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Last Modified: लखनऊ , रविवार, 8 नवंबर 2015 (14:09 IST)

चमक नहीं सका घरेलू पटाखा उद्योग : एसोचैम

चमक नहीं सका घरेलू पटाखा उद्योग : एसोचैम - cracker
लखनऊ। पटाखों के अवैध निर्माण और बिक्री पर सख्त पाबंदी और चीन निर्मित पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद इस दीपावली पर घरेलू पटाखा निर्माण उद्योग में चमक पैदा नहीं हो सकी है। उद्योग मंडल ‘एसोचैम’ के एक ताजा सर्वेक्षण में यह दावा किया गया है।


एसोचैम द्वारा देश में पटाखा उद्योग के ‘हब’ के नाम से मशहूर शिवकाशी समेत 10 बड़े शहरों में करीब 250 पटाखा निर्माताओं तथा थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को दायरे में लेकर कराए गए सर्वे के मुताबिक अवैध रूप से पटाखे बनाने तथा उन्हें बेचने वालों की धरपकड़ तथा चीन से आयातित पटाखों पर पाबंदी लगाने के सरकार के प्रयासों के बावजूद घरेलू पटाखा निर्माण उद्योग के लिए अपेक्षित नतीजे नहीं मिल सके हैं।

सर्वे के मुताबिक बाजार में अब भी चीनी पटाखों का भारी स्टॉक लगा हुआ है जिसे जमाखोरों की मदद से खासकर लखनऊ, अहमदाबाद, दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, जयपुर और मुंबई में अवैध रूप से बेचा जा रहा है।

एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डीएस रावत ने बताया कि पटाखों की मांग में 35 से 40 प्रतिशत तक की भारी गिरावट आई है। साथ ही चीनी पटाखों के अवैध रूप से भारी आयात की वजह से भारतीय पटाखा उद्योग को करीब 1,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसके अलावा पटाखों की कीमतों में 10 से 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी ने भी नकारात्मक असर डाला है।

उद्योग मंडल द्वारा अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली-एनसीआर, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई और पुणे में कराए गए इस सर्वे के अनुसार पटाखे जलाने पर स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे असर के खिलाफ जागरूकता फैलाए जाने से लोगों का पटाखों से मोह कम हुआ है।

सर्वे के मुताबिक, इन पटाखा निर्माताओं ने बताया कि चीनी पटाखों के अवैध रूप से आयात और अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत में गिरावट के परिणामस्वरूप एल्युमीनियम पाउडर, बेरियम नाइट्रेट तथा अन्य कच्चे माल के आयात शुल्क में बढ़ोतरी की वजह से भी पटाखा निर्माण उद्योग पर उल्टा असर पड़ा है।

शिवकाशी में श्रमिकों की खासी किल्लत की वजह से भी पटाखा उत्पादन में गिरावट आई है। श्रमिकों की उपलब्धता में करीब 20 प्रतिशत की कमी आई है।

चीनी पटाखों ने घरेलू पटाखा उद्योग पर बुरा असर डाला है लेकिन उनके बारे में स्थानीय आतिशबाजी कारोबारियों का कहना है कि इन विदेशी पटाखों से ज्यादा धुआं निकलने और उनके अपेक्षाकृत अधिक असुरक्षित होने की वजह से उनकी मांग में भी गिरावट भी आई है। (भाषा)