बुधवार, 24 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. प्रादेशिक
Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated :श्रीनगर , बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (17:19 IST)

कश्मीर में बड़ा सवाल, कैसे मनें ईद..?

कश्मीर में बड़ा सवाल, कैसे मनें ईद..? -
श्रीनगर। आतंकवाद के 25 सालों में भी कश्मीरियों के लिए ऐसी ईद कभी नहीं आई होगी जैसी इस बार बाढ़ की विभीषिका के बाद आई है। हालत यह है कि हजारों कश्मीरियों के सामने यह सवाल मुंह बाए खड़ा है कि क्या वे इस बार की ईद मना भी पाएंगे या नहीं।
ऐसी हालत सिर्फ विस्थापित शिविरों में रहने वाले कश्मीरियों की नहीं है बल्कि उन इलाकों में रहने वालों की भी है जहां से अभी तक पानी 26 दिनों के बाद भी निकाला नहीं जा सका है। यही हालत कश्मीर के अन्य उन हिस्सों की भी है जहां बाढ़ और बारिश ने जबरदस्त तबाही मचाई और कश्मीरियों को सड़क पर ला खड़ा कर दिया।
 
ठीक पांच दिनों के बाद ईद-उल-जुहा है। कश्मीर से पहली बार ईद की रौनक गायब है। याद रहे आतंकवाद के 25 सालों के दौरान भी कभी ईद के मौके पर इतनी बेरौनकी या मुर्दा शांति कश्मीर में कभी नहीं रही। अब हालत यह है कि सब कुछ गंवाने वाले हजारों कश्मीरियों के पास गुजारा करने के लिए दो वक्त की रोटी के पैसे नहीं बचे हैं तो ऐसे में वे ईद को कैसे मनाएंगे उनके लिए यक्ष प्रश्न है।
 
श्रीनगर के जिन इलाकों में बाढ़ के पानी ने तबाही मचाई वहां के लोग बुरी तरह से बर्बाद हो गए हैं। उनका कुछ भी नहीं बचा है। न मकान मालिकों का और न ही दुकानदारों का। आखिर बचता भी कैसे। 6 से 18 फुट के पानी के बीच सामान को बचाया भी कैसे जा सकता था। जबकि अभी तक जिन इलाकों में 3 से 4 फुट पानी जमा है वहां तो लोग अपने घरों में भी जा नहीं पा रहे हैं।
 
ईद की रौनक बाजारों में भी इसलिए नहीं है क्योंकि दुकानदारों को दुकानों के अंदर से पानी के बीच खराब हो चुके सामान को संभालने और गाद को निकालने में ही इतना वक्त लग रहा है कि वे भी ईद के मौके पर लोगों को कुछ बेचने के प्रति सोच भी नहीं पा रहे हैं।
 
हरी सिंह हाई स्ट्रीट में अपनी दुकान के भीतर जम चुके गाद और मिट्‍टी को निकाल रहे एक दुकानदार शौकत का कहना था कि जब हम किसी को कुछ बेच ही नहीं पाएंगे तो हम क्या ईद मना पाएंगे। यही दशा सबकी है। सबकी प्राथमिकताएं दो वक्त की रोटी, क्षतिग्रस्त मकानों और दुकानों को फिर से खड़ा करने की है और ऐेसे में ईद पर होने वाला खर्चा कहां से आएगा यह भी कश्मीरियों के लिए बड़ा सवाल है।
 
ऐसा भी नहीं है कि कश्मीरियों ने इस बार ईद न मनाने का कोई फैसला किया हो बल्कि हालात और वक्त का तकाजा उन्हें कोई खुशी मनाने का मौका नहीं दे रहा है। हालंकि 25 साल के आंतकवाद में एक लाख से अधिक कश्मीरी मारे गए पर कश्मीरी कभी ईद की खुशी से वंचित नहीं रहे थे, जितना कुदरत ने अब उन्हें बेहाल कर दिया है।