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न जॉइनिंग, न नियुक्ति पत्र, वेतन निकला 57 लाख!

न जॉइनिंग, न नियुक्ति पत्र, वेतन निकला 57 लाख! - Dr HBS Bhadauriya
डॉ. एचबीएस भदौरिया की ईओडब्ल्यू में शिकायत, जांच जारी
-विशेष संवादताता
एमपी अजब है, सबसे गजब है...वाकई इन पंक्तियों में दम है। यहां के पटवारी, क्लर्क और चपरासी तक करोड़पति निकलते हैं। ...व्यापक घोटाले की आंच तो मंत्रियों के दामन तक पहुंच जाती हैं। फिर अधिकारियों के तो कहने ही क्या। ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है, जिसमें एक वरिष्ठ अधिकारी पर अनियमितताओं के आरोप लगे हैं। 
 
मध्यप्रदेश के पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम में संचालक (प्रतिनियुक्ति) के पद पर कार्यरत डॉ. एचबीएस भदौरिया ने अपने सेवाकाल में न सिर्फ गलत तरीके से पदोन्नति पाई है बल्कि उन पर फर्जी तरीके से करीब 57 लाख रुपए वेतन के रूप निकालने का भी आरोप है। फिलहाल ईओडब्ल्यू, भोपाल इस पूरे मामले की तहकीकात कर रहा है। दूसरी ओर शिकायतकर्ता का आरोप है कि उन्हें इस संबंध में धमकी और प्रलोभन भी दिए जा रहे हैं।
 
आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) भोपाल में भदौरिया के खिलाफ की गई शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने सेवाकाल के दौरान आर्थिक अनियमितताएं की हैं और आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है। शिकायत के मुताबिक डॉ. भदौरिया ने जवाहरलाल नेहरू कृ‍षि विश्वविद्यालय, जबलपुर के पत्र क्र./ स्थाअ-1/ आरसी/ 167, दिनांक 9 अप्रैल 2008 को पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर में पदभार ग्रहण किया था। बाद में विश्वविद्यालय के आदेश क्र. स्था -1/ आरसी/ 3248 जबलपुर 3 अक्टूबर 2008 को इन्हें शैक्षणिक कार्य हेतु जबलपुर में उपस्थिशत होने को आदेशित किया गया था, लेकिन आज दिनांक तक अपने कार्य पर उपस्थित नहीं हुए। 
 
‍शिकायत के मुताबिक राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के गठन के बाद ग्वालियर पत्र क्र./ स्थान-1/ पचि/ 2008/ दिनांक 23.09.2008 व स्था -1/ पचि/ 2008/ 132, दिनांक 24 सितंबर 2008 के परिप्रेक्ष्य में नियम के विरुद्ध इनके पद का पशुपालन महाविद्यालय, महू में सृजन एवं नियुक्ति एवं पद के कृ‍षि महाविद्यालय, सिहोर में स्थानांतरण एवं पुन: कृ‍षि मंत्रालय, भोपाल में पदेन सचिव पद कृषि पद पर कार्य करने हेतु आदेश जारी किए।
 
उल्लेखनीय है कि पदभार ग्रहण जबलपुर तथा कार्यक्षेत्र मंत्रालय, भोपाल एवं वेतन आहरण कृषि महाविद्यालय, सिहोर से इनके वर्तमान में प्रबंध संचालक के पदभार ग्रहण करने तक किया गया, जो कि नियम के विरुद्ध है। अहम बात यह है कि इन्हें पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर से न तो कार्यमुक्त किया गया है और न ही इन्होंने महू/ सिहोर में पदभार ग्रहण किया। आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि सिहोर में न तो इनकी जॉइनिंग है और न ही इनका नियुक्ति पत्र है। इसका खुलासा स्वयं कृषि महाविद्यालय सिहोर ने आरटीआई के तहत मांगी गई एक जानकारी में किया है। 
 
मप्र राज्य सूचना आयोग के पत्र क्र. 13375 दिनांक 18.11.2010 के परिप्रेक्ष्य में लोक सूचना अधिकारी आरएके कृ‍षि महाविद्यालय, सिहोर ने पत्र क्र. 3203/ 2010 दिनांक 16.12.10 द्वारा सूचित किया है कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया, ग्वालियर पत्र क्र. स्था1-1/ पचि/ 2008/ 120, दिनांक 23.09.2008 व स्था1-1/ पचि/ 2008/ 132, दिनांक 24.09.2008 के परिप्रेक्ष्य में डॉ. भदौरिया की आज तक जॉइनिंग नहीं है। उन्होंने अक्टूबर 2008 से वर्तमान पद तक नियम के विरुद्ध आरएके कृ‍षि महाविद्यालय, सिहोर से वेतन (करीब 57 लाख रुपए) का आहरण किया है।
 
डॉ. भदौरिया ने उपसचिव पद पर रहते हुए राजमाता विजयाराजे सिंधिया, ग्वालियर को विश्वविद्यालय के अध्यादेश 19 अगस्त 2009 की धारा 57(1)-3 का उल्लंघन करते हुए डॉ. रेशमा जैन सहायक प्राध्यापक कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ को पशुपालन महाविद्यालय, महू में बिना पद के नियुक्ति हेतु कृषिमंत्री एवं प्रमुख सचिव को गुमराह कर कुलसचिव, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, ग्वालियर को मई 2009 आदेश जारी कर राजभवन द्वारा पारित अध्यादेश का उल्लंघन किया है। मप्र पशु चि‍कित्सा (नानाजी देशमुख) जबलपुर के अध्यादेश के तहत डॉ. भदौरिया आज भी पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर के प्राध्यापक हैं।
 
भदौरिया पर यह भी हैं आरोप : करीब 26 वर्षों से सेवारत भदौरिया के खिलाफ शिकायत में आरोप लगाया गया है कि इन्होंने गलत तरीके से आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है। इनकी संपत्ति की कीमत वर्तमान में करीब दो करोड़ रुपए बताई जा रही है। इसमें कुछ संपत्ति इनके नाम से है, जबकि कुछ संपत्ति इनकी पत्नी उषा भदौरिया के नाम से है।
 
भदौरिया पर यह भी आरोप है कि इन्हें सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक पद पर पदोन्नत करने के दौरान भी नियमों को उल्लंघन किया गया। नियम के मुताबिक सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक बनाने के लिए विश्वविद्यालय में 10 साल तक अध्यापन कार्य करना जरूरी होता है, लेकिन भदौरिया को बिना अध्यापन के ही प्राध्यापक बना दिया गया। 
 
इसके साथ ही इनके पीएचडी करने के तौर तरीके भी सवालों के घेरे में हैं। जानकारी के मुताबिक इन्होंने मंत्रालय में पदस्थ रहते हुए ही अपनी पीएचडी पूरी कर ली, जबकि इसके लिए विश्वविद्यालय में रहकर शोध कार्य जरूरी होता, जो इन्होंने नहीं किया। 
 
क्या कहते हैं भदौरिया : जब भदौरिया से इस संबंध में बात करने के लिए उनके मोबाइल पर संपर्क किया गया तो उन्होंने यह कहकर बात करने से इनकार कर दिया कि वे अभी भोपाल से बाहर हैं। बाद में बात करेंगे, लेकिन बाद में करीब तीन-चार बार उनके दो अलग-अलग नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव करना मुनासिब नहीं नहीं समझा। जिस तरह से भदौरिया बात करने से बच रहे हैं उससे तो यही लगता है कि इन आरोपों में दम है।