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Last Updated :इलाहाबाद , रविवार, 7 मई 2017 (15:02 IST)

आरक्षण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला...

आरक्षण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला... - Allahabad High Court on Reservation
इलाहाबाद। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने वाले ओबीसी उम्मीदवारों को ‘कटऑफ या विज्ञापन या भर्ती नोटिस में उल्लिखित अंतिम तिथि की सख्ती से छूट नहीं है’ और यदि निर्धारित अवधि के भीतर जाति प्रमाण पत्र जमा नहीं किया जाता है तो उसकी उम्मीदवारी निरस्त की जा सकती है।
 
यह आदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश डीबी भोसले, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की एक पूर्ण पीठ द्वारा 4 मई को पारित किया गया। इस अदालत की 2 खंडपीठों द्वारा कई रिट याचिकाओं पर निर्णय करते समय विरोधाभासी विचार रखे जाने और ओबीसी उम्मीदवारों द्वारा विशेष अपील दायर करने के बाद उठे सवालों पर निर्णय करने के लिए इस पूर्ण पीठ का गठन किया गया। 
 
ये ओबीसी उम्मीदवार विज्ञापन में उल्लिखित कटऑफ तिथि तक अपने जाति प्रमाण पत्र जमा करने में विफल रहे जिसके परिणामस्वरूप यूपी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड द्वारा इन अभ्यर्थियों की उम्मीदवारी रद्द कर दी गई थी।
 
इस पूर्ण पीठ के समक्ष प्रमुख सवाल यह था कि क्या आवेदन जमा करने के लिए अंतिम तिथि के बाद जमा किए गए जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर किसी ओबीसी उम्मीदवार की उम्मीदवारी निरस्त की जा सकती है। पूर्ण पीठ का विचार था कि एक विज्ञापन में कटऑफ तिथि का उल्लेख करने का एक से अधिक उद्देश्य होता है। 
 
इस तिथि का अनुपालन करना सभी आवेदकों के लिए अनिवार्य कर सरकार कोई भेदभाव नहीं कर रही और न ही इसे अनुचित कहा जा सकता है। इस तरह की अनिवार्यता नहीं होने पर संपूर्ण चयन प्रक्रिया अनिश्चितता के दलदल में फंस जाएगी। 
 
पीठ ने कहा कि यद्यपि यह सही है कि एक जाति प्रमाण पत्र एक मौजूदा स्थिति की पहचान मात्र है। एक ओबीसी उम्मीदवार के लिए इस राज्य द्वारा मान्यता दिए गए एक ओबीसी समूह से जुड़े होने और वह क्रीमीलेयर के दायरे में नहीं आता, यह सुनिश्चित करने के लिए इसकी दोहरी शर्तों को पूर्ण करना आवश्यक है। यह आवश्यकता एक विज्ञापन में निर्धारित तिथि के संदर्भ में देखी जानी होगी। 
 
अदालत ने कहा कि ओबीसी (गैर क्रीमीलेयर) का प्रमाण पत्र, इसके धारक की अंतिम स्थिति या उसके माता-पिता की स्थिति के 3 साल के आकलन के आधार पर जारी किया जाता है। एक धारक की वित्तीय स्थिति समय के साथ बदल सकती है। (भाषा)
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