिस्थानी की व्यवस्था की जाए।
 
15. स्कूल मैनेजमेंट एंड डेवलपमेंट कमेटी का नाम बदला जाए।
 
16. न्यायालयीन निर्णयों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए अधिकारियों को निर्देश प्रसारित किए जाएं।
इससे पहले मंच पर डॉ. अशोक बाजपेई का आमंत्रण कार्यकारी अध्यक्ष अरविंद कुमार, महासचिव डॉ. अनिल कुमार अग्रवाल व संयोजिका डॉ. माया गुप्ता ने किया। मंचासीन लोगों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन किया। 
 
मुख्य अतिथि को बुके संयोजिका डॉ. माया गुप्ता ने दिया। वंदेमातरम् एवं स्वागत गीत कस्तूरबा कन्या इंटर कॉलेज की छात्राओं एवं अध्यापिकाओं ने प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण डॉ. माया गुप्ता ने तथा डॉ. अशोक बाजपेई का औपचारिक परिचय उपाध्यक्ष विजय दयाल ने दिया। प्रबंधक सभा के गठन के उद्देश्यों पर प्रकाश अरविंद कुमार ने डाला। 
 
द्वितीय सत्र में शासन को सौंपे जाने वाले मांगपत्र पर अंतिम रूप से विचार किया गया। विभिन्न जिलों से आए प्रबंधकों मैथिलीशरण श्रावस्ती, चरनजीत पांडेय, बलरामपुर, धीरज सिंह बुलंदशहर, दिनेश सिंह बलिया आदि ने भी अपने विचार रखे और प्रबंधकों को उनके अधिकार दिलाने की सरकार से मांग की। 
 
अधिवेशन में निम्न बिंदुओं पर भी चर्चा हुई:- 
 
प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के प्रबंध तंत्रों के प्रतिनिधि संगठन अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालय प्रबंधक सभा उप्र का एक दिवसीय अधिवेशन गत दिनों कस्तूरबा कन्या इंटर कॉलेज, सआदतगंज के प्रांगण में हुआ। 
 
प्रबंधक संगठन के प्रदेशीय अधिकारियों ने आरोप लगाया कि प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में शैक्षिक वातावरण का निरंतर ह्रास होता जा रहा है, इसका प्रमुख कारण इन विद्यालयों में शिक्षा का नितांत अभाव है।
 
राजधानी जैसे जिले को ही अगर लें तो लगभग सभी विद्यालयों में महत्वपूर्ण विषयों गणित, भौतिक विज्ञान, अंग्रेजी आदि विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं। शिक्षकों के पद माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड को प्रेषित है तथा विज्ञापित भी हैं किंतु चयन बोर्ड की निष्क्रियता और न्यायालयीन विवादों के कारण नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं। इस प्रकार संपूर्ण प्रदेश का आंकड़ा लें तो 40 से 42 हजार शिक्षकों के पद आयोग को अथवा अथवा उसके द्वारा विज्ञापित हैं।
 
संगठन के महासचिव डॉ. अनिल कुमार अग्रवाल ने बताया कि किस प्रकार की उदारवादी नीति के चलते विद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है जिसके परिणामस्वरूप खेल, विज्ञान आदि विषयों के प्रायोगिक कार्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। 
 
प्रयोगशालाओं की साज-सज्जा व उसके उपकरणों एवं सामग्री छात्रों को नियमानुसार अभ्यास करने से लेकर प्रयोगात्मक परीक्षाओं के संपादन तक कराया जाना संभव नहीं हो पा रहा है जिसका खामियाजा समाज को भुगतना पड़ रहा है। ये ही स्थिति विद्यालयों में पुस्तकालयों की भी है। आज गुणवत्तापरक शिक्षा दिया जाना नितांत आवश्यक है।
 
उन्होंने बताया कि पाठ्यक्रमों के विभाजन की जो रूपरेखा अभी तक की है जिसे विभाग द्वारा 2016 से लागू किया जाना है, इस संबंध में अभी तक कोई भी ब्लू प्रिंट अभी तक जारी नहीं किया गया है। गत वर्ष में सत्र परिवर्तन भी जल्दबाजी में किया गया है जिसके कारण शैक्षिक माहौल बुरी तरह प्रभावित हुआ। 8 माह में ही 12 माह का कोर्स पूरा कराकर परीक्षा कराई गई जिसका छात्रों को खामियाजा भुगतना पड़ा।
 
शैक्षिक गुणवत्ता के पुनर्स्थापन के लिए बायोमैट्रिक्स अटेंडेंस शिक्षकों, कर्मचारियों एवं बच्चों के लिए अनिवार्य की जाने की शासन व्यवस्था करे। निःशुल्क शिक्षा के चलते शासन उत्तरदायित्व वहन करे।