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Written By Author सुरेश डुग्गर

कर्फ्यू के बीच यूं चल रही है कश्मीरियों की जिंदगी

कर्फ्यू के बीच यूं चल रही है कश्मीरियों की जिंदगी - Kashmir violence
श्रीनगर। आज (शनिवार) 50 दिन हो गए हैं। कश्मीर कर्फ्यू की पाबंदियों से जूझ रहा है। पाबंदियों से सिर्फ कश्मीर ही नहीं बल्कि कश्मीरी भी और उनकी जिंदगी भी जूझ रही है। पर इस सबके बावजूद कश्मीर में जिंदगी चल रही है, चाहे वह धक्काशाही से ही और कटौती से ही चल रही है, पर चल जरूर रही है।
दुनिया इस पर हैरान हो सकती है कि आखिर 50 दिनों के कर्फ्यू के बावजूद कश्मीर में भूखमरी से कोई मौत नहीं हुई। जानकारी के लिए कश्मीर में वैसे भी आज तक कभी भूखमरी से कोई मौत नहीं हुई है। कारण स्पष्ट है। आपस में मिल बांटकर खाना और दर्द बांटना कश्मीरियत की पहचान है। वह पहचान आज भी जिन्दा है। चाहे कुछ भी कह लें पर तथाकथित आजादी के आंदोलन को बनाए रखने की खातिर कश्मीरी इस पहचान को छाती से लगाए हुए हैं। शाम के वक्त कर्फ्यू वाले इलाकों के भीतरी क्षेत्रों में लगने वाले लंगर इसकी मिसालें हैं। दिनभर पत्थरबाजी करने और ‘आजादी' के आंदोलन में शिरकत करने वालों के लिए खाने पीने का पूरा प्रबंध हो रहा है।
 
फिलहाल ऐसे लंगरों को मनाही नहीं है। कारण कई हैं। जिन इलाकों में ऐसे लंगर चल रहे हैं, वहां सुरक्षाबल भी जाने से भय खाते हैं और कुछ मानवता के नाम पर भी चल रहे हैं। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस पुण्य के काम के पीछे कौन है। जानकार आपको हैरानगी होगी की वही पत्थरबाज जो कश्मीर के लाखों लोगों की जान सूली पर लटकाए हुए हैं। वे इन लंगरों के लिए अपनी जेब से पैसा खर्च कर रहे हैं और स्थानीय मुहल्लों की महिलाएं रात आठ बजे तक अपने घरों का काम निपटा कर फिर इन लंगरों में हाथ बंटाने चली आती हैं।
 
सच्चाई यह है कि कश्मीर के किसी भी इलाके में खाने पीने की सामग्री की कमी नहीं है। पेट्रोल डीजल से लेकर मुर्गे और मीट की सप्लाई भी बदस्तूर जारी है। इस सप्लाई को जारी रखने में ‘सरकार का हाथ’ है। सरकार खुद लोगों से मिन्नतें कर रही है कि खाद्य सामग्री लेकर जाने वाले ट्रकों को नुकसान न पहुंचाया जाए और तो और जिन मोहल्लों में किन्हीं भी कारणों से बिजली के ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त हुए हैं या जल गए हैं उनको बदलने की प्रक्रिया में भी खलल न डालने की अपनी आए दिन सरकारी तौर पर हो रही है।
 
वैसे भी हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरंपथी अलगाववादी नेता चाचा हड़ताली अर्थात सईद अली शाह गिलानी अपनी हड़ताल और हड़ताली कैलेंडर में दुकानदारों को शाम 6 बजे के बाद दुकानें खोलने की छूट दे रहे हैं। आपको यह जानकार हैरानगी होगी कि कश्मीर में आजकल बाजार दिन में नहीं बल्कि शाम 6 बजे खुलते हैं और रात एक से 2 बजे तक खुले रहते हैं।
 
हालांकि सुरक्षाबलों ने बहुतेरी कोशिश की कि दुकानदार दिन के वक्त अपनी दुकानें खोलें और फिर बहुतेरी कोशिश कर ली की रात के वक्त दुकानें न खुलें पर वे कामयाब नहीं हो पाए। एक कारण सरकारी दबाव भी था। यह बात अलग है कि कश्मीरी उद्योग जगत अब स्वीकार करने लगा है कि पिछले 50 दिनों के बंद के दौरान कश्मीर को लगभग साढ़े 6 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है।
 
पर बावजूद इसके कश्मीर में ‘आजादी‘ पाने का खुमार और जुनून इस कद्र हावी है कि चाहे वे इंटरनेट, फोन से कट चुके हैं पर बावजूद इसके दूध, सब्जी, खाने पीने की सामग्री सप्लाई बरकरार है। इसे बरकरार रखने में कोई और नहीं बल्कि कश्मीर की सरकार भी ‘मददगार’ साबित हो रही है। यही कारण था कि एक सुरक्षाधिकारी दबे स्वर में कहता था कि अगर यूं ही चलता रहा तो कश्मीरियों को हिंसा करने से रोक पाना असंभव होगा और यह आंदोलन बहुत लंबा खिंचता नजर आ रहा है। जानकारी के लिए वर्ष 2010 में कश्मीर में 60 दिनों की लंबी हड़ताल और कर्फ्यू का रिकार्ड बन चुका है जबकि जम्मू में भी वर्ष 2008 में 2 महीनों के लंबे कर्फ्यू का रिकार्ड बनाया जा चुका है।
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